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अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

बुधवार, 26 जुलाई 2017

भारत माता

मोदी जी हम आपको नमन करते है
आपकी देश भक्ति को नमन करते है
आपको लेकर कुछ छन्द जेहन में आए है
उसको अपनी कलम से करबद्ध करते है

नरेन्द्र दामोदर दास मोदी
गुजरात की धरती पर जन्म हुआ इस वीर का
समझी उसने भारत माता की पीर
आज़ादी के 65 वर्ष बीत जाने के बाद भी
भारत माता अपने ही देश के
बहुरूपीए के हाथों गुलाम थी
आज़ादी के उन्मुक्त गगन में
विकास करने का जो सपना
वीरो ने देखा था
वो तोह शहीद होकर चले गए
पर भारत की बागडोर
खुदगर्जो के हाथों में सौंप दिया
पहले अंग्रेज़ छल रहे थे
अब अपना सपूत ही छल रहा है
चोरी, उत्पीड़न, बटवारा और
जाति के नाम पर देश की
अखंडता को ताड़-ताड़ कर रहे है
महानता की आड़ में
देश को गरीबी और अशिक्षा की
अंधकार में धकेल रहे है
चंद लोगो की रोटी पक रही
कभी जम्मू-कश्मीर तो कभी चाइना
के नाम पर डरा रहे है
आज एक वीर
माँ की रक्षा को आगे आया है
मोदी जी ने भारत माता की जय का नारा
गुजरात से लेकर पूरे विश्व में फैलाया है
माँ के सर को गर्व से ऊपर उठाया है
गाँधी जी तो आज़ादी पा कर भी हार गए
भारत को दो टुकड़ो में बाँट गए
गैरों के सामने कभी सर न झुकाया
पर अपनों से ही हार गए
आज भारत माँ से मेरी प्रार्थना  है
अपने इस सपूत का सर कभी न झुकने देना
यह आपका सपूत दुनिया में डंका बजाएगा

मोदी जी के सर पर अपना साया बने रखना

मंगलवार, 25 जुलाई 2017

वीरो की धरती

इस वीर धरा की अवनी के
छोटे से छोटे बालक की
है भीषण हुंकार यही
हम माता के गुण गाएँगे
अपना झंडा फहराएँगे

इस वीर धरा की अवनी के
छोटे से छोटे बालक की
जन्म भूमि पर बलि चढ़ाकर
सीर ऊँचा उसका करके
जन्म दिया है जिसने
हम मात्रभूमि की रक्षा कर
कर्तव्य निभाएँगे अपना

इस वीर धरा की अवनी के
छोटे से छोटे बालक की
उद्देश्य जन्म का नहीं पैसा ओर धन है
जीवन का अंतिम लक्ष्य स्वयं जीवन है
मरना है सबको एक दिन मरना है
लेकिन उद्देश्य देश का ही गौरव बनना है

मात्र भूमि को रक्षा करते ही प्राण तजना है

सोमवार, 24 जुलाई 2017

ख्व़ाब

वह कहता रहा
मैं सुनती रही
ख्वाब मैं अक्सर
उसी की बुनती रही
ख्वाब में जीती रही 
मन की तड़प से बेचैन मै  
जब उससे नज़रे मिलती
मन शांत होता
ओर दिल की प्यास बुझती
मैं कितनी नासमझ थी
ख्वाब मैं बुनती रही
वक़्त बीतता गया
एक दिन अपने हाथों ही
उससे अपने आपको जुदा किया
खुद से ही गैर बता डाला
उसके दिल को झकझोर कर तोड़  डाला
क्यूंकि मेरी मुश्किल कुछ अलग थी
मैं अपने फ़र्ज़ से बंधी थी
अपना प्यार दिल में ही छुपा लिया
बड़ी ही मुश्किल से उसको मैंने
गैर तो बता दिया
अपने एहसास को
अपने दिल में ही सुला दिया
रंग जो प्यार का चढ़ा से
उसको नहला दिया
साबुन से साफ़ करके
दाग भी मिटा दिया
पर किसे पता था
आज भी मेरे दिल में
टिस सी उठती है
काश वो मेरे संग होता
मैं उसके संग होती

दोनों मिल जीवन में रंग भरते

रविवार, 23 जुलाई 2017

सैनिक

देखो गगन में आज सब कुछ डोलता सा दिख रहा है
देखो अकंटक बादलों से घिर गया है आसमा
है देश का दुश्मन खड़ा सीने पे अधम की तरह
है होसला चट्टान का जांबाज़ लेकर के खड़ा
तिरंगा लहराते रहे सर कट गया तो क्या
हो कर शहीद हम सदा इतिहास में छप जाएँगे   

देखो गगन में आज सब कुछ डोलता सा दिख रहा है
देखो समय के क्रोध से तन कापने उसका लगा
जैसे समय के वेग से सोता हुआ सागर जगा
भूचाल ला दूंगा जमी पर मेरे हाथ खोल दो
शासन कि मजबूरी में बंधा हुआ मजबूर हू
वरना पाकिस्तान क्या मेरे चरण की धूल है

देखो गगन में आज सब कुछ डोलता सा दिख रहा है
शासन भी अब कर रहा मंथन हमारे साथ है
जिसकी कोई हस्ती नहीं दहाड़ वर्षो से रहा
सब्र टूटेगा अगर उड़ जाएगा तूफ़ान में
छेर मत इस शेर को महंगा तुझे पड़ जाएगा
रह अपनी सीमा में हमेशा दामन ख़ुशी से भर दूंगा

यह देश भगत सिंह गाँधी का हर समय पड़ोसी धर्म निभाऊंगा!!

शनिवार, 22 जुलाई 2017

राखी

सखी आज राखी का त्योहार आया
मन गगन में नया धूप छाया
हर ओर ख़ुशी के फूल खिले है
रंग-बिरंगे परिधानों में
सजी-सजी बहने है सारी
भाइयो को बांध राखी
दिल में फूली नही समाती
हर कठिन वक़्त में
भाई मेरा साथ देगा
दुनिया के हर गम से मुझको
वो सदा बचाएगा
हर खुसी हर गम में
हर रिस्ता अपना निभाएगा
भाई के घर में बहन
स्थान ऊचा पाएगी
राखी के इस बंधन का
वो हरदम मान बढाएगी

गुरुवार, 20 जुलाई 2017

मैं नीर भरी दूख की बदली

मैं नीर भरी दूख की बदली
मैं स्वप्न सुंदरी सी पगली
इस लोक धरा पर आ पहुची
इसके कण-कण में रचती-बसती
इसके आपात सदा सहती
मैं नयनो में नीर गढ़ा करती
धरती पत्थर पिघली न कभी
पत्थर पर फूल खिले न कभी
मैं सदा इसे घीसती रहती
वो दिन शायद आ जाए कभी
मैं किस्मत अपनी लिखूंगी
ले कलम सुनहरी हाथों में
जीवन परिवर्तन शील बने
गमगीन नहीं रंगीन बने
हर कदम प्रयास परिवर्तन का
मैं मायूस नहीं उल्लाशीत हू
मैं नीर भरी दूख की बदली
कुछ हर्षित हू कुछ चर्चित हू
हर दम परिवर्तन शील बनू
जीवन में कुछ जीवन्त बनू
कुछ अच्छे-अच्छे शब्द गढ़ु 
कोई छंद ख़ुशी का लिख पाती  
मैं नीर भरी दुःख की बदली 
कुछ नीर ख़ुशी का दे जाती

जीवन जीवंत बना जाती!!

रविवार, 16 जुलाई 2017

ख्वाहिश

गुल- गुले से बन गए है
बुल- बुले से बन रहे है
पानी साफ दिख रहा है
पर ख्वाब गम से हो गए है
मॉनसून के आहाट से
खुशियाँ चेहरे पर बनी है
पर गर्मी के कारण
वो मुरझा से गए है
पारा आसमां पे चढ़ा है
जिन्दगी मुश्किल सी हुई है
चंद लोगो में सिमट सी
आज सुविधा यूँ गई है
काश ऐसे दिन जो आते
हर तरफ खुशियाँ छा जाती
प्यार मोहब्बत से सब मिलते
बैर भाव का नाम न होता
हंसी-ख़ुशी सब ओर गूंजती
बच्चे बूढ़े मिलकर गाते
गीत ख़ुशी का आते जाते!!

शनिवार, 15 जुलाई 2017

चाहत

वह कहता रहा 
मै सुनती रही 
ख्वाब मैं अक्सर 
उसी की बुनती रही
हर रोज उसे देखने को 
दिल भोड़ से ही तड़प  उठता 
जब उससे नजरे मिलती 
मन शांत होता और 
दिल की प्यास बुझती 
मैं कितनी नासमझ थी 
ख्वाब बुनती रही 
वक्त बीतता गया 
एक दिन अपने ही हाथो 
उसे अपने आप से जुदा  किया
खुद से ही उसे गैर बता डाला 
उसके दिल को 
झकझोड़ कर तोड़डाला 
क्यूंकि मेरी मुस्किल 
कुछ अलग थी 
मै अपने फर्ज से बंधी थी 
और क्या करती 
अपना प्यार 
दिल में ही छुपा लिया
बड़ी मुस्किल से उसको 
मैंने गैर तो बता दिया 
अपने एहसास को
 दिल में ही सूला  दिया
रंग जो प्यार का चढ़ा था 
उसको फर्ज से नहला दिया 
साबुन से साफ करके 
सब कुछ मिटा दिया 
पर दिल के  एहसास को
 मै मिटा न पाई 
आज भी उस दिन को याद  कर 
मन उदास होता है
कास तुम मेरे संग होते 
अपना भी प्यार संग-संग होता 
जीवन में कुछ उमंग होता
 कुछतो  तरंग होता      

शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

मोहब्बत

जबसे तुमको देखा
नयन चार होने लगे
हम तो अकेले थे
अब तो अकेलेपन से भी प्यार होने लगा
रात भाती नहीं थी मुझको
अब तो उनसे भी प्यार होने लगा
दिन कटे नहीं कटता था
अब तो पलकों में गुजरने लगा
छावं की चाहत होती थी हमेशा
अब तो धुप भी अच्छी लगने लगी
मौसम दिल का क्या बदला
हवा का रुख भी बदलने लगा
चाँद आसमा पर ही अच्छी लगती थी
अब तो जमी पर भी उतारने लगा
रात के सपने डराते थे मुझे
अब तो सपने में भी मजा आने लगा
छुपा लो दिल के किसी कोने में ऐसे
सीप में मोती रम जाती हो जैसे
मेरी चाहत है तेरे दिल की धड़कन बन जाऊं
मैं रहूँ या न रहूँ
पर तेरे दिल की धड़कन में
जिंदा हमेशा रहूँ.

बुधवार, 12 जुलाई 2017

सपनो की मूरत

सपनो में सोया सपनो में खोया
मूरत कब साकार हुई
सूबहो को जब मैं नींद से जागा
आँख उन्ही से चार हुई
परी हो या हो तुम एक मूरत
चाँद सी कोमल
कजरारे है नयन तुम्हारे
मेरा हाल बेहाल हुआ
सपना अब साकार हुआ
छू करके मन शांत हुआ है
जीवन अब आनंद हुआ है
स्वर्ग से उतरी कोई पारी हो
या मेरी आँखों का ब्रम है.
सपनो से इस रंगमहल की
तुम रानी में राजा हू
ख्वाब से तुम साकार हुई
अब सपना फिर मत बन जाना
सूबहो को जब मैं नींद से जागा
धन्य-धन्य मेरे भाग्य हुए
तेरी सूरमयी अंखियो का

जादू अब छाया है मुझपर!

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

समर्पण

आपको अर्पण समर्पण
प्रेममय जीवन समर्पण 
लय समर्पण जय समर्पण
हर ख़ुशी हर सांस अर्पण
चाहतो की प्यास अर्पण
जग ही या जीवन समर्पण
आपकी खातिर है अर्पण
हर सूबह हर शाम अर्पण
ख्वाब के दर्पण समर्पण
चाहतों में आपके मैं
कर दू सारा जग समर्पण
गीत का हर लय समर्पण
मीत तुझको ही है अर्पण
प्यारे में सांसे  समर्पण

आपकी की मुस्कान पर तो
चाँद और सूरज समर्पण
जिन्दगी की हर ख़ुशी 
कर दूँ तुझको ही समर्पण 
हर तरफ तेरी ही सांसें 
कर रही अस्पर्स मुझको 
जिंदगी कुछ वक्त दे तो 
वो भी तुमको कर दूँ अर्पण 

सोमवार, 10 जुलाई 2017

पावन धरती

भारत देश हमारा
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई
सब मिल बैठे एक संग
हिंदुस्तान की धरती ऐसी
पावन पुण्य कर्म हो जैसे
प्रभू अवतार यहाँ लेते है
देव भूमि के नाम से इसकी
चर्चा होती आम
गंगा मैया स्वयं विराजे
नदियों के संगम पर मनता
तीर्थ यह पावन धाम
स्वर्ण आभूषण भरे पड़े है
मंदिर के भी पास
प्यार कि वर्षा धर्म कि चर्चा
गूंजे दशों दिशाओ में
तीर्थों की भरमार यहाँ
हर तीर्थ की छटा निराली
सबकी है फिर कथा निराली
कश्मीर हो या कन्याकुमारी
प्रभू की झलक हर ओर निराली
गोकूल की सडको पर छाए
कृष्णा कृष्णा कृष्णा
बैधनाथ धाम की नगरी में
गूंजे भोले की जयकार
राम की नगरी
अयोध्या नगरी
हिन्दुओ का है पावन धाम 

रविवार, 9 जुलाई 2017

वीर सपूत

तुझे कोटि-कोटि है नमन
तू वीर है सपूत
मातृभूमि तेरा फर्ज है
रुके न तू झुके न तू
यही मेरी पुकार है
रुके न तू थके न तू
सदा चले आगे बढ़े
तू वीर है प्रहार कर
तू अपना पहला वार कर
हिरण सी तुझमे फुर्ती हो
हाथियों का बल हो
भुजा-भुजा फड़क रही
हिला गगन डरा पवन
तू ऐसी ही चीत्कार कर
हिन्द की पुकार है
तू सिंह सा दहाड़ कर
तू लक्ष्य अपना भरद कर
दुनिया को दिखा दे!! 

शनिवार, 8 जुलाई 2017

गुड़िया

मेरी गुड़िया की कहानी
है बड़ी ही निराली
जग झूमे गाए घूमने को जाए
पर मेरी दुनिया
गुड़िया के इर्द -गिर्द  ही कटती
सोने में गुड़िया
जागो तो हाथ  में गुड़िया
पूरी गुड़ियों की बारात है
 मेरे बिस्तरे पर उनकी ही सरकार है
जहाँ देखो गुड़िया
अपनी धुन में सजी बैठी है
गुड़िया से सजा घर
दीवालों पर गुड़िया की तस्वीर
रजाई और गलीचों में भी
उन्ही की आवो हवा है
गुड़िया मेरी जिन्दगी
और मैं गुड़िया की छोटी सी अम्मा
पर एक ही मुश्किल हैं
मैं तो बड़ी हो गई पर
 मेरी गुड़िया अभी भी छोटी ही है
मेरे कपड़े बदल गए पर उसके वही है
मैंने दुनिया को जिया पर
वो आज भी मेरे भरोशे पारी है
आज मैंने जाना कि
ये मेरी गुड़िया तो कपड़ो की बनी है
अलविदा मेरी नन्ही सहेली
अब मै बड़ी हो गई हूं
अब तुमसे खेलना अच्छा नहीं लगता
अब तो मेरे बहूत सारे दोस्त है
तुम्हे अपने यादों में रखूंगी
भूल जाऊ मै जग को
पर तुम्हे नहीं भूल पाऊँगी...

शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

चंद लम्हे

चंद लम्हों की ज़रूरत हैं 
खोई खुशियाँ ये हकीकत हैं 
चन्द्र साँसों की गनीमत हैं 
सांसे सस्ती ही हुई जाती हैं 
पैसा आज भी आसमां पे छाया हैं 
ख्वाहिशे दूर हुई हमसे 
अपने गैरों में हुए तब्दील अब तो 
गैरों से राहत की दुआं करते हैं
चंद लम्हों की ज़रूरत हैं 
हम तो खुशियों को ढूंढा करते हैं 
राते सुनसान सड़क दिखता हैं 
दिल में सब खोया हुआ दिखता हैं 
राहें अनजान बनके कटती हैं 
ज़िन्दगी तूफ़ान में फसी हैं 
नौकां मझदार में अटकी हैं 
चंद लम्हों की ज़रूरत हैं 
चाहे चंद लम्हे ही मिले 
पर वो खुबसूरत हो!!!!

गुरुवार, 6 जुलाई 2017

खुशियाँ

ख़ुशी अंतरात्मा की आवाज है
ख़ुशी उसकी पहचान है
ख़ुशी बाजार में बिकती नहीं
वरना इसपर भी पैसेवालों
का ही हक़ होता
बड़ी-बड़ी दुकानों में
इसकी बोली लगती
खुशियाँ बाँटने से बढती है
छोटी सी है जिन्दगी
इसे खुशियों से गुजार दो
क्यों होड़ में लगे हो
ख़ुशी को अपने भीतर ही तलाशो
जागो मेरे मशीनी भाइयो
जिन्दगी जीने के लिए है
पैसे के बाजार में खोने के लिए नहीं
पैसे तो हम फिर भी यहीं छोड़ जायेंगे
जाएँगी साथ अपनी प्यारी सी हंसी
मनालो खुशियों का त्यौहार
गम को विदा कर देते हैं

ख़ुशी का स्वागत दिल खोलकर करतेहैं!!    

मंगलवार, 4 जुलाई 2017

ज़िन्दगी का सफ़र

नींद से जागा हू कई बार
सो के क्यों चला हू बार बार
ठोकर खाकर गिरा हू हर बार
ज़िन्दगी का मतलब वक़्त ने समझाया मुझे
गैरों के बीच रहकर भी जीना सीखाया मुझे
हर पल को शिद्दत से जीया हमने
ज़िन्दगी में लाख मुश्किल हो पर
खुशियाँ काटों के बीच से ढूढ लाएँगे हम
हमेशा काटों के ताज सर पर  सजाया हमने
ज़िन्दगी हर कुछ बताना चाहती है
पर मौका लगते ही मुंह भी फेर लेती है
दर्द अपनों ने दिया हर दम पर
गिला वक़्त से कम नही मुझको
वक़्त हर बार ठोकर मार देती है
मज़िल जब पास आती है मेरे
कोशिश मैं भी नही छोड़ पाऊँगी
क्युकि ज़िन्दगी मिलती बड़ी मुश्किल से है
शायद हमे फिर से मौका मिले न मिले