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प्रियतम

हे प्रियतम तुम रूठी क्यों  है कठिन बहुत पीड़ा सहना  इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा  निःशब्द अश्रु धारा बनकर  मन की पीड़ा बह निकली तब  है शब्द कहाँ कु...

गुरुवार, 7 जून 2018

श्रृंगार प्रकृति का

जतन जतन से
रमन चमन से
करते हम श्रृंगार प्रकृति का

नयन नयन से
नयन सपन से
करते हम श्रृंगार प्रकृति का

फूल पवन से
वर्षा के जल से
बादल के गर्जन-तर्जन से
करते हम श्रृंगार प्रकृति का

सूरज चंदा के आना से
दिन और रात के विरह मिलन से
करते हम श्रृंगार प्रकृति का.