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सोमवार, 8 जनवरी 2018

नन्ही परी

मन की व्यथा
मन की दशा
सब हो गई विपरीत जब
मन द्वंद्व में फंसता गया
उलझन बड़ी मुश्किल हुई
मैं सोचती जितना रही
उतना उलझता मन गया

मन की व्यथा
मन की दशा
सब हो गई विपरीत जब
मैं भूलकर उस दृश्य को
हंसने की कोशिश खूब की
पर मन में उलझन अब भी थी
वो दृश्य जैसे मन के दर्पण में
हमें झकझोरती सी कह रही

मन की व्यथा
मन की दशा
सब हो गई विपरीत जब
मेरी कथा, मेरी व्यथा
तुम सुन सको तो
सुन ज़रा
शुरुआत मेरी भव्यता से पूर्ण है
पर दिल में मेरे दर्द की चुभन है

मन की व्यथा
मन की दशा
सब हो गई विपरीत जब
डोली मेरी फूलों से सज के आई थी
पर ज़िन्दगी काटों का फैला रण हैं
सबका अपना-अपना आकलन है
पर मेरी चाहत का किसको गम है

मन की व्यथा
मन की दशा
सब हो गई विपरीत जब
बराबरी का हक़ मुझ भी चाहिए
मैं ममता की मूरत हूँ
पर पत्थर कब तक खाऊँगी
इन पत्थर के चोटों को मैं
लौटाकर ही जाउंगी

मन की व्यथा
मन की दशा
सब हो गई विपरीत जब
मानवता के रखवालों से
अर्ज हमारी इतनी है
ममता के इस मूरत से
ममता का अधिकार न छीने
जीवन की अनमोल क्षणों को
कीमत से छोटा मत करना

रिश्ते जुड़कर बने अनोखे
तोल-मोल से दूर रहे वो
दो परिवारों को जोरुंगी
हर रिश्ता अपना कर के मैं
एक नया आयाम लिखूंगी.

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