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अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

शनिवार, 29 दिसंबर 2018

मेरे प्यारे बच्चों

तुम तारों से दीपक बनकर
एक दिन नम पर छा जाना
करो न तुम विश्राम कभी
ये जीवन पूर्ण विराम नहीं
हर कदम लक्ष्य की ओर बढ़ो
धीमे-धीमे चलकर ही सही
इस कठिन डगर को पार करो
निर्भय निर्लोभ सदा रहना
पग-पग पर तुम डटकर चलना
बस हार-जीत की उलझन में
खुद को उलझाकर मत रखना
हर रोज़ परीक्षा देनी है
हर कदम हमें सिखलाता है
तुम नित्य नए बधाओं से
लड़कर खुद को मजबूत करो
तुम हृदय प्रेम की झरना से
सीचों मुरझाये कलियों को
यह वक्त तुम्हे मुश्किल से मिला
इसे व्यर्थ न यूँ ही जाने दो
हर कठिन डगर पर हिम्मत और कोशिश
ही जीत दिलाती है.

गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

विचार

कुछ कदम हमें आगे बढाने ही होंगे
वर्षों से पड़ी धुल
रिश्तों से हटाने ही होंगे
ख़ामोशी की बढती हुई ऊँची दीवार
को खुद से गिराना ही होगा
काश हमारी धरती
फिर से जन्नत बन जाए
रिश्तों में वही मिठास
फिर से लौट आये
हर घर में खुशियाँ हो
सबको अपनों का साथ मिले
सच्चाई और सादगी हर चेहरे से झलके
हमारे प्यार और खुशियों से
रौशन पूरा संसार हो
जीत हो मेरी और सबकी हार हो
ऐसे विचारों का हम में कभी न संचार हो
हम तभी खुश रह पायेंगे
जब खुशियाँ चारों ओर हो
किसी से कोई गिला-शिकवा न हो
हर ओर अपनत्व का संचार हो
कोशिश अगर हम कुछ करे
तो सामने से हाथ खुद-ब-खुद बढ़ जायेंगे.

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

शेरावाली माँ

ओ माँ शेरावाली
ओ माँ शेरावाली
तुम सारे जग से निराली
तुम सारे जग से निराली
तू है जोतावाली
तेरी अपनी शान निराली
ओ माँ शेरावाली
तू बिगरी बनाने वाली
खुशियों की ज्योत जगा दे
मन का अँधियारा दूर करा दे
माँ हमको अपने दिल में
अपनत्व का बोध करा दे
ओ माँ शेरावाली
मेरी ममता आज जगा दे
मेरा जीवन खास बना दे
मुझे अपने द्वार बुला ले
अपनी आँचल की छाँव में
मुझे अब तो दर्शन दे दे
ओ माँ शेरावाली
ओ माँ जोतावाली.

शनिवार, 6 अक्तूबर 2018

स्त्री

जन्म से संसार में 
सृजन करने को है आई 
अर्पण ही स्वभाव उसका 
दर्पण में है ढालना 
कोई कमी रह जाए ना 
ढालना सांचे में खुदको 
हर नयन से सिख लेती 
हर नयन में ढूंढती 
तस्वीर मेरी कौन-सी है 
जो कभी दर्पण में देखा 
या कभी जग ने दिखाया 
माँ ने हमको क्या सिखाया 
और दुनिया ने बताया 

तू नहीं है बिटिया रानी 
बोझ है तू इस धरा पर 
है नहीं चाहत तेरी कोई 
हो नहीं आहट तेरी कोई 
मेरी ही परछाई बनकर 
तू सदा रह जाएगी 

हमने चाहा तो दिखाया 
हमने चाहा तो छिपाया 
हमने चाहा तो सताया 
तुम को आगे रखना भी 
हिस्सा मेरी नीतियों का 

कब तक छदम का जंग लड़ोगे 
हम पर कुठारा घात करोगे 
हम बने है ऐसी मिट्टी के 
लाख़ जतन कर लोगे फिर भी 
हमें न तुम तोड़ पाओगे 

स्त्री अमरत्व का नाम है 
स्त्री प्रेम का प्रतीक है  
स्त्री दया का सागर है 
स्त्री जीवन में खुशियाँ है  
स्त्री चेहरे की मुस्कान है 
स्त्री निर्मल और पवित्र है 

इसे दिल से महसूस तो करो 
जीवन परिपूर्ण हो जाएगा 
स्त्री माँ,बहन,बेटी ही नहीं 
हर घर में पूजी जाने वाली लक्ष्मी भी है 
इसकी क़द्र करके तो देखो 
ज़िन्दगी जन्नत बन जाएगी.

रविवार, 30 सितंबर 2018

आपबीती

अंतर्मन में होड़ लगी है
जीवन पल-पल बीत रहा है
हर पल, हर क्षण जीत रहा है
पर पल-पल में टूट रहा है
जीवन क्रम से छुट रहा है
बोतल में शाम डुबोता हूँ
कुछ खोता हूँ कुछ पता हूँ
हैं कामयाब लहरे संग-संग 
फिर मैं क्यों गोते खाता हूँ
है चहल-पहल चहुँ ओर मेरे
फिर मैं क्यों नैन भिगोता हूँ
जीवन का है वरदान मिला
फिर मैं इस पर क्यों रोता हूँ
सब कुछ मुट्ठी में भरने की
चाहत ने भूख को मारा है
इस रंग-बिरंगी दुनिया में
काटों का पौध लगाया है
जो भी हमने दुनिया को दी
वापस हमने सब पाया है
फिर रोना क्या फिर गाना क्या
हैं संग-संग मौज मनाना क्या
कुछ सिख मिली
कुछ मीत मिले
जिसने जीवन को जित लिया
अब हम को भी अपनाना है
अब राह अलग बनाना है.

शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

बेरंग ज़िन्दगी

दुनिया में बिखरे हज़ारों रंग
पर क्यों है हम सब की
बेरंग ज़िन्दगी
रिश्तों के नाम में
कितनी मधुरता है
पर वक्त ने उसकी
मिठास भी लेली
हम सब जानते हैं
कि रिश्ते अनमोल होते हैं
पर क़द्र उसकी कौन करता है
जिसने भी रिश्तों की क़द्र की
लोग उसे जाहिल समझते हैं
आज अपने सपनों में हम सब
ऐसे खो गए है कि
हकीकत सामने है
पर दिखाई कुछ नहीं देता
जब टुटता  है घर हमारा
ज़माने को कोस  लेते हैं
पर कभी सोचा है हमने
कि जो हम रोज बोते है
वही तो काटना होगा
हम भी उसी के दायरे में आज आते हैं
क्या वाकई में वक्त इतना बदल गया है
दिल माँ की मूरत से
पत्थर में ढल गया है
सांस चल रही है
पर वक्त थम गया है !!

शनिवार, 22 सितंबर 2018

साईं कन्हैया

ओ मेरे जीवन के खेवैया
तुम हो मेरे साईं कन्हैया
तुम ही मेरे माँ-बाप भैया
नेह नाते दार तुम हो
सब के पालन हार तुम हो

ओ मेरे जीवन के खेवैया
तुम हो मेरे साईं कन्हैया
तुम से है जीवन की ये खुशियाँ
तुम ही मेरे माँ-बाप भैया

ओ मेरे जीवन के खेवैया
सब के पालन हार तुम हो
दीन-दुखी के द्वार तुम हो
हर घडी हर सांस तुम हो
मेरा तो विश्वास तुम हो

ओ मेरे जीवन के खेवैया
तुम हो मेरे साईं कन्हैया
तुम ही मेरे माँ-बाप भैया.

बुधवार, 19 सितंबर 2018

कदम-कदम बढ़ाये जा

कदम-कदम बढ़ाये जा
सफल कदम बढ़ाये जा
वो गीत गुनगुनाए जा
हैं मज़िले आसान ही
कदम-कदम बढ़ाये जा

कदम-कदम बढ़ाये जा
जीवन के उलझनों को
तुम खुद से ही सुलझाए जा
भय ठोकरों का कर नहीं
यह आज है कल फिर नहीं
कदम-कदम बढ़ाये जा

कदम-कदम बढ़ाये जा
वो गीत गुनगुनाए जा
सब हौसला बढ़े तेरा
तू बस सीढ़ियाँ बनाए जा
ज़मीन, गगन, नदी, पहाड़,
सभी को पार कर
कदम-कदम बढ़ाये जा

कदम-कदम बढ़ाये जा
ख़ुशी के गीत गाये जा
हर लक्ष्य हो तुम्हारा
तुम हो विजय सदा
कदम-कदम बढ़ाये जा.

मंगलवार, 18 सितंबर 2018

दुनियावालों

सुनो-सुनो ऐ दुनियावालों
इतिहास करवट लेने वाला है
हाइफा के समुद्र तट पर
दो वीर सपूत के
पानी के साथ करते अठखेलियों को
देख रहा है विश्व ध्यान से
क्या यह है संकेत मिलन का
या फिर आने वाली कोई क़यामत है

सुनो-सुनो ऐ दुनियावालों
इतिहास करवट लेने वाला है
यूँ नहीं दौड़ लगा रहे दुनिया के
वह तो भीष्मपितामह है
दाढ़ी पक गयी बाल पक गए
फिर भी जोश जवानों सा

सुनो-सुनो ऐ दुनियावालों
इतिहास करवट लेने वाला है
यह देश चल पड़ा प्रगति की राह पर
अब यह नहीं रुकने वाला है

सुनो-सुनो ऐ दुनियावालों
इतिहास करवट लेने वाला है
तुम जोर लगा लो लाख मगर
अब हमें नहीं पीछे मुड़ना है
हैं साथ हमारे भीष्मपितामह
हैं नहीं किसी का डर हमको.

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

अवलोकन

जीवन पथ है, ढुलमुल रथ है
पथ पर कंकड़ ढेर मिलेंगे
जीवन पर्याप्त वहन करना
बस मंद गति चलते रहना
खाना-पीना-सोना-जगना
जल-सा चंचल बहते रहना

जीवन पथ है, ढुलमुल रथ है
कांच-सा कोमल तन-मन मेरा 
ठोकर की भरमार यहाँ है 
प्रेम-द्वेष और विरह मिलन का 
संगम हैं संसार ये मेरा 

जीवन पथ है, ढुलमुल रथ है 
धुप-छांव से आते जाते 
सुख-दुःख का संगम जीवन है 
आपा-धापी होड़ लगी है 
सबको पीछे छोड़ चले हम 
नियति की गति तोड़ चले हम
खुद से खुद को भूल चले हम.

सोमवार, 3 सितंबर 2018

तुम बिन जीना सिख रही हूँ

तुम बिन जीना सिख रही हूँ
गम को पीना सिख रही हूँ
जब मैं निकलू घर से बाहर
नभ में तुमको ढूंढ रही हूँ
अब तो तुम को पाना मुश्किल
पाकर खोना सिख रही हूँ

तुम बिन जीना सिख रही हूँ 
गम को पीना सिख रही हूँ
तन्हाई के बादल भी अब
मुझसे बाते करते है
मेरी पलके ढूंढे तुमको
भीड़ भरे चौराहों पर

चिड़ियों के कलरव के संग-संग
मैं तो गाना सिख गयी हूँ
दिन चढ़ते ही दुनिया के संग
मैं अब लड़ना सिख गयी हूँ
तुम बिन जीना सिख रही हूँ 
गम को पीना सिख रही हूँ

भूल परायो-अपनों का गम
जीवन जीना सिख गयी हूँ
मौसम आये जाए कोई
आंसू पीना सिख गयी हूँ
तुम बिन जीना सिख गयी हूँ
गम को पीना सिख गयी हूँ.

रविवार, 2 सितंबर 2018

विस्मय

मन विचलित था
राह भ्रमित थी
खोज रहा मेरा मन कुछ था
सोच की उलझन समझ पे भारी
दूरगामी परिणाम का डर था
सत्य कौन है, कौन अधर्मी
इस नाटक के पात्र सभी है
कौन बनेगा हीरो
किसको पात्र मिलेगा विलेन का
हर चरित्र की अपनी लै है
फिर मन में डर क्यों बैठा है
भला-बुरा हम सोच-सोच के
उलझन बड़ी बनाते है
जो भी पात्र हमें मिलता है
क्यों नहीं दिल से निभाते है
ऊपर बैठे निर्देशक ने
हम को जो निर्देश दिए 
हम ने दिल से उसे निभाया 
खुशियों को हमने अपनाया.

गुरुवार, 30 अगस्त 2018

लम्हा

यूँ सबके सामने आसूओं को छलकाया न करो
दिल के दर्द यूँ सरेआम दिखाया मत करो
गम हज़ार है अपनी ज़िन्दगी में
पर लोगों को अपने पर
तरस खाना का मौका मत दीजिये
ज़िन्दगी का हर लम्हा कीमती है
इसकी कीमत सिर्फ गम से न आंकिए
खुशियाँ हज़ार आकर चली जाती है
हम कुछ नही सीखते
पर गम का एक लम्हा ही
कई सबक दे जाता है
जहाँ दिल से दिल न मिले
वह शब्दों को जाया न कीजिये
शब्द प्रेम में खुशबु, दर्द में मरहम तो
लड़ाई में वाण से भी तीक्ष्ण है
शब्दों के मायाजाल में
खुद को न धकेलिए
आज इस लम्हे में सब तन्हा हैं
शब्द की तन्हाई को कुछ कम न आकिये.

मंगलवार, 21 अगस्त 2018

सरल सुगम मेरी रचना है

सरल सुगम मेरी रचना है
जीवन तल पर यह सपना है
मन मंदिर सुन्दर सपना है
जीवन ज्योति जलाये रखना

सरल सुगम मेरी रचना है
दीपक-सा जीवन जलता है 
फिर कुछ सुन्दरतम लिखता  है 
कलियों-सी कोमलता मन में 
पुष्प की भाँति खिला है चेहरा 

सरल सुगम मेरी रचना है 
हर उलझन का ओढ़ के चादर 
निर्मल मन फिर कुछ लिखता है 
जीवन क्रम की डोर है उलझी 
लेखनी अपनी सरल सुगम है 

सरल सुगम मेरी रचना है 
हर पल उलझन आती है 
लेखनी बरबस मुस्काती है 
अब क्या कलम टिका पाओगे 
मन की दुविधा रच पाओगे 

सरल सुगम मेरी रचना है 
है क्या कलम में इतनी ताकत 
हर सच्चाई लिख पाओगे 
कठिन डगर है मुश्किल पल है 
वक्त पर इसका ज़ोर नहीं है 
है स्वक्छंद कलम अब अपनी 
हर पल को अब लिख डालेंगे।

गुरुवार, 9 अगस्त 2018

साईं माता

मुक्ति के प्रदाता
बुद्धि वर दाता
जग में उजियारा कर दो
मेरे साईं माता
हे प्रभु हे, साईं मेरे
जीवन ज्योति दाता
मुक्ति के प्रदाता
बुद्धि वर दाता
मेरे साईं माता

जीवन ज्योति दाता
मेरे साईं माता
प्रेम के प्रदाता
दीन दुखी के तारण हार
हर ख़ुशी के तुम आधार

हे प्रभु मेरे प्राणाधार
कर दे मेरा बेर पार 

गुरुवार, 26 जुलाई 2018

अन्धविश्वास

दाता के नाम पर
प्रेम के काम पर 
ख़ुशी के इज़हार पर 
सब कुछ लुटा दे 
ऐसे हम भारतवासी हैं 

जीवन तन्हाई में 
अपनों की जुदाई में 
पडोसी से लड़ाई में 
अपना सब कुछ लुटा दे 
ऐसे हम भारतवासी है

एक पत्थर को भी
गलती से भगवान बता दिया
बस क्या है
उसकी पूजा में
लम्बी-लम्बी लाइन लग जाती है

हर कोई नया किस्सा गढ़ लेता है
ज़िन्दगी तन्हा है यहाँ
पर भगवान् के नाम पर
भीड़ का आलम है
हम बार-बार लुटते है
पर संभलते क्यों नहीं.

मंगलवार, 24 जुलाई 2018

जन-जन तक पहुचाएंगे

जन-जन तक पहुचाएंगे
प्रगति की बयार बहाएंगे
हर घर में उजाला होगा
रोज़गार हर हाथ में होगा

कदम-कदम पे रौनक होगी
हर चेहरे पर खुशियाँ होंगी
जीवन सरल-सुनहरा होगा
खुशियों के बरसात से जैसे
घर-आँगन मुस्कुराएगा

फिर से अपना वही पुराना
भारत वर्ष ले आएँगे
राम-राज्य सा वैभव फिर से
हम लौटा ले आएँगे

गौरवमयी इतिहास हमारा
आज को भी सुन्दरतम सदी का
ताज दिला कर जाएंगे

था भारत महान हमारा
सदा महान कहलाएंगे
इस धरती का पूत्र हमेशा
विश्व गुरु कह लाएगा.

गुरुवार, 7 जून 2018

श्रृंगार प्रकृति का

जतन जतन से
रमन चमन से
करते हम श्रृंगार प्रकृति का

नयन नयन से
नयन सपन से
करते हम श्रृंगार प्रकृति का

फूल पवन से
वर्षा के जल से
बादल के गर्जन-तर्जन से
करते हम श्रृंगार प्रकृति का

सूरज चंदा के आना से
दिन और रात के विरह मिलन से
करते हम श्रृंगार प्रकृति का.

रविवार, 8 अप्रैल 2018

वरदान

अपनी संतान को एक वरदान दे
माँ हमें ज्ञान दो, दिल में तूफ़ान दो
भक्ति-सेवा का मुझमें संचार हो
करुणा-दया दिल की आवाज़ हो
अपने मन में हो सम्मान सबके लिए

अपनी संतान को एक वरदान दे
माँ हमें ज्ञान दो, प्रेम का मान दो
सेवा भाव का हम्मे अरमान हो
जो मेरी जान हो सबकी पहचान हो
सच्ची सेवा का ही अपना अरमान हो

अपनी संतान को एक वरदान दो
मा हमें ज्ञान दो सत्य का मान दो
अहंकार सब मिटा दो माँ
वरदान दो प्रेम का ज्ञान दो
माँ हमें ज्ञान दो, माँ हमें ज्ञान दो

अपनी संतान को एक वरदान दो
माँ हमें ज्ञान दो, माँ हमें ज्ञान दो
कण-कण में सुख का संचार दो
हर घर में शांति का वरदान दो
जीवों के मम में दया भाव दो
माँ हमें ज्ञान दो एक वरदान दो.

शनिवार, 24 मार्च 2018

मौसम

हर ओर ख़ुशी है छाई
मौसम ने ली अंगड़ाई
पतझड़ के बाद वसंत है आई
सूखे पत्ते झड-झड कर
चारों ओर है फैले
शीतल हवा के झोकों से
उड़ते ये सूखे पत्ते
हर कानों में मधुर ध्वनि
माहौल में ख़ुशियाँ फैलाते
मन उमंग से भर तब जाता
हम गीत फाग के गाते
फसल हमारे घर तक आते
नए-नए पकवान बनाते
मौसम तेरा क्या जादू है
कभी ख़ुशी तो कभी ग़मों का
सागर लेकर आते
घर-घर में खुशियाँ फैला कर
फिर तुम घर को जाते
नई उमंगें नया सवेरा
हमको देकर जाते
मेरे सूने जीवन में तुम
नए रंग भर जाते
फूलों की मुस्कान सदा ही
अपने दिल को भाति
रंग-बिरंगे फुल खिले है
प्रकृति का श्रृंगार सुहाना
अपने मन को भाया
जीवन में भी रंग हो ऐसे
हर मन में खुशियाँ हो इतनी
जितनी वसंत में रौनक.

मंगलवार, 20 मार्च 2018

वक्त नहीं

आँखों में नींद है मेरी
पर सोने का वक्त नहीं
दिल है गमो से भरा
पर रोने का वक्त नहीं

पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े
कि थकने का भी वक्त नहीं
पराए एहसानों की क्या क़द्र करे
जब अपने सपनो के लिए ही वक्त नहीं

तू ही बता ए ज़िन्दगी
इस ज़िन्दगी का क्या होगा
कि हर पल मरने वालों को
जीने के लिए भी वक्त नहीं.

शनिवार, 10 मार्च 2018

सांझ ढले

तुम पावन दिल तेरा निर्मल
गंगा की धारा सी कल-कल
चंचल निर्मल हवा बसंती
जीवन क्षण-क्षण परिवर्तित
रात गई फिर बात गई
पर अपने जज़्बात गए

शाम ढले जब आम तले
अपनों के जज़्बात मिले
कुछ ख़ास कहे कुछ आम कहे
कुछ खट्टी-मीठी याद बनी
वर्षों के यूँ विरह-मिलन के
रंग में हम सब डूब के यूँ सरोबार हुए
चाहत अपनी लबो पे लेकर
हम सबने कुछ ख़ास किए

खट्टी-मीठी यादों में जब
हमने सबको याद किए
सहज-शांत से जीवन में
पलती चिंगारी का एहसास किया
उस आम तले हम आज मिले
इन आमों के मंजर ने
वर्षों तक मेरे राह तके
हमने भी उनको याद किया
साँसे अनजान सी आहट पर
हर बार उचक कर मुड़ता था

पर राहें सुनी मिलती थी
आँखों में आंसूं भरकर के
चुपचाप रहे
हम शांत रहे
पर आम तले जब आज मिले
सारे गिले शिकवे भूले
हम आज मिले जब आम तले.

सोमवार, 5 मार्च 2018

तुम बिन

तुम बिन हर चीज़ आधी है
हर ख़ुशी अधूरी सी
हर लम्हा उदास है
हर बात आधी सी

तुम बिन फूल भी काँटे नज़र आते है
अपने भी बेगाने सा सुलूक करते है
हर किसी की नज़रे घूरती है
जैसे हमने कोई बड़ा अपराध कर दिया है
सच्चाई भी बेबसी का चादर ओढ़ लेती है
अपनी साँसे भी खुद को डराने लगती है

तुम हो तो ज़िन्दगी रूहानी है
तुम हो तो मौसम सुहाना
तुम हो तो हर घड़ी हर दिन
वसंत का मौसम है

तुम हो तो लम्हा-लम्हा
जीवन खुशनुमा बन जाता है
तुम हो तो जीवन में रंग सारे है
तुमसे हँसी तुमसे ख़ुशी
तुम से ही ज़िन्दगी के धुप-छाँव सारे है.

रविवार, 4 मार्च 2018

एहसास

प्यार के एहसास से
मेरा दिल झूम उठा
जब मैंने अपने लिए
किसी को मुस्कुराते हुए देखा
अपने चेहरे के भावों को
मेरे से पहले पढ़ते हुए देखा

मैं सुनती थी
लोग एक दुसरे से
प्यार करते है
प्यार में जीते है
प्यार के लिए मरते है
प्यार अनमोल होता है
जिसने अपने प्यार को पा लिया
उसने जग पा लिया

पर मेरे लिए तो ये सब
एक कोरी कल्पना थी
किस्से और कहानियों में
सुनना बड़ा प्यारा लगता है
पर जीवन की कडवी सच्चाई के आगे 
प्यार की परिकल्पना भी 
जीवन की सबसे बड़ी जंग 
जीतने के बराबर है 

पर ये कल्पना वाकई में सच है 
प्यार तो हर रिश्ते में अनमोल है 
बस इसको दिल से महसूस करने की देर है.

शनिवार, 3 मार्च 2018

प्रेमराही

मेरी चाहत परवान चढ़े
मैं ऐसा कृत्य करूँ कैसे
फूलों सी माला बनकर के
मैं तेरे गले का हार बनूँ
तेरे सौंदर्य की आभा को
मैं कांति और प्रदान करूँ
जीवन अनमोल खज़ाना है
इसको तुम पर ही लुटाना है
तेरी पलकें थी नयन मेरे
जो देख सुकूं से भारती थी
जीवन तेरा
मैं उसकी हर साँस बनूँ
तू चाहत हैं
मैं प्यास बनूँ
तू है दरिया
मैं उसका एक किनारा हूँ
पानी की बहती धारा है तू
मैं प्यासा भृंग जनम भर का
तुम प्रेम की मृगमरीचिका
मैं रेतो का बना श्रृंखला
जून माह की दोपहरी में
मैं सूरज का ढाल बना
तुम बरसाती बादल बनकर
मेरा तेज मिटा डाला
तेरी साँसों में खुशबू बनकर
खुद को अमरत्व प्रदान किया
बनकर दोनों प्रेम के राही
कई को प्रेम सिखा डाला
जीवन को एक नई दिशा
अपनों को खुशियाँ बांटा है
प्रेम है पूजा, प्रेम है दर्पण
प्रेम ही जीवन सार
प्रेम बिना सब खाली-खाली
हम है राही तुम हो राही
प्रेम बाँटकर, प्रेम है पाना
प्रेम की भाषा सबको सिखाना
अपना जीवन मंत्र बनाना.

गुरुवार, 1 मार्च 2018

मेरे साथियों

काँप उठे दश दिशाएँ एक ही हुंकार से
चल पडों तो कोई अड़चन राह में आए नहीं
मंजिलों को दोस्त अपना तुम बनालो साथियों
डट पडों मैदान में, रण छोड़ बैरी भाग ले
मिट्टी में डालो दाने तो, सोना उगा दो साथियों
तोड़कर इस जाति भाषा धर्म की जंजीर को
मानवता को धर्म अपना तुम बना लो साथियों
ये जमीं है कर्म भूमि
जीवन तपोवन साथियों
हर दिशा हर राह में
खुशियाँ बिछा दो साथियों
सब रहे मिलजुल कर ऐसा
रुख बना दो साथियों
ये धरती हैं वीरों की
उनको जगा दो साथियों
ये नहीं किस्सा हमारा
है हक़ीकत साथियों
फिर से अपनी इस जमीं पर
अपने निर्मल प्रेम की
गंगा बहा दो साथियों
हर फिज़ा में खुशबू अपने देश की
फैला दो मेरे साथियों...

शनिवार, 20 जनवरी 2018

जीवन रण

जीवन के रण में काँटे थे
हर ओर निराशा पसरी थी
गमगीन निगाहे घूर रही
सबके अधिकार का रोना है
हो गई मित्रता उलझन से
कुछ मिला न हमको किस्मत से
हर रोज़ नई उलझन
हर कदम चुनौती भरा मिला
सौ बार गिरे, सौ बार उठे
हर बार कदम कुछ और चले
कुछ खास मिले, कुछ बिछड़ गए
कुछ ने तो पत्थर भी मारे
पीकर अपमान के घूँट सभी
जीवन पथ पर कुछ और चले
क्या कोई अंत मिलेगा इसका
जीवन के रण में शांत खड़े
यह सोच-सोच हम ठिठक गए
कोई तो छोड़ मिलेगा
कोई तो मोड़ मिलेगा
है कैसा कसूर ये मेरा
कि तुमने भी मेरी ही खातिर
सारे उलझन समेट है रखे
मैं कैसे वहन करूँ इन सबको
कैसे सहन करूँ मैं
जीवन के दुर्गम पथ पर
कैसे निर्वहन करूँ मैं
मेरी जीवन की खातिर भी तो
तुमने कुछ सोचा होगा
काटों के चुभने से जो जख्म लगे है
उन ज़ख्मो की खातिर
कोई तो मरहम होगा
हर बार हारना ही क्या
जीवन का लक्ष्य है मेरा
मेरी मेहनत का मुझको
कुछ तो परिणाम मिलेगा
है कितने किस्से तेरे
जीवन को स्वर्ग बनाने की
पर मेरी विनती से तुमको
कोई फर्क न पड़ता
कहते है
भगवान् हमारे साथ सदा ही होते
पर मेरी विनती भी उनको
कभी न पिघला पाई
मैं जीवन के रण में उनको
हर दम ढूंढा करती
पर मेरी कोशिश में  मुझको
खानी मूंह की होती
फिर भी जीवन के रण में
है आगे बढ़ते रहना
हर मुश्किल के बाद
कदम दर कदम हमें हैं बढ़ना.

गुरुवार, 18 जनवरी 2018

समय

समय की कीमत को
जिसने पहचान लिया
ज़िन्दगी के मर्म को उसने बस जान लिया
हर सुबह एक नया सवेरा लेकर आता है
हर चांदनी रात हमारे लिए कुछ सवाल छोड़ जाती है
जीवन पथ पर सिर्फ चलना ही काफी नहीं
समय के मर्म को गहराई से समझना होगा
समय हँसाता भी है
समय रुलाता भी है
हर किसी की ज़िन्दगी
समय के रथ पर ही सवार है
किसी की नैया बेड़ा पार है तो
किसी की मझदार में ही फंसी है
हर किसी को समय की मार खानी ही पड़ती हैं
कोई उस चक्र को मौन में गुजार देता है
तो किसी की चीख़ पूरी दुनिया सुनती है
फर्क है तो सिर्फ हमारी सोच का
समय का काम है चलना
ये हम पर निर्भर करता है कि
हम उसके साथ चले या
फिर वापस लौट चले.

रविवार, 14 जनवरी 2018

वो

वो न जाने कब बन गई थी
मेरी ज़िन्दगी का अटूट हिस्सा
साँसों में फूलों की महक बनकर बस गई थी
रातों को सपनो में
दिल को सूरज की गर्मी में
उसका हर रूप अपने आप में अनोखा है
अपने सपने को चंद लम्हों में हमने समेटा है

फूलों सी कोमलता, शहद सी मिठास
भौड़ों सी व्याकुलता
मिट्टी सी खुसबू
हवा जैसी चंचलता
इत्र के जैसी सुगंध
हौसला पहाड़ों सा लेकर
रात्रि की तरह गहन अंधकार में भी
जीवन की राह ढूंढने ने की हिम्मत
चेहरे पे पूर्णमासी के चाँद सी फैली मुस्कुराहट

उसके एहसास ने मुझमें
हर पल असीमित उर्जा का संचार कर दिया है
मुझ जैसे साधारण प्राणी को
एक मुकम्मल इंसान बना दिया.

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

जीवन साथी

अब सौप दिया हैं जीवन का
हर भार तुम्हारे हाथों में
हर जीत तुम्हारे हाथों में
हर हार तुम्हारे हाथों में

अब सौप दिया हैं जीवन का
हर भार तुम्हारे हाथों में
तुम ही अब मेरी किस्मत हो
तुमसे जीवन की रौनक है

अब सौप दिया हैं जीवन का
हर भार तुम्हारे हाथों में
परिवार तुम्हारा या मेरा
अब सब कुछ तेरा है अपना
इन अनजानों की बस्ती को
अपनत्व का पाठ पढ़ा देना

अब सौप दिया हैं जीवन का
हर भार तुम्हारे हाथों में
रिश्तों की लाज सदा रखना
हर रिश्ता जीवन ज्योति है
जीवन सुख-दुःख का मोती है

अब सौप दिया हैं जीवन का
हर भार तुम्हारे हाथों में
जीवन के मुश्किल से डरना
या उससे लड़कर
जीवन के पथ पर आगे बढ़ना
है दायित्व तुम्हारा सब अपना

अब सौप दिया हैं जीवन का
हर भार तुम्हारे हाथों में
करबद्ध निवेदन करता हूँ
कितनी भी मुश्किल आ जाए
सब लोग विरोधी हो जाए
पर अपना कर्तव्य निभाना
भूल न तुम साथी जाना

अब सौप दिया हैं जीवन का
हर भार तुम्हारे हाथों में
जीवन तो दर्पण है मेरा
उस दर्पण को पढना सीखो
मुश्किल तो आता-जाता है
पर रिश्ता सदा निभाना है.

सोमवार, 8 जनवरी 2018

नन्ही परी

मन की व्यथा
मन की दशा
सब हो गई विपरीत जब
मन द्वंद्व में फंसता गया
उलझन बड़ी मुश्किल हुई
मैं सोचती जितना रही
उतना उलझता मन गया

मन की व्यथा
मन की दशा
सब हो गई विपरीत जब
मैं भूलकर उस दृश्य को
हंसने की कोशिश खूब की
पर मन में उलझन अब भी थी
वो दृश्य जैसे मन के दर्पण में
हमें झकझोरती सी कह रही

मन की व्यथा
मन की दशा
सब हो गई विपरीत जब
मेरी कथा, मेरी व्यथा
तुम सुन सको तो
सुन ज़रा
शुरुआत मेरी भव्यता से पूर्ण है
पर दिल में मेरे दर्द की चुभन है

मन की व्यथा
मन की दशा
सब हो गई विपरीत जब
डोली मेरी फूलों से सज के आई थी
पर ज़िन्दगी काटों का फैला रण हैं
सबका अपना-अपना आकलन है
पर मेरी चाहत का किसको गम है

मन की व्यथा
मन की दशा
सब हो गई विपरीत जब
बराबरी का हक़ मुझ भी चाहिए
मैं ममता की मूरत हूँ
पर पत्थर कब तक खाऊँगी
इन पत्थर के चोटों को मैं
लौटाकर ही जाउंगी

मन की व्यथा
मन की दशा
सब हो गई विपरीत जब
मानवता के रखवालों से
अर्ज हमारी इतनी है
ममता के इस मूरत से
ममता का अधिकार न छीने
जीवन की अनमोल क्षणों को
कीमत से छोटा मत करना

रिश्ते जुड़कर बने अनोखे
तोल-मोल से दूर रहे वो
दो परिवारों को जोरुंगी
हर रिश्ता अपना कर के मैं
एक नया आयाम लिखूंगी.