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अयोध्या धाम

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शनिवार, 3 मार्च 2018

प्रेमराही

मेरी चाहत परवान चढ़े
मैं ऐसा कृत्य करूँ कैसे
फूलों सी माला बनकर के
मैं तेरे गले का हार बनूँ
तेरे सौंदर्य की आभा को
मैं कांति और प्रदान करूँ
जीवन अनमोल खज़ाना है
इसको तुम पर ही लुटाना है
तेरी पलकें थी नयन मेरे
जो देख सुकूं से भारती थी
जीवन तेरा
मैं उसकी हर साँस बनूँ
तू चाहत हैं
मैं प्यास बनूँ
तू है दरिया
मैं उसका एक किनारा हूँ
पानी की बहती धारा है तू
मैं प्यासा भृंग जनम भर का
तुम प्रेम की मृगमरीचिका
मैं रेतो का बना श्रृंखला
जून माह की दोपहरी में
मैं सूरज का ढाल बना
तुम बरसाती बादल बनकर
मेरा तेज मिटा डाला
तेरी साँसों में खुशबू बनकर
खुद को अमरत्व प्रदान किया
बनकर दोनों प्रेम के राही
कई को प्रेम सिखा डाला
जीवन को एक नई दिशा
अपनों को खुशियाँ बांटा है
प्रेम है पूजा, प्रेम है दर्पण
प्रेम ही जीवन सार
प्रेम बिना सब खाली-खाली
हम है राही तुम हो राही
प्रेम बाँटकर, प्रेम है पाना
प्रेम की भाषा सबको सिखाना
अपना जीवन मंत्र बनाना.

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