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रविवार, 14 मई 2017

दायरा

ज़िन्दगी को एक दायरे में जीने की आदत सी बन गई हैं
कभी इस दायरे की दीवारों को तोड़कर देखो
बाहर बड़ी खुबसूरत दुनिया हैं
ज़िन्दगी की मुश्किलों के बाद
बादलों की नर्म फुहार की ठंडी छांव भी हैं
ज़िन्दगी कभी धुप तो कभी
चांदनी रात की तरह हैं
अपनी साँसे भी बोझिल हो जाती हैं
जब ज़िन्दगी मुश्किल इम्तिहान बन जाती हैं
पर सुनता कहां हैं वो दिल की
जब अपना दिल ही बेईमान बन जाए
सांस थम-थम कर चलने लगे
घड़ियों में बरसो का एहसास दे जाए
ज़मी पर खड़े पल में जन्नत दिख जाए
दायरों में ज़िन्दगी सिमट जाती हैं
बांधो न दायरों में उसे
उड़ने के लिए पंख दे दो
फिर देखो ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत बन जाती हैं
हर चीज़ में फूलों की खुशबू नज़र आती हैं
रंग-बिरंगे लोग
दुनिया रंगीन नज़र आती हैं!!

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