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अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

मंगलवार, 30 मई 2017

प्रायश्चित

यह कहानी एक छोटी सी बच्ची, सुरभि, की हैं जिसे ये नहीं पता था कि अपना क्या होता हैं और पराया क्या होता हैं. उसी अनजाने में उससे गलती हो जाती हैं. पर जब उसे यह एहसास होता हैं कि उसने जो किया हैं वह गलत था तो उसे अपने किये पर बहुत पछतावा होता हैं पर तब उस चीज़ को वह ठीक नहीं कर सकती थी और अब उसके पास पछताने के सिवा और कोई रास्ता नहीं था.
             सुरभि जब पांच साल की थी तब वह अपने रिश्तेदारी में किसी कीं शादी में जाने का मौका उसे मिला पर वहाँ उसकी माँ उसके साथ नहीं थी. घर में शादी का माहौल था. चारों तरफ गहने और नए कपड़ो की धूम थी. सुरभि को उन गहनों में से एक पाजेब बहुत सुन्दर लगा, उसने सोचा कि ये पाजेब अगर उसकी माँ पहनेगी तो बहुत सुन्दर लगेगा और इसकी छनछनाहट से सुरभि अपनी माँ को कहीं भी ढूंढ लेगी. फिर क्या था उसने वो पाजेब चुपके से निकाल कर अपने पास रख ली  और जब वो घर आई तो उसने अपनी माँ से कहा - "ये पायल उसे रास्ते में पड़ी मिली हैं. माँ तुम इसे पहन लो." जब उसकी माँ ने उस पायल को पहना तो वो बहुत खुश हो गयी लेकिन कुछ वर्षों के बाद जब सुरभि को यह एहसास हुआ कि जो उसने किया था उसे चोरी कहते हैं तो उसे बहुत पछतावा हुआ पर अब इस बात को बदला नहीं जा सकता था.
               अतः सुरभि ने ये फैसला किया कि अब आगे वो कोई ऐसा काम नहीं करेगी जो उसके और उसके प्रभु के नज़र में गलत हो और एक बेहतर इंसान बनेगी. यहीं सुरभि के प्रायश्चित था!

सोमवार, 29 मई 2017

जीवन पथ

तुम जीवन पथ पर
निरंतर आगे बढ़ते रहो
कहीं पत्थर कही कंकड़
कहीं गहरी मिलेगी खाई भी
कही ठोकर कहीं उलझन
कहीं विश्वास के भी घात का
सहना पड़ेगा दंश भी
गैरों से भी अपनों की खातिर
अपमान के कुछ घूँट भी पीने पड़ेंगे
जीवन के झंझावात में
राही जो हैं तूफ़ान में
डटकर खड़ा रहता सदा
सफलता की सीढियां अक्सर
वही चढ़ता सदा
पैरों में थे जख्म फिर भी
चल दिए तूफ़ान में
मंजिलों की चाह में
राह फिर दिखता कहाँ
अनगिनत पत्थर मेरे पावों से
यूँ टकराए थे
जैसे हमको चूर-चूर करके
वो चले जायेंगे
पर हमारा बाल भी बांका नहीं
वो कर सका
तुम जीवन पथ पर

निरंतर आगे बढ़ते रहो!!

शनिवार, 27 मई 2017

साईं कृपा

हे शिव शंकर प्रिये साईं शंकर
घर में हमारे आप पधारों
दिल में मेरे प्रभु बस जाओ
और न हमको राह तकाओ.

वर्षों से हैं आपकी इच्छा
देखे निज आँखों से प्रभु को
रूप तुम्हारा कितना विलक्षण
चर्चा कर मन हर्षित होता
देख प्रभु क्या होगा.

हे शिव शंकर प्रभु साईं शंकर
दर्शन दे दो साईं शिव शंकर
जीवन के उलझन से हमको
कर दो प्रभु जी पार
प्रभु जी तुम हो खेवन हार सबके
तुम हो खेवन हार.

हे शिव शंकर प्रभु साईं शंकर
बेड़ा पार लगाओ प्रभु
जीवन नैया पार लगाओ प्रभु
सेवा का मौका बार-बार दो
हमें मजबूत बनाओ प्रभु

हे साईं प्रभु हे साईं प्रभु!!!

शुक्रवार, 26 मई 2017

गंगा की लहरे

चिड़ियों की गूंज से नाचे मन मोड़ मोरा
भोड़ भई चांदनी सर पर हैं डोल रही
गंगा किनारे कुछ चहल-पहल हैं मची
गंगा में डुबकी लगाने जुट गई भीड़ भारी
न राग द्वेष मन में ना बैर भाव मन में
सब मगन हैं अपने धुन में
गंगा की लहरे कदाचित कंप कंपाती सी निकलती
हमें डुबकी लगाते देख लहरे भी मदमदाती ऐसे
दे आशीष हम सभी को खुश हैं गंगा मैया जैसे
गंगा में डुबकी लगाकर भूल सब मैनर गए
पवित्रता की दे दुहाई गंगा को मैला किया
ज़िन्दगी अपनी सवारी माँ का आँचल मैला कर
शाम को दीपक जलाकर दे दुहाई भक्ति की
पर हमारा दोष जल सकता नहीं इन दीपकों से
हमें तो मिलकर उठाना स्वछता का संकल्प हैं
गंगा मैया स्वच्छ होगी
स्वच्छ अपना देश होगा
अब न दो तुम कोई नारा
अब हमें करके दिखाना

पूरा इस संकल्प को!!

गुरुवार, 25 मई 2017

वो आंटी

बात उन दिनों की हैं जब मैं स्कूल में पढ़ती थी. जब हम साड़ी सहेलियां स्कूल से निकलती तो रास्ते में एक करौंदे का पेड़ था. उस पर करौंदे हर साल टूटकर फलता था. हम बच्चों को उसे देखकर बहुत लालच आती थी और हम हर रोज़ उस करौंदे को तोड़ने के लिए ललचाते हुए वहां पहुंच जाते. लेकिन जिस आंटी का वो पेड़ था वो बड़ी ही खतरनाक टाइप की महिला थी. वो हमेशा हमें बुरी-बुरी गालियाँ और चिल्ला कर काफ़ी देर तक कोसती रहती थी. लेकिन हम थी कि हमारा आनंद उनके चिल्लाने से और अधिक बढ़ जाता. अपनी सारी सहेलियों में मैं बड़ी डरपोक थी क्योंकि मुझे दर होता कि अगर मेरे पापा को पता चल गया तो मेरी इज्ज़त चली जायेगी इसलिए मैं हमेशा कहती कि मैं करौंदा खाऊँगी तोज़रुर लेकिन तुम्हारी चोरी में मैं शामिल नहीं होंगी. अतः मुझे हमेशा इस बात की ड्यूटी मिलती कि जैसे ही वह आंटी दरवाज़ा खोले तुम रास्ते पर खड़े होकर गाना गाना शुरू कर देना ताकि हमें समझ में आ जाए कि हमें भागना हैं. इस प्रकार हम रोज़ करौंदे तोड़ते और दूर जाकर मिल बांटकर खा लेते. फिर अपने-अपने घर चले जाते.
      लेकिन हमारी चोरी कभी-न-कभी तो पकड़ी ही जाती. सो पकड़ी गई, वो आंटी संयोंग से मेरे घर में रहने वाले किरायदार की बहन थी और अपने भाई पास आई हुई थी. संयोंग से मैं उसी वक्त उनके घर पहुंच गई. मेरे यहाँ रहने वाली आंटी ने मुझे उन आंटी से मिलवाया और बताया कि ये मेरे मकान मालिक की बेटी हैं और पढ़ने में बहुत तेज़ हैं. फिर क्या था उन्होंने मुझे देखते ही पहचान लिया वो झट से बोल पड़ी अरे ये तो वही लड़की हैं जो मेरे घर के सामने रोज़ गाना गाती रहती हैं.
“अच्छा तुम गाना भी गाती हो.”
“हाँ, पूछों न इससे”
“नहीं आंटी ऐसा कुछ नहीं हैं मैं तो बस टाइम पास करने के लिए थोड़ा बहुत गा लेती हूं.”
लेकिन उन आंटी ने तो सोच रखा था कि आज इसकी पोल खोलनी हैं. सो उन्होंने कहाँ कि, “कहीं उन चोरों को बचाने के लिए तो नहीं गाती हो.” “नहीं, आंटी ऐसी बात नहीं हैं.” मेरी आंटी ने मेरा सपोर्ट किया और मेरी चोरी पकड़ में आते-आते बाख गई. आज भी मैं उन दिनों को याद करके हँस लेती हूं.

क्या उम्र थी क्या फ़साना था

एक हम थे और हमारा गाना था!!!

बुधवार, 24 मई 2017

जल

जीवन जल के खातिर हैं
जल जीवन अनमोल
मौसम के मारे हुए  
जल के सहारे पार  
जल जितना निर्मल हुआ
मन निर्मल कर देत
मन के मैल को छोड़िये
जल को स्वच्छ बनाओं
मन तो अपने हाथ में
जल स्वछता मुश्किल
वक्त बुरा अब आ रहा हैं
जल दुर्लभ होता गया
शहर पत्थरों में तब्दील
बड़े-बड़े गुम्बदो से
अटा पड़ा हैं पार्क
जल की एक न धारा
कहां को प्यास बुझाए
हर गरीब के हाथ नहीं
बोतल का पानी पी सके
हे शहरों में रहने वाले
पत्थर की जगह पानी का करो इंतज़ाम
जीवन खुशियों से भर जाएगा
प्यासे जीवन की प्यास बुझाकर
कुछ नेक काम कर डालो
पत्थर के शहर में रहने वालों
ए पत्थरदिल भाई
सुंदरता गाँव में भी बस्ती हैं
थोड़ा नैन खोलकर देखो मेरे भाई
स्वच्छ सड़क और शुद्ध पेयजल
गैस कनेक्शन, बिजली घर
यही चार चीज़ चाहिए
फिर गाँवों की सुंदरता में

चार चाँद लग जाएगा!!

मंगलवार, 23 मई 2017

विश्वास

उस रात की घटना को आज भी याद कर मेरा मन रोमांचित हो उठता हैं और मेरे मन में एक विचित्र सी ख़ुशी की अनुभूति होती हैं. क्या वाकई पति-पत्नी के बीच विश्वास की डोर इतनी मज़बूत होती हैं कि वह किसी भी मुश्किल की घडी में बगैर सवाल किए साथ देने के लिए हामी भर देती हैं.
                 एक दिन मेरी पत्नी गाँव से आ रही थी. नई दिल्ली पर उसकी ट्रेन रात के 10:30 बजे पहूँचने वाली थी. मुझे उसे लेने के लिए जाना था . नवम्बर का महीना था, हलकी-हलकी सर्दी पड़ने लगी थी. मेरा घर रेलवे स्टेशन से काफी दूर था अतः रात के समय ऑटो-टैक्सी के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था. मेरी दुविधा थी कि मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं उसे ऑटो से ला पाता लेकिन मन में कही ना कही यह भरोसा था कि उसके पास तो इतना पैसा होगा ही. जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर पहुंची मैं डब्बे के सामने पहुंच गया और पत्नी के साथ उसका सामान और उसके साथ आए एक मेहमान को लेकर मैं आगे बढ़ गया. बाहर आकर मैंने ऑटो लिया और घर की ओर निकल पड़े. रास्ते में मैंने पत्नी से धीरे से बोला पैसा तुम देना. उसने हामी भर दी तब जाकर दिल को तस्सली आई और एक घंटे के सफ़र के बाद हम घर पहुंच गए.
                 फिर घर के अंदर जाने पर मैंने पत्नी को थैंक्यू बोला तो उसने बस मेरी ओर देख कर मुस्कुरा दिया. मैं बैठे सोचता रहा कि आखिर इंसान की ज़िन्दगी में पत्नी नहीं होती तो एक पुरुष की ज़िन्दगी अधूरी होती. शादी एक पुरुष को परिपूर्ण इंसान बनाती हैं साथ जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों से परिचित करने का एक जरिया भी हैं.....

सोमवार, 22 मई 2017

मदर्स डे

आज बार-बार माँ की याद आ रही हैं
हर ओर माँ के लिए खुशियाँ मन रही हैं
आज की यादे कुछ ताज़ा हो चली हैं
आज माँ की बाते रह-रह के सुन रही हूं  
आज माँ मेरे सपनो में आई थी
काश आज मेरी माँ भी मेरे पास होती
आज मेरे लिए दिन के ख़ास मायने होते
आज माँ के लिए कोई नया सा सपना होता
माँ के लिए हाथों में कोई तोहफा होता
माँ मुस्कुरा रही होती
मैं उनके गले मिल रही होती
मदर्स डे तो हर साल आता हैं
पर माँ तो हर रोज़ ममता बरसाती हैं
माँ की ममता के धुप-छाँव में
बच्चों के मन मस्त रहते हैं सदा
हर बच्चे को माँ की छाँव मिले
माँ का आँचल हो उनके सर पर
उनको सारी दुनिया का प्यार मिले.

रविवार, 21 मई 2017

आनंद

आनंद हो तुम आनंद रहो
आनंद हो तेरा हर सपना
आनंद हो तेरा घर अपना
आनंद से तुम आनंद चले
आनंद पे फिर तुम आ पहुंचे
आनंद हो जीवन का सपना.

आनंद हो तुम आनंद रहो
आनंद हो तेरा हर रिश्ता
आनंद से सुबहो-शाम ढले
आनंद से हर दिन-रात कटे.

आनंद हो तुम आनंद रहो
आनंद हो जीवन की राते
आनंद हो जीवन की बाते

आनंद हो सारी  सौगाते!!

शनिवार, 20 मई 2017

सदाबहार

खोई-खोई रहती हूं मैं
सोई-सोई रहती हूं मैं
हर दिल को जचती हूं मैं 
घुल मिलकर रहती हूं मैं
चाँद की छाया
निर्मल माया मिले सदा हर घर को
हर दिल में हो प्यार भरा
जब सब अच्छा हो जाए
सब सच्चे दिल से
अपना धर्म निभाए
सूरज की गर्मी के जैसे
हर मुख पर हो तेज भरा
खोई-खोई गलियों में
सोई-सोई गलियों में
रद्दी वाले की आवाज़
गूंज उठी थी सुबह-सुबह
मेरी आँखे खुलते-खुलते

फिर से नींद में चली गई!!

शुक्रवार, 19 मई 2017

बेटा

गांव की गलियों के नुक्कड़ पर
बैठा चना फोड़कर खाता
वर्षों बीत गया बैठो को
बाट जोहते बेटे का
कभी तो वो घर आएगा
अपने माँ-बापू की सुध
कभी तो उसको आएगी
जब बेटे का जन्म हुआ तो
कई बधाई गाए हमने
खूब मिठाई बाँटें हमने
ख़ुशी-ख़ुशी सब गले मिले
पर बेटे ने पढ़ते ही
विदेश की रुख कर ली
नई नौकरी नई दुल्हनिया
लेकर वह आँखों से ओझल
हमें सांत्वना देकर गया
जल्दी घर लौट आऊंगा मैया
तेरे-पापा के लिए ढेर गिफ्ट ले आऊंगा
सब मिलकर फिर ख़ुशी-ख़ुशी
मिल बैठकर खाऊंगा
तेरे लिए सुन्दर सी साडी
पापा को दू एक मोबाइल
अपने छुटकी की खातिर
मैं महंगी घडी दिलाऊंगा
तुम बेटे कुछ मत दिलवाना
पर तुम बस अब लौट के आओ
नैन हमारे राह देखते
पथराने अब लगे
तेरी छुटकी शादी करके
दूर शहर में बस्ती हैं
पर हर रोज़ फ़ोन पर

हम दोनों की राजी-ख़ुशी जानती हैं.

गुरुवार, 18 मई 2017

जज़्बात

ज़िन्दगी और जज़्बात में
चाहत की आस में
खुशियों की बरसात में
अपनों के उस प्यास में
गैरों के बात-बात में
ज़िन्दगी के दो पल को जी लूँ अगर
धडकनों को एहसास दे अगर
कुछ खुबसूरत लम्हे चुडा लूँ अगर
मन बरसात के बूंदों की तरह हो
जब बरसती हैं तो दरिया
से नदी बन जाती हैं
पर जब सुख जाए तो पतझड़ को
दोष दे जाती है.

ज़िन्दगी और जज़्बात में
चाहत की आस में
अपनों के संग-संग चल
खुशियों के सौगात से
दुनिया को रूबरू कराना हैं
कुछ अच्छे पल अपनों को देकर
इस जग को अलविदा कह देना हैं
निकाल जाग हैं अपने सफ़र पर
मेरा कही और कोई इंतज़ार कर रहा हैं
ज़िन्दगी नाम हैं इन लम्हों का
बीत जाए तो कहानी

चल रही हैं तो जिंदगानी.

बुधवार, 17 मई 2017

चश्मा

गोल-मटोल चश्मा बोल
तेरे दिल पर क्या बीती
जब तेरी रानी तुझे दे खोल
पूरे दिन तू उसे दिखाता दुनिया रंग बिरंगी
रात को जब वो सोने जाए
तुझको रख दे साइड
नयन ख़ुशी से झूम रहे हैं
मिला हमें रंगीन सहारा
जो मेरे संग-संग चलता हैं
सब पर धाक जमाये
मेरी पतली दुबली काया
उसको भी महकाए
गोल-मटोल पहचान मेरी हैं
रंग-बिरंगी फ्रेमों वाली
मैं गुड़िया के आँखों पर

सजी-धजी बैठी रहती हूं.

मंगलवार, 16 मई 2017

सृष्टि

कोयला होत न उजला
सौ मन साबुन खाए
हैं मन निर्मल होए
जब संत संगती पाए
न चाहे कोई संत संगती
सब को क्लब हैं भाए.

कोयला होत न उजला
सौ मन साबुन खाए
पूरे जग को रौशनी
दीपक देकर जाए
खुद के तले अँधेरा हैं
बरसो बीत हैं जाए.

कोयला होत न उजला
सौ मन साबुन खाए
राजनीति के गलियारों में
सब कुछ काला होए
करत प्रयास सफल जब होए
सब संकट कट जाए.

कोयला होत न उजला
सौ मन साबुन खाए
पूरी व्यवस्था ध्वस्त हुई हैं
हर मन काला होए
प्यासा पैसे की खातिर हैं
मन कठोर होए जाए.

कोयला होत न उजला
सौ मन साबुन खाये
सूर्य चन्द्र अब सोच रहे हैं
हम ही क्यों पछताए
जो होता हो जाए सृष्टि में
सोया हैं तू सोया रहियो

मैं जागूँ हर बार.

रविवार, 14 मई 2017

दायरा

ज़िन्दगी को एक दायरे में जीने की आदत सी बन गई हैं
कभी इस दायरे की दीवारों को तोड़कर देखो
बाहर बड़ी खुबसूरत दुनिया हैं
ज़िन्दगी की मुश्किलों के बाद
बादलों की नर्म फुहार की ठंडी छांव भी हैं
ज़िन्दगी कभी धुप तो कभी
चांदनी रात की तरह हैं
अपनी साँसे भी बोझिल हो जाती हैं
जब ज़िन्दगी मुश्किल इम्तिहान बन जाती हैं
पर सुनता कहां हैं वो दिल की
जब अपना दिल ही बेईमान बन जाए
सांस थम-थम कर चलने लगे
घड़ियों में बरसो का एहसास दे जाए
ज़मी पर खड़े पल में जन्नत दिख जाए
दायरों में ज़िन्दगी सिमट जाती हैं
बांधो न दायरों में उसे
उड़ने के लिए पंख दे दो
फिर देखो ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत बन जाती हैं
हर चीज़ में फूलों की खुशबू नज़र आती हैं
रंग-बिरंगे लोग
दुनिया रंगीन नज़र आती हैं!!

शनिवार, 13 मई 2017

धरती एक रंगमंच

नर बनकर के इस धरती पर
समझो जग को न तुम अपना
समझो जिसको यह स्वार्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन का
जिस गौरव के तुम लायक नहीं
उस गौरव का तुम्हे खेद कहाँ
नर हो न निराश करो मन को
जग में आकर कुछ काम करो
सब घुल मिलकर कुछ अपना कर
थे ख़ास वहां, हो ख़ास यहाँ
कुछ ऐसा मिलकर काम करो
जग हैं अपना यह भ्रम न करो
बस रुकना हैं कुछ बरस यहाँ
फिर चल देना अपनी मंजिल
अब राह बना लो मंजिल की
कुछ काम करो कुछ काम करो
नर हो न निराश करो मन को

हरदम खुद पर विश्वास करो!

शुक्रवार, 12 मई 2017

डर

थी चाँदनी रात वो
था मुझे किसी का इंतज़ार
चाँदनी की छंटा
घर के अंधेरे में भी
एक रौशनी बिखेर रही थी
मैं कुछ कड़ीया जोड़ने में लगी थी
रात बढ़ने लगी थी
और मैं बेचैन सी
इधर-उधर टहलने लगी थी
रात की ख़ामोशी मुझे
इस कदर डसने लगी थी
थी चाँदनी रात पर
मन में अँधेरा छाया था
आँखों के सामने
कुक गमगीन साया था
बाहर चाँदनी रात थी ‘
पर अंदर अँधेरा घना था
कुछ चाहत की कसक थी
तो कुछ प्यार का डर
थी चाँदनी रात पर
मन काँप रहा था डर से
क्या करे ऐसी चांदनी रात का
जिसको डर-डर कर गुज़ारा हमने
इससे तो अच्छा होता
रात होती ही नहीं
दिन ढलता ही नहीं
फिर हमे शायद डरने की

ज़रुरत ही नहीं होती!

गुरुवार, 11 मई 2017

अग्नि परीक्षा

कॉलेज के वो दिन आज भी मन को गुद-गूदा देते है जब याद करती हूं तो ऐसा लगता है वो कितने सुनहरे दिन थे. काश ज़िन्दगी वैसी होती. न कोई चिंता न कोई फ़िक्र बस पढ़ाई और अपने दोस्तों के सिवा दुनिया में और कुछ भी होता ऐसा कभी सोचा ही नही, लेकिन अंतिम वर्ष आते-आते हमारे जीवन में परिवर्तन आने लगा. सब अपने आगे के जीवन में क्या करना है इसकी प्लानिंग करने में मशगूल हो गए. लेकिन मेरी सबसे प्यारी सहेली रिया अपनी अलग ही दुनिया में मस्त थी. रिया हमेशा क्लास में अवल आती थी. लेकिन जब भी मैं उससे पूछती कि रिया तुम आगे क्या बनना चाहोगी तो उसका सीधा सा जवाब होता. कुछ नही मैं तो बस अपनी ज़िन्दगी को अपने अंदाज़ में जीऊँगी, मुझे बंधकर जीना पसंद नही. मैं फिर भी उसे अक्सर मौका देखकर ऐसे सवाल पूछ ही लेती थी क्योंकि रिया के जवाब से मेरा मन संतुष्ट नही होता था और मेरी आदत थी कि मैं जब तक संतुष्ट नही हो जाऊं कि सामने वाले का जवाब सही है तब तक मैं दम नही लेती. लेकिन रिया भी आखिर कब तक मुझे झेलती, एक दिन तंग आकर उसने झल्लाते हुए पूछा कि तुम इतनी परेशान क्यों हो मैं अपनी ज़िन्दगी का कुछ भी करूँ. तुम्हे उदास होने की ज़रूरत नही है. मेरे पास वो सब कुछ है जो मुझे चाहिए. मुझे और कुछ नही चाहिए और तुम्हे आज से मेरी कसम है कि आगे से मुझसे ऐसा सवाल नही करोगी.
सहेली की कसम थी सो मुझे तो माननी ही थी. न चाहते हुए भी मैंने उस दिन से उस सवाल पर पूर्णविराम लगा दिया. कॉलेज खत्म होने के बाद मैं भी आगे की पढाई के लिए दुसरे शहर चली गई, अब हमारी मुलाकात बस पत्र और फ़ोन तक सीमित होकर रह गई थी. रिया अपनी ज़िन्दगी में, मैं अपनी ज़िन्दगी के पन्नो को जोड़ने में लगी थी इसी बीच अचानक रिया का एक दिन फ़ोन आया. फ़ोन उठाते ही वह फफक-फफक कर रोने लगी. मैं समझ नही पा रही थी कि ऐसा क्या हुआ कि रिया जैसी जिंदादिल लड़की इस कदर फूट-फूट कर रो रही है. मैंने बड़ी हिम्मत करके उससे पुछा, “रिया रो क्यों रही हो? मुझे बताओगी तभी तो मैं कुछ कर पाऊँगी”, रिया कि आवाज़ सिसकियो के बीच सिर्फ इतना बोल पाई “तुम मेरे पास आ जाओ प्लीज” इतना बोलते बोलते फिर से वह रोने लगी. मैं समझ गई कोई बड़ी बात हुई है अतः बगैर आगे कोई सवाल किए मैंने फ़ोन रखते हुई उसे आश्वाशन दिया कि मैं आ रही हूं.
लेकिन जब मैं रिया के घर पहूंची तो वहां का नजारा देखकर जैसे थोड़ी देर के लिए पत्थर कि बूत सी बन गई थी. फिर मैंने अपने आपको संभाला और जोर से रिया को अपने गले से लगाते हुए सांत्वना देने लगी, “चुप हो जाओ सब ठीक हो जाएगा”. लेकिन वह तो बस रोती ही जा रही थी.
“अब कुछ नही ठीक होगा प्रिया”
रिया को मैं समझती रही काफी देर समझाने के बाद रिया चुप हो गई और गुमसुम होकर एक ओर बैठ गई. फिर थोड़ी देर बाद रिया मुझे अपने कमरे में ले गई और फिर उसके यही सवाल थे कि “प्रिया मैं यह सब कैसे संभालूंगी, मुझे तो कुछ पता नही बाहरी दुनिया में इतनी मुश्किलें है मैं उसका सामना कैसे करुँगी. परिवार में सब लोग बाते कर रहे है कि मुझे अपने आप से दूर ही रखे क्योंकि मैं अपशगुनी हूं. मेरे कदम जब से इस परिवार में पड़े है कुछ न कुछ गलत हो ही हो रहा है.
प्रवीन ने तो मुझे कभी भी फील नही होने दिया कि मैं उनके लिए सही नही हूं. उन्होंने तो मुझे हमेशा अपने पलकों पर बिठा कर रखा लेकिन अब जब प्रवीन नही है मैं कैसे सारी समस्या का समाधान ढूंढूंगी.
मेरे मायके में भी माहौल कुछ अलग सा है मेरे भाई अब अलग अलग रहते है, मम्मी-पापा के गुज़र जाने के बाद उनका नजरिया हमारे प्रति कुछ अच्छा नही है”. इस गमगीन माहौल में भी रिया के लिए कोई सहारा बनकर सामने आई तो वो थी उसकी ननद, शीतल, जिसने जिंदगी के उतार चढ़ाव को बड़े नजदीक से देखा हैं. उसने पुरे परिवार के सामने रिया को सपोर्ट करते हुए कहा, “यह तो निधि की विडम्बना हैं इसमें रिया का क्या दोष. रिया के साथ कोई हो या ना हो मैं उसके साथ हूँ और मैं उसे अपनी आगे की ज़िन्दगी और बच्चों के लिए सही व्यवस्था कैसे करनी हैं उसमें हमेशा साथ दूंगी. रिया और मैं मन ही मन बड़े खुश थे कि आज इस अग्नि परीक्षा की घड़ी में कोई तो हैं जो रिया के साथ हैं और दो दिन बाद रिया को समझा-बुझा कर मैं अपने घर आ गई. साथ ही मैंने रिया से कहा कि, “कभी भी तुम्हें मेरी ज़रूरत हो तो ज़रूर याद करना”.

अगले छह महीने बाद एक दिन रिया का फ़ोन आया. फ़ोन उठाते ही उसने सामने से कहा, “कभी तो मुझे याद कर लिया करो. एक तुम्ही तो हो जिसे याद कर मेरा मन मुस्कुराने को करता हैं और जीवन में आगे बढ़ने और कुछ करने की प्रेरणा मिलती हैं”.

बुधवार, 10 मई 2017

कुमकुम

कुमकुम हो तुम
बड़ी कोमल छुई-मुई हो तुम
अंतर्मन तेरा सुन्दर
पर बाह्य आवरण
क्यों कठोर हैं
तुम चाहों तो अंतरमन जैसा
तेरा बाह्य आवरण भी हो सकता हैं
तुम जैसी भी हो बड़ी सुन्दर हो तुम
करो अपने विश्वास का प्रयोग
छा जाओ कला की दुनिया में
तुम कर सकती हो वो
जो तुमने कभी चाहा ही नहीं
शक्ति हैं तुम्हारे अंदर
पहचानो उसे और चल पड़ो
वक्त बिता नहीं हैं ज्यादा
तुम्हारे अंदर कला हैं अनोखा
उसे बच्चों तक पहुचाओं
और उनके चेहरों की ख़ुशी से
अपने जीवन को महकाओं
तुम कुमकुम हो
कुमकुम की ही तरह

हर ज़िन्दगी को खुशियाँ बाटों!!

सोमवार, 8 मई 2017

आँसू

अब तुम्हे मेरे नयन इतने पराए लगने लगे.
कभी तो आठो पहर मेरी आखोँ से टपकने को बेताब थे.
आज मुझको ही याद नहीं
कब नयनो में नीर आया था.
मेरी आँचल को गिला कर के
मुझे जी भर कर रुलाया था.
कभी खुशियों के नाम पर
तो कभी गम के नाम पर
कभी जीवन के किसी पैगाम के नाम पर
कभी सास-बहू कि किसी खिटपिट के नाम पर
कभी गुड्डे गुड्डियो कि लड़ाई में रोते थे
तो कभी ज़िन्दगी कि उठापटक में रोते थे
कम से कम रोते तो थे.
आखों से दिल का दर्द
छलकता तो था
पर अब ऐसा क्या हुआ

चाहने पर भी आसूं आखों में नही आता.

शुक्रवार, 5 मई 2017

सांझ का पहर

था सांझ का पहर
मैं टेहेल रही थी इधर उधर
चिड़ियों के घोसले में मची थी कुछ हलचल
आकाश में बिजली कड़क रही थी
तूफान आने को बेताब था
मौसम हर पल बदल रहा था.

था सांझ का पहर
हर ओर था चहल पहल
चिड़ियों की झुंड अपने
घोसले की ओर लौट चली थी
खेतो से मजदुर भी घर की ओर 
जाने के लिए तैयार थे
बागों में शांति छाने लगी थी.

था सांझ का पहर
मन में मची थी उथल-पुथल
जाऊ अपने मंजिल की ओर
या घर को लौट चलू
मैं तो मनाने चली थी उसे
पर अपना मन ही इतना बोझिल था
तो क्या मैं मना पाऊँगी
उसे अपने दिल की बात
अपने शब्दों में बता पाऊँगी.

था सांझ का पहर
मन में मची थी उथल-पुथल
कोई रुक कर क्यों है जाता
जब हमे मनाना ही नही आता.
कैसे मैं दिल की बात उन तक पहुंचाऊं
खुद पंछी बन जाऊ
या उनको पंछी बनकर
अपनी मुट्ठी में कैद कर लूँ
ताकि हर सांझ के पहर में
हम दोनों चिड़ियों सा चहचहाऐ

कलरव करे ओर जी भर के गाएं.