यह ब्लॉग खोजें

Translate

विशिष्ट पोस्ट

अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

रविवार, 30 सितंबर 2018

आपबीती

अंतर्मन में होड़ लगी है
जीवन पल-पल बीत रहा है
हर पल, हर क्षण जीत रहा है
पर पल-पल में टूट रहा है
जीवन क्रम से छुट रहा है
बोतल में शाम डुबोता हूँ
कुछ खोता हूँ कुछ पता हूँ
हैं कामयाब लहरे संग-संग 
फिर मैं क्यों गोते खाता हूँ
है चहल-पहल चहुँ ओर मेरे
फिर मैं क्यों नैन भिगोता हूँ
जीवन का है वरदान मिला
फिर मैं इस पर क्यों रोता हूँ
सब कुछ मुट्ठी में भरने की
चाहत ने भूख को मारा है
इस रंग-बिरंगी दुनिया में
काटों का पौध लगाया है
जो भी हमने दुनिया को दी
वापस हमने सब पाया है
फिर रोना क्या फिर गाना क्या
हैं संग-संग मौज मनाना क्या
कुछ सिख मिली
कुछ मीत मिले
जिसने जीवन को जित लिया
अब हम को भी अपनाना है
अब राह अलग बनाना है.

शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

बेरंग ज़िन्दगी

दुनिया में बिखरे हज़ारों रंग
पर क्यों है हम सब की
बेरंग ज़िन्दगी
रिश्तों के नाम में
कितनी मधुरता है
पर वक्त ने उसकी
मिठास भी लेली
हम सब जानते हैं
कि रिश्ते अनमोल होते हैं
पर क़द्र उसकी कौन करता है
जिसने भी रिश्तों की क़द्र की
लोग उसे जाहिल समझते हैं
आज अपने सपनों में हम सब
ऐसे खो गए है कि
हकीकत सामने है
पर दिखाई कुछ नहीं देता
जब टुटता  है घर हमारा
ज़माने को कोस  लेते हैं
पर कभी सोचा है हमने
कि जो हम रोज बोते है
वही तो काटना होगा
हम भी उसी के दायरे में आज आते हैं
क्या वाकई में वक्त इतना बदल गया है
दिल माँ की मूरत से
पत्थर में ढल गया है
सांस चल रही है
पर वक्त थम गया है !!

शनिवार, 22 सितंबर 2018

साईं कन्हैया

ओ मेरे जीवन के खेवैया
तुम हो मेरे साईं कन्हैया
तुम ही मेरे माँ-बाप भैया
नेह नाते दार तुम हो
सब के पालन हार तुम हो

ओ मेरे जीवन के खेवैया
तुम हो मेरे साईं कन्हैया
तुम से है जीवन की ये खुशियाँ
तुम ही मेरे माँ-बाप भैया

ओ मेरे जीवन के खेवैया
सब के पालन हार तुम हो
दीन-दुखी के द्वार तुम हो
हर घडी हर सांस तुम हो
मेरा तो विश्वास तुम हो

ओ मेरे जीवन के खेवैया
तुम हो मेरे साईं कन्हैया
तुम ही मेरे माँ-बाप भैया.

बुधवार, 19 सितंबर 2018

कदम-कदम बढ़ाये जा

कदम-कदम बढ़ाये जा
सफल कदम बढ़ाये जा
वो गीत गुनगुनाए जा
हैं मज़िले आसान ही
कदम-कदम बढ़ाये जा

कदम-कदम बढ़ाये जा
जीवन के उलझनों को
तुम खुद से ही सुलझाए जा
भय ठोकरों का कर नहीं
यह आज है कल फिर नहीं
कदम-कदम बढ़ाये जा

कदम-कदम बढ़ाये जा
वो गीत गुनगुनाए जा
सब हौसला बढ़े तेरा
तू बस सीढ़ियाँ बनाए जा
ज़मीन, गगन, नदी, पहाड़,
सभी को पार कर
कदम-कदम बढ़ाये जा

कदम-कदम बढ़ाये जा
ख़ुशी के गीत गाये जा
हर लक्ष्य हो तुम्हारा
तुम हो विजय सदा
कदम-कदम बढ़ाये जा.

मंगलवार, 18 सितंबर 2018

दुनियावालों

सुनो-सुनो ऐ दुनियावालों
इतिहास करवट लेने वाला है
हाइफा के समुद्र तट पर
दो वीर सपूत के
पानी के साथ करते अठखेलियों को
देख रहा है विश्व ध्यान से
क्या यह है संकेत मिलन का
या फिर आने वाली कोई क़यामत है

सुनो-सुनो ऐ दुनियावालों
इतिहास करवट लेने वाला है
यूँ नहीं दौड़ लगा रहे दुनिया के
वह तो भीष्मपितामह है
दाढ़ी पक गयी बाल पक गए
फिर भी जोश जवानों सा

सुनो-सुनो ऐ दुनियावालों
इतिहास करवट लेने वाला है
यह देश चल पड़ा प्रगति की राह पर
अब यह नहीं रुकने वाला है

सुनो-सुनो ऐ दुनियावालों
इतिहास करवट लेने वाला है
तुम जोर लगा लो लाख मगर
अब हमें नहीं पीछे मुड़ना है
हैं साथ हमारे भीष्मपितामह
हैं नहीं किसी का डर हमको.

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

अवलोकन

जीवन पथ है, ढुलमुल रथ है
पथ पर कंकड़ ढेर मिलेंगे
जीवन पर्याप्त वहन करना
बस मंद गति चलते रहना
खाना-पीना-सोना-जगना
जल-सा चंचल बहते रहना

जीवन पथ है, ढुलमुल रथ है
कांच-सा कोमल तन-मन मेरा 
ठोकर की भरमार यहाँ है 
प्रेम-द्वेष और विरह मिलन का 
संगम हैं संसार ये मेरा 

जीवन पथ है, ढुलमुल रथ है 
धुप-छांव से आते जाते 
सुख-दुःख का संगम जीवन है 
आपा-धापी होड़ लगी है 
सबको पीछे छोड़ चले हम 
नियति की गति तोड़ चले हम
खुद से खुद को भूल चले हम.

सोमवार, 3 सितंबर 2018

तुम बिन जीना सिख रही हूँ

तुम बिन जीना सिख रही हूँ
गम को पीना सिख रही हूँ
जब मैं निकलू घर से बाहर
नभ में तुमको ढूंढ रही हूँ
अब तो तुम को पाना मुश्किल
पाकर खोना सिख रही हूँ

तुम बिन जीना सिख रही हूँ 
गम को पीना सिख रही हूँ
तन्हाई के बादल भी अब
मुझसे बाते करते है
मेरी पलके ढूंढे तुमको
भीड़ भरे चौराहों पर

चिड़ियों के कलरव के संग-संग
मैं तो गाना सिख गयी हूँ
दिन चढ़ते ही दुनिया के संग
मैं अब लड़ना सिख गयी हूँ
तुम बिन जीना सिख रही हूँ 
गम को पीना सिख रही हूँ

भूल परायो-अपनों का गम
जीवन जीना सिख गयी हूँ
मौसम आये जाए कोई
आंसू पीना सिख गयी हूँ
तुम बिन जीना सिख गयी हूँ
गम को पीना सिख गयी हूँ.

रविवार, 2 सितंबर 2018

विस्मय

मन विचलित था
राह भ्रमित थी
खोज रहा मेरा मन कुछ था
सोच की उलझन समझ पे भारी
दूरगामी परिणाम का डर था
सत्य कौन है, कौन अधर्मी
इस नाटक के पात्र सभी है
कौन बनेगा हीरो
किसको पात्र मिलेगा विलेन का
हर चरित्र की अपनी लै है
फिर मन में डर क्यों बैठा है
भला-बुरा हम सोच-सोच के
उलझन बड़ी बनाते है
जो भी पात्र हमें मिलता है
क्यों नहीं दिल से निभाते है
ऊपर बैठे निर्देशक ने
हम को जो निर्देश दिए 
हम ने दिल से उसे निभाया 
खुशियों को हमने अपनाया.