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अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

रविवार, 26 नवंबर 2017

जीवन एक रंगमंच

होके मायूस ज़िन्दगी से 
यूँ न निराश होइये 
ज़िन्दगी के चिराग का 
आँधियों से सामना 
तो ज़िन्दगी का अटूट हिस्सा है 
अगर मुसीबत में भी 
हौसला बरक़रार रखा तो 
मुसीबतों के आग में तपकर 
कुंदन बनकर निखरोगे 
हम सीखते हैं उलझनों से 
हर ठोकर हमें और मजबूत बनाती हैं 
ज़िन्दगी को जीने का  
एक नया सबक दे जाती हैं 
गैर और अपनों का 
फर्क समझाती हैं 
रिश्तों के डोर को 
और मजबूत बनाती हैं 
जीवन के उतार-चढ़ाव का 
नाम ही ज़िन्दगी हैं 
जब गैरों के दुःख से भी 
आँख में आँसू छलक आए 
जब खुद पर मुसीबत आए तो 
दिल को चट्टान की तरह 
मजबूत बनाकर रखना 
हम सब ज़िन्दगी के रंगमंच पर 
अपना-अपना किरदार निभाने आए हैं 
फिर क्यों न अपने किरदार को 
पुरे मन से निभाए 
ज़िन्दगी के खूसूरत रंगों को 
खूबसूरती से सजाए 
अपने पीछे कुछ यादगार लम्हे
अपनों को दे के जाए। 

शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

दीपोत्सव

एक प्यार के दीपक से 
सारे जग को रौशन कर दे 
इस बार दिवाली पर 
हर घर में रौनक आ जाए 
हर घर में खुशियाँ छा जाए 
हर चेहरे पे रौशन हो 
दीपोत्सव की खुशियाँ 

एक प्यार के दीपक से 
इस बार दिवाली में 
कर दूर अँधेरा मन की 
संकल्प ये लेना हैं 
सौगात ख़ुशी की सबको 
देना और लेना हैं 

एक प्यार के दीपक से 
इस बार दिवाली में 
तोड़ स्वार्थ के बंधन सारे 
आओ ख़ुशी मनाए 
जिस घर में अँधियारा हैं 
उस घर में दीप जलाए 
दीपक के इस पर्व में हम सब 
मिलकर ख़ुशी मनाए 

एक प्यार के दीपक से 
इस बार दिवाली में 
भेद-भाव को भूल परस पर 
यह दीपक पर्व मनाए!

बुधवार, 22 नवंबर 2017

किसान

बहे पावन पुर्वाही
मौसम में खुशियाँ आई
खुशनुमा दिन-रात शीतल
मंद-मंद मुस्काए मेरा दिल
रिमझिम-रिमझिम पड़ी फुवारे
तन-बदन भीगा मेरा
ये बारिश की चंद फुहारे
दिल की खुशियाँ लौटाए
दिल झूम-झूम के गाए
धरती की रौनक लौटने
अब इंद्रदेव हैं आये
नें हमारे तरप रहे थे
दर्शन तेरे पाने को
फसल हमारे बाट जो होते
हरदम तेरा रहते
पर तुम तो हो
अकड़ में अपने
जब भी आते जोर-शोर से
हमें बहा ले जाते
फिर भी मेरे-तेरे बीच
एक अटूट रिश्ता हैं
एक दूजे के बिन हमें दोनों
रह नहीं पाएंगे
कभी रूठना, कभी मनाना
हम दोनों का ताना-बाना
जीवन का हैं चक्र सुहाना!

मंगलवार, 14 नवंबर 2017

धरा की पुकार

भारत माता नाम हमारा
माँ कहके तुमने हैं पुकारा
सौ वर्षों से मैं गुलाम थी
मेरी खातिर प्राण गवाया
अपनी बली चढ़ाया हँस के
अपनी माँ को खूब रुलाया
पर धरती का क़र्ज़ चुकाया

फिर ऐसी क्या मजबूरी थी
जिसकी सिंहासन से प्रीति थी
उसी को तुमने राजा माना
पल भर क्यों भूल गए
वीरों की कुर्बानी को
बँटवारा कर डाला मेरा

मैं रोती बिलखती रही
कभी अपने वीर बच्चों के शोक में
तो कभी उन गद्दारों के करम पर
जिसने मेरी संतान हो कर भी
गैरों की हाँ में हाँ मिलाई
और मेरी पवित्रता में
जाति और मज़हब का ज़हर घोल दिया
मुझे अपनों ने ही
चन्द लम्हों में तोड़ दिया
जातिवाद के कहर को इतनी हवा दी
कि बरसों पुराना प्यार
पल भर में बिखर गया

मेरे वीर सपूतों जागों
अब और नहीं
अपने अंतर्मन में झाँकों
अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति को पहचानों
हम कमज़ोर नहीं
हम भटक गए हैं
हमारी गति यह नहीं
जिस पर हम अटक गए हैं
सदियों पुरानी हमारी सभ्यता को
यूँ न बिखर जाने दो
तुम सब मिलकर रहो
अपनी ताकत को पहचानों

मेरे वीर सपूतों
मेरे लिए इससे बड़ी कोई कुर्बानी नहीं
अब तो जान देने की नहीं
हौसलों से नया भारत बनाने की तैयारी हैं

बस साथ दे दो मेरा
वो दिन दूर नहीं जब
धरती से आसमान तक
तिरंगा लहराएगा मेरा.

शुक्रवार, 10 नवंबर 2017

आज का आदमी

सर से पाँव तक 
जिम्मेदारी के बोझ तले 
दबा हुआ अज का आदमी 
हंसना-बोलना और गुनगुनाना 
भी भूल बैठा हैं

अपने-पराये का फर्क भी 
कहाँ याद रहता हैं 
पहले तो लोग 
पुराने ज़माने को याद करते थे 
अब तो अपने ज़माने में ही 
गुम हो गया हैं आदमी 

कब सुबह होती हैं 
और कब दिन ढल जाता हैं 
इस सब से बेखबर वह 
अपने में ही गुम रहता हैं 

आज का आदमी 
मशीन से तो जंग लड़ लेता हैं 
पर उसे इंसान का डर 
अन्दर ही अन्दर खा जाता हैं 

आज का आदमी 
जीवन को भरपूर जीना चाहता हैं 
पर उसकी ख़ुशी 
इंसान के साथ जीने में नहीं 
वह मशीनों के इर्द-गिर्द 
अपनी दुनिया बनाता हैं 

लेकिन जब एक दिन 
बचपन और जवानी 
दोनों पीछे छुट जाते हैं 
तब जा कर अपनों की याद आती हैं 

अब इन बातों का क्या फायदा 
ज़िन्दगी निकल चूँकि तनहाइयों में 
आज हर चीज़ पाकर भी खाली हाथ हूँ 

काश पहले समझ जाता 
हमें मशीनों की कम 
परिवार की ज्यादा ज़रुरत हैं 
अपने तो वो होते हैं 
जो हमारी भावनाओं को समझ पाते हैं 
ये दुखद हैं कि 
हमने जिसे अपने लिए बनाया 
हम उसी मशीन के गुलाम खुद बन गए.

गुरुवार, 9 नवंबर 2017

एक दिन की बात

एक दिन की बात है
मैं बड़ी निराश थी
ज़िन्दगी से उदास थी
खुशियाँ मुझसे नाराज़ थी
मुझे अपनों की दरकार थी
जिससे दिल की बात कह सकूँ
एक ऐसे रिश्ते की खोज में
मैं अकेली चल पड़ी

मैं करूँ तो क्या करूँ
अपनी चाहत किससे कहूँ
मेरे इर्द-गिर्द जो भी थे
सब मुझसे जुदा थे
सोच उनकी अलग थी
पर उनकी दुनिया में
मन मेरा रमा नहीं
अपनी उनसे जमी नहीं

उनको मैं कभी अच्छी लगी नहीं
सुर-ताल उनसे मिले नहीं
मैं मगन चलती रही
विघ्न-बाधाओं से लड़कर
सुख-दुःख के खट्टे-मिट्ठे
अनुभवों से गुज़रकर
कब मैं आम से ख़ास बन गयी
मेरा जीवन
कुछ लोगों के लिए
परिहास बनकर भी
दुनिया के लिए इतिहास बन गया

चाहत अपनी भी यही थी
मैं जानती थी
मैं सबसे अलग हूँ
फिर मैं भीड़ का हिस्सा क्यों बनू
कदम मेरे आगे बढ़ चले
फिर आखिर मैं पीछे क्यों मुरु
ज़िन्दगी ने जो भी हमको दिया
हमने हँस कर उसको जी लिया
शायद जिंदगी इसी का नाम है.

बुधवार, 8 नवंबर 2017

उलझन

मन उलझा उलझन में ऐसे
सुलझ न पाया रे
जीवन के दिन बीत रहे यूँ
जैसे भागे रेल

जीवन आधा बीत गया हैं
बचा-खुचा भी बीत रहा है
पर उलझन सुलझाए न सुलझी
राह हमारी कौन

घर में घर वालों के ताने
बाहर दिल को तोड़ रहा हैं
दिखावे की शोर
मन उलझा उलझन में ऐसे
सुलझ न पाया रे

जीवन के बदली में पानी
हो गया इतना कम
आँखों से आंसूं बन करके
बह नहीं पाते अब
मन उलझा उलझन में ऐसे
सुलझ न पाया रे

घोड़ विपत्ति की चादर ने
ओढ़ लिया हैं सबको
इंसानों के मन में नफरत
घोल रहा हैं पैसा
मन उलझा उलझन में ऐसे
सुलझ न पाया रे

पैसों के ताकत के आगे
नतमस्तक हैं रिश्ता
रिश्तों का अब मोल नहीं हैं
पैसे का कोई तोड़ नहीं हैं
जीवन पर कोई जोड़ नहीं हैं
मन उलझा उलझन में ऐसे
सुलझ न पाया रे

उलझन फिर भी आज वाही हैं
कौन हैं सच्चा कौन हैं झूठा
जुदा -जुदा सब रहते हैं अब
मेल मिलाप दिखावा
प्रेम की चादर ओढ़ के देखो
बैर पुराना साधे
मन उलझा उलझन में ऐसे
सुलझ न पाया रे

अजब-गजब इस दुनिया में
सब उलझे अपनी उलझन में
भूल भुलैया बना के छोड़ा
जीवन की सुन्दरता को
मन उलझा उलझन में ऐसे
सुलझ न पाया रे!!!

सोमवार, 6 नवंबर 2017

वह भारत देश हमारा!!

यह वीर भगत सिंह की धरती है
वीरों की गाथा सुन कर के
बच्चे जहाँ हैं सोते
वह भारत देश हमारा

औरत का सम्मान जहां हैं
हर घर में पावन धाम जहां हैं
प्रभु की चर्चा आम जहां हैं
वह भारत देश हमारा

जिश देश की धड़कन गाँव में
जिस देश की शान हैं गाँव में
फसलों की आन हैं गाँव में
आधा हिंदुस्तान हैं गाँव में
वह भारत देश हमारा

वेदों के मंत्रो से गुंजित
सभी दिशाएं होती
सभी लोकों से प्यारा
अपना भारत देश हमारा

गंगा जमुना सरस्वती की
बहती निर्मल धारा
वह भारत देश हमारा

क्षमा दया और प्रेम जहां कि
संस्कृति का हैं हिस्सा
वह भारत देश हमारा

कोटि-कोटि उस जन्म भूमि को
नमन सदा करती हूँ
योग-भोग के बीच संतुलन
करके कायम रखना
यह तो हैं सौभाग्य हमारा
वह भारत देश हमारा!!