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अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

रविवार, 31 दिसंबर 2017

प्रीत

प्रीत में सब कुछ भुला कर
आप को दिल में बसा लूँ
स्वप्न के मंदिर में अपने 
देवता उनको बना लूँ 

प्रीत में सब कुछ भुला कर 
गीत गा कर के सुना दूँ 
धुन नए अपने बना लूँ 
ज़िन्दगी के फूल को 
राह में उनके सजा दूँ 
प्रीत में उनको समर्पित 
हर ख़ुशी हर गम समर्पित 
हर घड़ी हर क्षण समर्पित 
स्नेह के कण-कण समर्पित 

प्रीत है एक शब्द छोटा 
पर हैं इसका अर्थ विशाल 
न ही इसकी कोई सीमा 
बन्धनों से मुक्त हैं ये 

प्रीत में सब कुछ भुला कर 
नीत नए रिश्ते बना कर 
ज़िन्दगी के राह में
नीत नया सन्देश लेकर
सब को हम बताएँगे.

बुधवार, 27 दिसंबर 2017

ठिठुरता हुआ आम आदमी

दिसंबर की सर्द  रात ऐसी
कि इंसान बर्फ का सीला बन जाए
पर पेट की भूख ऐसी
कि घर से निकलना ही पड़ेगा

ज़िन्दगी में कुछ बेहतर करना हैं
इस ललक ने इतना मजबूर कर दिया
चाँद दूर हैं बहुत फिर भी
इसे अपनी मुट्ठी में भरना है मुझे

ठोकर खाकर भी दौड़ना हैं हमें
गिर कर भी
मंज़िल की ओर कदम बढ़ाना  है हमें
मुमकिन है
कुछ आगे निकल ही जाएंगे

ये सर्द रात इतनी गहरी हैं
कि अपनी पदचाप भी
दिल को डरा रही है
पर हौसला हममें भी कम नहीं

ज़िन्दगी बार-बार हमको रुला रही
हर रिश्ता अग्नि परीक्षा
हमसे ही मांगता है
पर हम हैं कि
इस रात की भाँती
दिल थाम कर बैठे हैं
कुछ ठान कर बैठे हैं
जीवन के दर्द को पहचान कर बैठे हैं!!

रविवार, 26 नवंबर 2017

जीवन एक रंगमंच

होके मायूस ज़िन्दगी से 
यूँ न निराश होइये 
ज़िन्दगी के चिराग का 
आँधियों से सामना 
तो ज़िन्दगी का अटूट हिस्सा है 
अगर मुसीबत में भी 
हौसला बरक़रार रखा तो 
मुसीबतों के आग में तपकर 
कुंदन बनकर निखरोगे 
हम सीखते हैं उलझनों से 
हर ठोकर हमें और मजबूत बनाती हैं 
ज़िन्दगी को जीने का  
एक नया सबक दे जाती हैं 
गैर और अपनों का 
फर्क समझाती हैं 
रिश्तों के डोर को 
और मजबूत बनाती हैं 
जीवन के उतार-चढ़ाव का 
नाम ही ज़िन्दगी हैं 
जब गैरों के दुःख से भी 
आँख में आँसू छलक आए 
जब खुद पर मुसीबत आए तो 
दिल को चट्टान की तरह 
मजबूत बनाकर रखना 
हम सब ज़िन्दगी के रंगमंच पर 
अपना-अपना किरदार निभाने आए हैं 
फिर क्यों न अपने किरदार को 
पुरे मन से निभाए 
ज़िन्दगी के खूसूरत रंगों को 
खूबसूरती से सजाए 
अपने पीछे कुछ यादगार लम्हे
अपनों को दे के जाए। 

शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

दीपोत्सव

एक प्यार के दीपक से 
सारे जग को रौशन कर दे 
इस बार दिवाली पर 
हर घर में रौनक आ जाए 
हर घर में खुशियाँ छा जाए 
हर चेहरे पे रौशन हो 
दीपोत्सव की खुशियाँ 

एक प्यार के दीपक से 
इस बार दिवाली में 
कर दूर अँधेरा मन की 
संकल्प ये लेना हैं 
सौगात ख़ुशी की सबको 
देना और लेना हैं 

एक प्यार के दीपक से 
इस बार दिवाली में 
तोड़ स्वार्थ के बंधन सारे 
आओ ख़ुशी मनाए 
जिस घर में अँधियारा हैं 
उस घर में दीप जलाए 
दीपक के इस पर्व में हम सब 
मिलकर ख़ुशी मनाए 

एक प्यार के दीपक से 
इस बार दिवाली में 
भेद-भाव को भूल परस पर 
यह दीपक पर्व मनाए!

बुधवार, 22 नवंबर 2017

किसान

बहे पावन पुर्वाही
मौसम में खुशियाँ आई
खुशनुमा दिन-रात शीतल
मंद-मंद मुस्काए मेरा दिल
रिमझिम-रिमझिम पड़ी फुवारे
तन-बदन भीगा मेरा
ये बारिश की चंद फुहारे
दिल की खुशियाँ लौटाए
दिल झूम-झूम के गाए
धरती की रौनक लौटने
अब इंद्रदेव हैं आये
नें हमारे तरप रहे थे
दर्शन तेरे पाने को
फसल हमारे बाट जो होते
हरदम तेरा रहते
पर तुम तो हो
अकड़ में अपने
जब भी आते जोर-शोर से
हमें बहा ले जाते
फिर भी मेरे-तेरे बीच
एक अटूट रिश्ता हैं
एक दूजे के बिन हमें दोनों
रह नहीं पाएंगे
कभी रूठना, कभी मनाना
हम दोनों का ताना-बाना
जीवन का हैं चक्र सुहाना!

मंगलवार, 14 नवंबर 2017

धरा की पुकार

भारत माता नाम हमारा
माँ कहके तुमने हैं पुकारा
सौ वर्षों से मैं गुलाम थी
मेरी खातिर प्राण गवाया
अपनी बली चढ़ाया हँस के
अपनी माँ को खूब रुलाया
पर धरती का क़र्ज़ चुकाया

फिर ऐसी क्या मजबूरी थी
जिसकी सिंहासन से प्रीति थी
उसी को तुमने राजा माना
पल भर क्यों भूल गए
वीरों की कुर्बानी को
बँटवारा कर डाला मेरा

मैं रोती बिलखती रही
कभी अपने वीर बच्चों के शोक में
तो कभी उन गद्दारों के करम पर
जिसने मेरी संतान हो कर भी
गैरों की हाँ में हाँ मिलाई
और मेरी पवित्रता में
जाति और मज़हब का ज़हर घोल दिया
मुझे अपनों ने ही
चन्द लम्हों में तोड़ दिया
जातिवाद के कहर को इतनी हवा दी
कि बरसों पुराना प्यार
पल भर में बिखर गया

मेरे वीर सपूतों जागों
अब और नहीं
अपने अंतर्मन में झाँकों
अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति को पहचानों
हम कमज़ोर नहीं
हम भटक गए हैं
हमारी गति यह नहीं
जिस पर हम अटक गए हैं
सदियों पुरानी हमारी सभ्यता को
यूँ न बिखर जाने दो
तुम सब मिलकर रहो
अपनी ताकत को पहचानों

मेरे वीर सपूतों
मेरे लिए इससे बड़ी कोई कुर्बानी नहीं
अब तो जान देने की नहीं
हौसलों से नया भारत बनाने की तैयारी हैं

बस साथ दे दो मेरा
वो दिन दूर नहीं जब
धरती से आसमान तक
तिरंगा लहराएगा मेरा.

शुक्रवार, 10 नवंबर 2017

आज का आदमी

सर से पाँव तक 
जिम्मेदारी के बोझ तले 
दबा हुआ अज का आदमी 
हंसना-बोलना और गुनगुनाना 
भी भूल बैठा हैं

अपने-पराये का फर्क भी 
कहाँ याद रहता हैं 
पहले तो लोग 
पुराने ज़माने को याद करते थे 
अब तो अपने ज़माने में ही 
गुम हो गया हैं आदमी 

कब सुबह होती हैं 
और कब दिन ढल जाता हैं 
इस सब से बेखबर वह 
अपने में ही गुम रहता हैं 

आज का आदमी 
मशीन से तो जंग लड़ लेता हैं 
पर उसे इंसान का डर 
अन्दर ही अन्दर खा जाता हैं 

आज का आदमी 
जीवन को भरपूर जीना चाहता हैं 
पर उसकी ख़ुशी 
इंसान के साथ जीने में नहीं 
वह मशीनों के इर्द-गिर्द 
अपनी दुनिया बनाता हैं 

लेकिन जब एक दिन 
बचपन और जवानी 
दोनों पीछे छुट जाते हैं 
तब जा कर अपनों की याद आती हैं 

अब इन बातों का क्या फायदा 
ज़िन्दगी निकल चूँकि तनहाइयों में 
आज हर चीज़ पाकर भी खाली हाथ हूँ 

काश पहले समझ जाता 
हमें मशीनों की कम 
परिवार की ज्यादा ज़रुरत हैं 
अपने तो वो होते हैं 
जो हमारी भावनाओं को समझ पाते हैं 
ये दुखद हैं कि 
हमने जिसे अपने लिए बनाया 
हम उसी मशीन के गुलाम खुद बन गए.

गुरुवार, 9 नवंबर 2017

एक दिन की बात

एक दिन की बात है
मैं बड़ी निराश थी
ज़िन्दगी से उदास थी
खुशियाँ मुझसे नाराज़ थी
मुझे अपनों की दरकार थी
जिससे दिल की बात कह सकूँ
एक ऐसे रिश्ते की खोज में
मैं अकेली चल पड़ी

मैं करूँ तो क्या करूँ
अपनी चाहत किससे कहूँ
मेरे इर्द-गिर्द जो भी थे
सब मुझसे जुदा थे
सोच उनकी अलग थी
पर उनकी दुनिया में
मन मेरा रमा नहीं
अपनी उनसे जमी नहीं

उनको मैं कभी अच्छी लगी नहीं
सुर-ताल उनसे मिले नहीं
मैं मगन चलती रही
विघ्न-बाधाओं से लड़कर
सुख-दुःख के खट्टे-मिट्ठे
अनुभवों से गुज़रकर
कब मैं आम से ख़ास बन गयी
मेरा जीवन
कुछ लोगों के लिए
परिहास बनकर भी
दुनिया के लिए इतिहास बन गया

चाहत अपनी भी यही थी
मैं जानती थी
मैं सबसे अलग हूँ
फिर मैं भीड़ का हिस्सा क्यों बनू
कदम मेरे आगे बढ़ चले
फिर आखिर मैं पीछे क्यों मुरु
ज़िन्दगी ने जो भी हमको दिया
हमने हँस कर उसको जी लिया
शायद जिंदगी इसी का नाम है.

बुधवार, 8 नवंबर 2017

उलझन

मन उलझा उलझन में ऐसे
सुलझ न पाया रे
जीवन के दिन बीत रहे यूँ
जैसे भागे रेल

जीवन आधा बीत गया हैं
बचा-खुचा भी बीत रहा है
पर उलझन सुलझाए न सुलझी
राह हमारी कौन

घर में घर वालों के ताने
बाहर दिल को तोड़ रहा हैं
दिखावे की शोर
मन उलझा उलझन में ऐसे
सुलझ न पाया रे

जीवन के बदली में पानी
हो गया इतना कम
आँखों से आंसूं बन करके
बह नहीं पाते अब
मन उलझा उलझन में ऐसे
सुलझ न पाया रे

घोड़ विपत्ति की चादर ने
ओढ़ लिया हैं सबको
इंसानों के मन में नफरत
घोल रहा हैं पैसा
मन उलझा उलझन में ऐसे
सुलझ न पाया रे

पैसों के ताकत के आगे
नतमस्तक हैं रिश्ता
रिश्तों का अब मोल नहीं हैं
पैसे का कोई तोड़ नहीं हैं
जीवन पर कोई जोड़ नहीं हैं
मन उलझा उलझन में ऐसे
सुलझ न पाया रे

उलझन फिर भी आज वाही हैं
कौन हैं सच्चा कौन हैं झूठा
जुदा -जुदा सब रहते हैं अब
मेल मिलाप दिखावा
प्रेम की चादर ओढ़ के देखो
बैर पुराना साधे
मन उलझा उलझन में ऐसे
सुलझ न पाया रे

अजब-गजब इस दुनिया में
सब उलझे अपनी उलझन में
भूल भुलैया बना के छोड़ा
जीवन की सुन्दरता को
मन उलझा उलझन में ऐसे
सुलझ न पाया रे!!!

सोमवार, 6 नवंबर 2017

वह भारत देश हमारा!!

यह वीर भगत सिंह की धरती है
वीरों की गाथा सुन कर के
बच्चे जहाँ हैं सोते
वह भारत देश हमारा

औरत का सम्मान जहां हैं
हर घर में पावन धाम जहां हैं
प्रभु की चर्चा आम जहां हैं
वह भारत देश हमारा

जिश देश की धड़कन गाँव में
जिस देश की शान हैं गाँव में
फसलों की आन हैं गाँव में
आधा हिंदुस्तान हैं गाँव में
वह भारत देश हमारा

वेदों के मंत्रो से गुंजित
सभी दिशाएं होती
सभी लोकों से प्यारा
अपना भारत देश हमारा

गंगा जमुना सरस्वती की
बहती निर्मल धारा
वह भारत देश हमारा

क्षमा दया और प्रेम जहां कि
संस्कृति का हैं हिस्सा
वह भारत देश हमारा

कोटि-कोटि उस जन्म भूमि को
नमन सदा करती हूँ
योग-भोग के बीच संतुलन
करके कायम रखना
यह तो हैं सौभाग्य हमारा
वह भारत देश हमारा!!

शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

ख़ामोशी

पलकों के कोनो से अश्रुधारा बह रही
नयनों के नीर से तन बदन भीगे मेरे
मानकर मुझको पराया भूल सब मुझको गए
थे कभी अपने जो मेरे आज बेगाने हुए

आठों पहर अठखेलियाँ थी गूंजती किलकारियां
अब उसी घर में हैं पसरी सूनापन खामोशियाँ
काश माँ की ममता में इतनी ताकत होती
कि वो कभी भी अपने बच्चों को अपने पास बुला पाती
उनके मन में अपने लिए आदर जगा पाती
ममता के आँचल को आँसू के बजाय
किलकारियों से भींगा पाती
जीवन परिवर्तनशील है
वक्त के साथ अपना रंग बदल लेती हैं
पर माँ में इतनी हिम्मत कहाँ कि
वो वक्त के साथ ममता का मायना बदल पाती
मेरी ये कविता उन बच्चों के लिए
एक छोटा सा सन्देश हैं
जिन्होंने अपने माता-पिता को
जीते जी बेगाना कर दूर देश चले गए
और फिर कभी उनकी कोई सुध न लि
माँ की ममता को यू बाज़ार में नीलाम
न करो मेरे दोस्तों
अपना भी वक्त कुछ वर्षों में
वैसा ही आने वाला हैं
प्रभु के इस वरदान को यू न ठुकराओ
अपने हृदय का दरवाज़ा खोल दो
सबको एक हो जाने दो!!

रविवार, 22 अक्तूबर 2017

मेरा सपना

तुम हो मेरे कल्पना से परे
तुम साकार प्रतिमा हो
जिसे मैं देख, सुन और छू सकती हूँ

पर तुम्हारी चाहत की तस्वीर में
मैं अपनी तस्वीर जब भी ढूँढ़ती हूँ
वो तस्वीर अनजानी सी मुझे लगती हैं
एक बेगाना सा एहसास होता है

क्या ये हमारा भ्रम है
या हैं कोड़ी कल्पना
मेरे ख़ूबसूरत संसार में
ऐसी बातों का कोई मतलब तो नहीं

पर मन तो बेलग़ाम घोड़ा हैं
कभी-कभार भटकने ही लगता हैं
तुम तो मेरी चाहत मेरा संसार हो


तुमसे दूर जाने की कल्पना भी
मेरे लिए तूफ़ान से कम नहीं
तुम मेरे हो और सिर्फ मेरे हो
तुम्हारे कल्पना पर भी अधिकार हमारा है
ये छोटा सा संसार हमारा हैं !!!

सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

दिवाली

दीपों का त्योहार बड़ा है
पावन ये संसार मेरा हैं
जग का हर अंदाज़ नया है
हर घर  में पकवान नया है

दीपों का त्योहार बड़ा है
फूलझड़ियों और लड़ियों से तो
सारा अब बाज़ार अटा हैं
फ्रूट-मिठाई खेल-खिलौने
रंग-बिरंगे फूलों से
देखों अब बाज़ार सजा हैं

दीपों का त्योहार बड़ा है
रंगोली हर घर की शोभा 
हैं प्रतिक ये दीपक मेरा 
सच्चाई की जीत का 

दीपों का त्योहार बड़ा है 
दीपक से घर सजता है पर 
रौशन होता मन का कोना-कोना 
रंग -बिरंगे खिलौने पाकर 
बच्चे खुश हो जाते है 

दीपों का त्योहार बड़ा है 
ये पावन त्योहार हमारा 
ढेरों बातें सिखलाता है 
जीवन की हर कठिन घडी में 
मुस्काना सिखलाता है 

दीपों का त्योहार बड़ा है 
सत्य की जीत पर 
हर घडी हर दीप पर 
आपका अधिकार है 
मुस्कुराओ गले लगाओ 
ज़िन्दगी हँस कर बिताओं 


दिवाली की आप सबको हार्दिक बधाई 

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017

हमराज

ऐ मेरे हमराज बताना
दिल के कोई साज सुनाना
विरह-मिलन का राज़ बताना
अपना ये अंदाज़ बताना

ऐ मेरे हमराज बताना
दिल के कोई साज सुनाना
दिल की धड़कन को सुनकर के
साथी का मिजाज़ बताना

ऐ मेरे हमराज बताना
दिल के कोई साज सुनाना
जीवन नैया के डगमग से
सुर का नया कोई साज बनाना

ऐ मेरे हमराज बताना
दिल के कोई साज सुनाना
जीवन के उलझन में अपनी
दिल का कोई तान सुनाना

ऐ मेरे हमराज बताना
दिल के कोई साज सुनाना
कोमल मन निष्ठुर जीवन है
राह कठिन को सुगम बनाना
साथी का तुम साथ निभाना

ऐ मेरे हमराज बताना
दिल के कोई साज सुनाना
जीवन के संकल्प में अपने
हाथों से रंग भरकर जाना

रंग बिरंगी रंगोली सी
दीये की सी पावनता हो
चंदा सा हो सरल मधुर जो
सूरज सा हो तेज जहाँ पर
अपना घर तुम वही बनाना
ऐ मेरे हमराज बताना
दिल के कोई साज सुनाना
जीवन को संगीत बनाना!!

सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

दिलों का फ़ासला

दिल से दिल का ये फ़ासला अब
गहरी खाई में तब्दील होता गया
कहीं पैसों ने तो कहीं जातियों का
अहम् भावना में समाता गया
आदमी-आदमी की तरफ देखने में
शरम आज भरपूर आने लगा है
शितम्गर ये दुनिया तमाशा हमारा
कहीं न कहीं तो बनाता रहेगा
ज़मीनी हक़ीकत को हम देखकर के
स्वयं को हमारी पुरानी धरा में
कभी न कभी लौट जाना पड़ेगा
मिलजुल कर गलियों में गीतों का गायन
घर की डयोढ़ी पे बीते पूरी शाम
हँसी और ठहाकों से गूंजे दिशाए
वहीँ दिन और रातों हो पावन हमारी
सभी मिलके बाटे जो खुशियाँ हमारी
दिल से दिल की न दुरी कभी भी बने
खुशियों की सौगात हर घर में  हो.

रविवार, 8 अक्तूबर 2017

भाभी ननद संवाद

भउजी खोल दियउ गठरी अपन हे
अखन राखी के अयलै त्यौहार हे
ननदी मांगये नेग अपन हे
भउजी खोल दियउ गठरी अपन हे

भैया तकैत छथ मुहवा अहि के
कनि हँस दिऔ खुल के एखन हे
नेक देख लिए अपन अहा सब
भैया देलन ह कथी दिल खोल के

भउजी खोल दियउ गठरी अपन हे
अएलै साल भर पर राखी हमर हे
इंहा आबे ला कईली ह केतना जतन हे
जइबै ससुरा जखने तखन हे
सांस पूछ तन देखाबा त नेग अपन हे
भाई देलको ह नेग केहन हे

भउजी खोल दियउ गठरी अपन हे
सांसु खोलथिन जे गठरी हमर हे
खुश होइथिन नेग देखके हमर हे
भउजी होयत नाम अही के ऊपर हे
भउजी खोल दियउ गठरी अपन हे

शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2017

यादें

सूनी-सूनी अखियों में
भीगी-भीगी रतियों में
सूनी-सूनी गलियों में
दिल रोये मेरा तुम बिन
घर की दीवारों में
गम की अहातों से
मुँह जो चिढ़ाए मुझे
बतिया सुनाए मुझे
तानों की बातों से
नैन भिगोए मेरे
यादों की बातों ने
सूनी-सूनी अखियों में

भीगी-भीगी रतियों में 

बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

साईं राम

गोविन्द बोलो हरी गोपाल बोलो
राधा रमन हरी गोविन्द बोलो
गोविन्द जय जय गोपाल जय जय
साईं राम जय जय राम नाम जय जय
कैलाश वासी शिव-शंकर जय जय

गोविन्द बोलो हरी गोपाल बोलो
राधा रमन हरी गोविन्द बोलो
सुबहो सवेरे साईं नाम बोलो
शिरडी साई बोलो सत्य साई बोलो

राधा रमन हरी गोविन्द बोलो
सीता राम बोलो राम-राम बोलो
साई राम जय जय राम नाम जय जय
कैलाश वासी शिव-शंकर जय जय.

मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

माँ भारती

भारत माता ग्राम वासिनी 
पत्थर की प्रतिमा निवासिनी 
गौरव गाथा मय प्रवासिनी 
सर पर मुकुट हाथ में ध्वज 
वीरों का नमन स्वीकार कर 

भारत माता ग्राम वासिनी 
पत्थर पर भी फसल उगाकर 
हरित क्रान्ति का सृजन किया है 
माँ का आँचल हरियाली से भर कर 
प्रातः प्रशस्त कर दिया देश का 

भारत माता ग्राम वासिनी 
पत्थर की प्रतिमा निवासिनी 
उज्जवल भविष्य का मार्ग 
प्रशस्त किया है 
हर मेह्नत कश हम वीर पूज 
माता का गौरव बनकर के 
घर जाएंगे हम विश्व पहल कर 

भारत माता ग्राम वासिनी 
पत्थर की महिमा निवासिनी!!

शनिवार, 9 सितंबर 2017

ख्वाब

चाहे हकीकत हो या ख्वाब
बस हो वो लाजवाब
किसी के दिल में क्या छुपा है
सब हो जाए बेनकाब तो
तो मंजर होगा लाजवाब
मैं अच्छी हूँ पर
दुनिया के नज़र में हमेशा बुरी हूँ
अगर मैं सच में बुरी होती तो
रिश्तों की परिभाषा ही अलग होती

चाहे हकीकत हो या ख्वाब
बस हो वो लाजवाब
जीवन एक सफ़र है
ओर हम सब उसके मुसाफ़िर
चिड़ियों के कलरव ध्वनि से भोड़ के
मधुर भजन के स्वर से हो हर शाम
ज़िन्दगी मुश्किलों का अंबार ही क्यों न हो

ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत
सामने मेरे आओ
जीवन की इन रंग रलियों में
कुछ तो रंग भर जाओ
कोई जीए हज़ारों साल

हम क्षण में हैं मालामाल!!

शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

जीवन दान

सामने डूबती सांसो का ऐसा मंजर था
ख्वाबो में सब अपना था
पर हकीकत में सब सपना था
चंद लम्हे कट जाए तो गनीमत हो
पर इस विकट  घडी में किसी ने अपना कहने की
हिम्मत जुटाया था तो वो थे
वो थे हमारी मुकिल की घडी में
हमारा साथ देने वाले वो भाई
कर्जदारों ने हमें अपना कहने का साहस जुटाया
बड़ी मुश्किल से खुदा से
हमारी जिन्दगी के लिए चंद लम्हे
देने की गुजारिश की
हुजुर बन्दे को कुछ वक्त दे दीजिये
और कुछ न सही
हमारा कर्जा ही उतार लेगा
जिंदगी ने इसे कुछ तो दिया नहीं
शायद मौत ही इसे अपना ले
पर आपसे विनती है सरकार
आप इतने निष्ठुर न बन जाइये
ये तो एक इमानदार आदमी है
घपलेबाजों पर आप तो कई बार तरस खातें है
इस पर एक बार की मेहरबानी तो दिखाइए
जिंदगी जीने में न सही
मरने में ही इसे अमरत्व दे दीजिये !!

गुरुवार, 7 सितंबर 2017

घर

सोचा था मैं एक सुन्दर सा घर बनूंगी
जिसमे शांति सुकून और प्यार
सब साथ-साथ रहेंगे
लेकिन क्या पता था
वक़्त को कुछ ओर ही मंजूर है
ज़िन्दगी तिनके जड़ने में ही निकल जाएगी
वक़्त बातो बातो में ऐसे गुज़र जाएगा
शांति, सुकून और प्यार मेरे लिए सपना बन जाएगा
घर अपना तो न बना सके
पर मलाल इस बात का रहा
कि घर गैर का ही सही
ज़िन्दगी तो सुकून से बिता लेते
खुदा की इतनी इबादत भी
हमे कम से कम मिल जाती
शुक्रिया दिल से उनको करके
हम इस जहाँ से निकल लेते
खुदे ने हमे इस काबिल भी न समझा


मंगलवार, 5 सितंबर 2017

एक कदम

बस एक कदम तुम और चलो
मंजिल के पास खड़े हो
थोड़ी हिम्मत और साहस से
तुम लक्ष्य भेद सकते हो

यह लक्ष्य हमारा मृगमरीचिका बनकर क्यों आया है
बरसों से है कदम हमारे एक ताल पर चलते
फिर भी मेरा लक्ष्य आज तक
नज़र मुझे नही आया

हर कोशिश बेकार हुई
हर लक्ष्य हमारा छूटा
मेहनतकस और खुद्दारी का
दंभ हमारा टूटा

मन के कोनों में बैठी है
रूह कापती मेरी
क्या ये मेरा जीवन मुझको
ठोकर ही मारेगा

कभी ख़ुशी की दो बूंद से
मेरा मिलन न होगा
सत्य तड़पता रह जाएगा
झूठा मौज मनाएगा
रात अंधेरा छाया ऐसा

शायद दिन नहीं आएगा

शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

सपना

रिम झिम बरसता सावन होगा
झिल मिल सितारों का आँगन होगा
खुशियों की तारों की बारात होगी
हाथों में मेहँदी सजी आज होगी
साजन के आने की झंकार होगी
मिलन चांदनी रात तारों की होगी
बेला के फूलों से सजता हुआ द्वार
खुशबू गली की हवाओं में होगी
ख़ुशी ही ख़ुशी हर तरफ दिख रही है
नए दिन के आने की आहट बनी
ये दामन ख़ुशी का हींआँगन बना है
नहीं कोई गम ज़िन्दगी में हमारे
कि वर्षों का सपना हकीकत बना है

ऐसा सुन्दर सपना अपना जीवन होगा!!

गुरुवार, 17 अगस्त 2017

अपना जीवन

जीवन गति मान गति बन कर
नियति के हाथ कृति बन कर
वन उपवन में संस्कृति बन कर
रातों के औस की बूंदों में
दिन को सूरज की गर्मी में
सावन की मस्त बहारो में
पतझर के झरते पत्तो में
झरने से गिरते जलप्रपात में
जीवन अनमोल गति बनकर

चलती रहती नदियों के प्रकार में
जीवन तपकर सोने सा निखरा
कुंदन बनकर संघर्षो से
है शरद ऋतू के ठिठुरन में
जीवन कंपन के अनुभव में

जीवन गति मान गति बनकर
आया वसंत ऋतू बनकर
छायी हरियाली फूलो की
पत्तो पर कोमलता छाई
जीवन भी हरा भरा होकर
है चहक रहा इन बागों में

मंगलवार, 15 अगस्त 2017

आ अब लौट चले

भोर भई कुछ छंद लिखन को
मन बेचैन हुआ है
जीवन क्रम अब देर हुआ हैं
देर शाम हर घर में रौनक
सूबह-सवेरे सब सोते है
घर में पेर पसार

उलट-पुलट जीवन क्रम होता
जीवन संशय से भर जाता
चहल-पहल रातों को होती
सड़के सुनी सुबह-सवेरे
गर्म हुआ बाज़ार प्रपंच का

सूबह-सवेरे झूठ की चर्चा
सैर सपाटा सब होता हैं
हर ओर राजनीति गर्म हुई हैं
जागों-जागों देशवासी
प्रकृति की गोद में फिर से चले

प्रकृति की हमारी माँ है
हमारी सच्ची रक्षक हैं
हमारे जीवन को बदलने की धूरी
जिसके इर्द-गिर्द घुमती हैं साँसे
अब मैं थका हूँ तेरे गोद में
विश्राम करना चाहता हूँ
सब कुछ छोड़ कर थोडा वक्त
तुम्हारे साथ ही बिताना चाहता हूँ!!

शनिवार, 12 अगस्त 2017

आज़ादी

स्वाधीनता की कलम से लिखेंगे
वीरों की गाथा की स्वर्णिम कहानी
हमें याद रखना हैं उनकी जुबानी
महज खानापूर्ति बने न कहानी
दीवानों की महफ़िल ने देदी आज़ादी
हमें मुस्कुराने के लायक बनाया
हमें सांस लेना भी खुल क सिखाया
उनकी जुदाई ने हमको रुलाया
वाही वीर गाथा है तुमको सुनानी
वीरों के यादों में महफ़िल सजाना
हमें मातृभूमि का वंदन हैं करना
तिलक मिट्टियों से लगाना हमें हैं
बढ़ाना हैं गौरव देश का
दिखाना राह बच्चों को
हर लाडले को बनना हैं सिपाही देश का
तिरंगा देश का गौरव
हमारे शान की जय हो
हम आज़ाद भारत में
आज मनाए मिलकर के आज़ादी के दिवानो की
यादों में कुछ मिलकर गाए
नमन सदा करते रहना हैं

अपने वीर जवानों को!

बुधवार, 9 अगस्त 2017

भाई की व्यथा

चन्दन रोली कुमकुम लेकर
पहुंची बहन भैया के घर
राखी का त्यौहार है आया
मन में लगी अपनों से मिलाया

बहना जब द्वारे पर आई
दरवाज़े पर ताला जड़ा था
देख बहन ठिठकी कुछ देर को
फिर चल दी वापस अपने घर

भैया आज कहाँ हो तुम
बहन द्वार से लौट रही
मेरी राखी ढूंढ रही है
आज मेरे भाई की कलाई
कैसे सुनी रह जाएगी

तभी भैया पर पड़ी नज़र तो
बहना चौक पड़ी
तुम हो यहाँ तो घर पर ताला
कौन लगा आया है

बहना मेरी न पूछो तुम
बड़ा बुरा है हाल
भाभी तेरी बांध रही है
राखी अपने भाई को
कहीं खलल ना पड़ जाए
मुझे बाहर है दिया निकाल!

शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

मेरा प्यारा देश

मेरे प्यारे देश तुम्हे मैं कैसे नमन करूँ
किसको नमन करूँ मैं भारत किसको नमन करूँ
यह भारत केवल देश नहीं
यह शांति रथ है दुनिया का
शांति के सन्देश को लेकर
पूरी दुनिया पर राज करेगा
मेरा प्यारा देश है भारत
किसको नमन करूँ मैं भारत किसको नमन करूँ
अपने वीर सपूतो को या
कायर भ्रष्टाचारी को देश को मिटा रहे हैं जो
अपने निजी स्वार्थ में

यह स्वर्ग सी धरती
पावन धरती
भारत माँ का आँचल है
प्रेम सदभाव और भाईचारा
यह सब अपनी ताकत है
आपस में हम लड़ते रहते

लेकिन घर से बाहर
एकता के साथ चलकर
वीरता की हज़ारो गाथाएँ
इतिहास में दर्ज कराया है
अपने देश की रक्षा के खातिर
साइन पे गोली खाई है
मेरे प्यारे देश तुम्हे में कैसे नमन करूँ!

बुधवार, 2 अगस्त 2017

दिल से दिल तक

मैंने तुझको दिलदार चुना
तूने दिल का ए दर्द दिया
तुझको दिल की मलिका माना
तुने मुझको दिया गैर बना
मैं पड़ा रहता किसी कोने में
दिल का एक हिस्सा दे देते
चाहे तेरी नफरत ही सही
हिस्सेदार तेरे दिल का होता
मैं खुशनसीब मान लेता खुद को
तेरे संग जीवन की गलियों में
चाहत की रंगरलीयो में
जीवन रंगीन बना लेंगे
तेरे हाँ के संजोग तले
अपनी किस्मत अज़मा लेंगे
रात चांदनी संग-संग तेरे
खुले गगन के आँगन में
वो रंगरलीया तेरी गलियाँ
मदहोश मगन है जीवन में
जीवन सदियों में बाट दिया
खुशियाँ पल भर में बीत गई
चाहत की आहट सुनकर
पलके रातों को भींग गई
वो नींद गई संग छोड़ गई
जीवन की कड़वी सच्चाई
एक सीख बताकर चली गई
खोना पाना सब यही हुआ
अपना रोना सब छुट गया
प्रभू चरणों में जीवन छुटे
अब लगन हमे ऐसी लागी
भक्ति की ज्योत जलाकर के
तुम चली गयी, तुम चली गई
वो राह हमे दिखलाकर के

तुम चली गई, तुम चली गई!!