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रविवार, 2 अप्रैल 2017

अपनों का गाँव

चलो गाँव की ओर चले
कुछ कदम प्रगति की ओर चले
शहरों में जीवन भूल गए
अपनों के साथ भी छूट गए
जीवन जीने की राह चले
अब तो अपनों के गाँव चले!

चलो गाँव की ओर चले
गाँव की पंचायत कहाँ हैं
यहाँ पार्क में इक्के-दुक्के
लोग दिखाई देते हैं
और उन पर भी पैसे का
खुमार दिखाई पड़ता हैं!

चलो गाँव की ओर चलो
वहां दिल वालों की बस्ती हैं
जहां बजते ढोल-नगाड़े हैं
हर कोई खुश जहां रहता हैं
छोटे-छोटे हैं घर
पर उसमें ढेरों खुशियाँ रहती हैं!

चलो गाँव की ओर चलें
जहां उम्र का कोई न बंधन
जहां बुढापा नहीं सताती
कोई अकेलापन नहीं होता
अपनों का वहां गम नहीं होता
सपनो की कीमत नहीं लगती!

चलो गाँव की ओर चले
सब मिल बैठे पंचायत करे
एक दूजे के अनुभव से
अपने गाँव को फिर आबाद करे
सूनी गलियाँ, सूनी सड़के
अब फिर से हैं झूम उठी
आया मेरा अपना कोई!


चलो गाँव कि ओर चले!!

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