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शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

बचपन

उन बचपन की गलियों में
सखी-सहेली सब मिल बैठे
गुड्डे-गुड़ियों की शादी में
हम बाराती बनकर आते
कोई दुल्हन का पक्ष निभाता
कोई दुल्हे का पक्ष
सब कुछ होता इतना सुन्दर
जिसे याद कर अब भी हम
खुद में हैं हंस लेते!

उन बचपन की गलियों में
सखी-सहेली सब मिल बैठे
रोज़ लड़ाई करते हम सब
फिर भी साथ ना छुटा
ये तेरा हैं, ये मेरा हैं
दिन में करते कई-कई बार!

उन बचपन की गलियों में
सखी-सहेली सब मिल बैठे
लेकिन अगले दिन ही फिर
कसम सभी हम खाते
अब नहीं लड़ना, मिलकर रहना
हम बच्चे हैं साथ-साथ!

उन बचपन की गलियों में
सखी-सहेली सब मिल बैठे
काश अभी हम जा पाते
अपना बचपन, अपनी बैठक
फिर से वही लगा पाते
वही सहेली, गुड्डे-गुड़िया
फिर से रंग जमा पाते!

उन बचपन की गलियों में
सखी-सहेली सब मिल बैठे
कितना सुन्दर बचपन था
और कितनी प्यारी सखियाँ
जिसे याद कर अब भी हम
खुद में हैं खो जाते!!

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