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अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

सोमवार, 28 सितंबर 2020

मेरी सपनो की मूरत

बड़ी बाबली है , बड़ी खूबसूरत
कैसी सजी है मरे , सपनो की मूरत
कभी झांकती , तो कभी होती ओझल

बड़ी बाबली है , बड़ी खूबसूरत
बिरह में सताती, मिलान में सताती
बचूं कैसे उसकी शैतानियों से

बड़ी बाबली है , बड़ी खूबसूरत
फूलों की पंखुडिओं से भी है कोमल 
कैसे छुऊँ टूट के न बिखड़ जाये 

बड़ी बाबली है , बड़ी खूबसूरत 
डरता हूँ उसको नजर लग न जाए 
मेरे कैदखाने  से वो दर न जाए 

बड़ी बाबली है , बड़ी खूबसूरत 
पलक  जो झपक दे , तो अँधेरी  राते 
नयन खोल दे चाँदनी फिर न जाये 

बड़ी बाबली है , बड़ी खूबसूरत
कैसी सजी है मरे , सपनो की मूरत।  


 


 

शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

शाम ढलने लगी

शाम ढलने लगी , जाम चलने लगी
मन मचलने लगा
 ख्वाब के आसमा में , मन विचरने लगा 
गम तो कोई न था , फिर भुला क्या रहे 
राह छूटी  अगर, तो मिटा क्या रहे 
जाम के ही सहारे, हम भुला क्या रहे
जो पिटे गए, नजरे बोझिल हुई 
याद कुछ न रहा , हम बेफिक्र हो गए 

शाम ढलने लगी , जाम चलने लगी
छटा मनोहर आसमान की 
विचरण मन करने लगा 
ख्वाब हवा में उरने लगा 
बैठे - बैठे पंख लग गए 
हम मस्ती में उरने लग गए
 शाम ढलने लगी , जाम चलने लगी
हम  मचलने लगे।  


 
 


 


बुधवार, 23 सितंबर 2020

राही

है रुकना अपना काम नहीं
तुम चलो अभी विश्राम नही
मंजिल अपनी है दूर सहि 
जीवन अपना पैगाम बना 
चलो हमें चलते रहना है 
थकने का कोई काम नहीं 
जीवन है पग- पग चलने में 
गिरने और सँभलने में 
राहों के कंकर चुनने में 
है खुद की राह बनाने में 
जीवन में  कुछ कर जाने में 
या कुछ करके मिट जाने में 
झुकने में अपनी शान नहीं 
रुकने में अपनी आन   नहीं
आये तूफान तो आने दो 
हमको झकझोड़ के जाने दो 
गिरने का अपना काम नहीं 
रुकने का अब कोई प्राये  नहीं  
गर हार मानकर बैठ गए तो
अपनी कोई पहचान नहीं 
तुम चलो अभी  विश्राम नहीं। 

शनिवार, 19 सितंबर 2020

जुगाड़ की जिंदगी

जुगति भइल जुगति फल पइली
कहाँ - कहाँ हम जुगत लगइली
सबके सुनी-सुनी मन में रखली 
मन ही मन आँसू टपकईली

कहाँ - कहाँ हम जुगत लगइली 
कदम -कदम पर पइली परीक्षा 
नाता -रिस्ता सबहुँ गबईलि 
पर मर्यादा सब हम निबहलि

कहाँ - कहाँ हम जुगत लगइली 
बाल -बच्चा के कर्म सिकईली 
कभी थक के मन थोड़ा ठण्ढईली 
फिर उत्साह से कदम बढ़ईली 

कहाँ - कहाँ हम जुगत लगइली 
धीरे -धीरे कदम बढ़ईली 
हर दिक्क्त से पार उपरली 
अपन घर परिवार बचइली 
कहाँ - कहाँ हम जुगत लगइली।

बुधवार, 16 सितंबर 2020

आत्मीय

अपना सब कुछ तो तुम पर वार दिया
ख़ामोशी को भी साँचें में ढाल दिया 
चलते फिरते इंसान को भी साँचें में ढाल दिया 
तेरे मन को चोट न पंहुचे कभी इसलिए 
हर जहर को अपने मन में ही आत्मसात किया 
मैंने अपने हर सपने को आँसू  के सबनम से सींच दिया 

मैं बिखरी - बिखरी कुछ स्मृतियाँ जोड़ रही हूँ 
चांदनी रात को भी अपनी मुठी में भर रही हूं
ख्वाब से मैं ख्वाब को बुन रही हूँ 
हमारी धड़कनों में जोश बांकी रहे
इसीलिए मैं खुद से ही भाग रही हूँ 

अपना सब कुछ तो तुम पर वार दिया 
ख़ामोशी को भी साँचें में ढाल दिया 
देखते है कितनी ठोकरों के बाद 
हमें मंजिल मिलती है 
गम तो हजार मिले 
देखते है खुशियां
कितने लम्हों  के बाद मिलती हैं। 

शनिवार, 12 सितंबर 2020

ऋतुएँ

एक - एक कर ऋतु  आती है
अपनी छँटा धरा पर बिखेर जाती है
वसंत - पतझड़  गर्मी - सर्दी 
हर चीज का  हमें एहसास कराती है 
रंग बिरंगे फूलों से बाग़ खिल उठता  है
खट्टे - मीठे फल खा कर बच्चे खुश हो जाते है 
जीवन के  इस झांकी में 
खट्टा - मीठा सबका एहसास हो जाता है 

आम के महीने में जब कोयल कूकती है 
लोग खुश होकर घरों से निकल आते है 
यह हमारा ही देश है 
जहाँ साड़ी ऋतुएँ आती है 

खुशिओं की बरसात भी होती है 
और गर्मी से हम सब परेशांन भी होते है 
पर जब ठंढ आती है 
हम सब रजाई में दुबक जाते हैं 
घरों में अंगीठी जलाकर  सब 
मिलजुलकर बैठते हैं 

लोहड़ी का त्योहार अपने आप में अनूठा है 
हर ऋतु  अपने साथ कुछ पर्व ले आते है
हमारे ठहरे जीवन को गति दे जाते है। 

शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

गलतफहमी

कुछ गलतफ़हमी सी मुझे होने लगी थी
सब चाहते है मुझे सबको प्रेम है मुझसे
ऐसा मुझे लगने लगा था 
कदम दर कदम मैं जिंदगी से 
दूर होने लगी थी 
कभी खामोश रहकर 
तो कभी आसूओं में ही रोने लगी थी 
गुमसु म - गुमसु म  रहकर भी 
दिल को मन ही मन संजोने लगी थी 
कई जिंदगिओं की आस बंधी थी मुझसे 
पर  ना जाने क्यों मैं 
अपनी साँसों से ही मैं आस खोने लगी थी 
जिंदगी को जीने की चाहत में 
शायद मैं मदहोश होने लगी थी 
अच्छाई भी यहीं है बुराई भी यहीं है 
नफरत से पनपी तन्हाई भी यहीं है 
चाहे गलफहमी हो या सच्चाई 
जिंदगी की  कड़वी सच्चाई भी यही है।  

गुरुवार, 10 सितंबर 2020

विश्वास



सुबह से शाम तक हमारी
परीक्षा क्यों लेते हो भगवान
हमेशा तुम पर विश्वास रखा 
क्या इसकी सजा देते हो भगवान 
हरदम तुम्हे पूजा तुम्हारी अर्चना की 
पर हरबार मेरे हाथ पर 
प्रसाद के रूप में कोड़े  ही बरसाए
तुम्हारे प्रेम की छाया क्या 
नटवरलालों को ही मिलती है 
तुम्हे पूजनेवाला क्या सिसक - सिसक 
कर ही दम तोड़ देता है 
उसके अरमान में सूनापन और 
आँखों में तुम आँसू ही दे पाते हो 
लोग कहते है पत्थर को भी 
पूजो तो भगवान मिल जाते है  
यहाँ तो पूजते- पूजते 
खुद ही पत्थर बन गए है 
अब न शेष कोई अरमान है 
और न ख्वाहिश ही बांकि  है
हाँ आज भी दिल ये चाहता है कि 
एक बार मैं हार जाऊ पर 
मेरा विश्वास नहीं हारना चाहिए 
अपने आप से ज्यादा तुमपर भरोशा रखा है 
बस आखिरी बिनती है तुमसे 
इस नैया को पार लगाना 
चाहे लाख तूफान आये 
इसे मझधार में न डुबाना।   

बुधवार, 9 सितंबर 2020

अनाम रिस्ता

ये कैसे दिन है , जो तेरे बिन है
सांसों में अपने चाहत की धुन है
तन्हाईओं की खामोश रातें
दिन सूना -सूना  चंचल निगाहें
जीवन पर भारी ये गमगीन राहें 
बेमौत मरने की ये क्या दवा है 
मुझे तुझको खोने की ये क्या सज़ा है 
मेरी आँखें नाम है  दिल मेरा गमगीन 
किसे मैं बताऊ कि जाने से तेरे 
हमें गम भी उतना फिकर जितनी तुमको 
फर्क सिर्फ ये है कि वो संग तेरे 
विरह में तो हम है 
है नाम आपके रिश्ते का 
बदनाम हम है 
हमें नाम देकर जो अपना बनाते 
आज पत्थरों से न हम पिटे जाते 
हमें छोड़कर क्यों यैसी सजा दी 
मै अपनी विरह को क्या नाम दूँ 
सजा और दूँ या फिर प्यार दूँ 

सोमवार, 7 सितंबर 2020

ये दिन कैसे

आज देखो किस तरह
है गगन में छा गई
खामोशियों के धुंध ने
आगोश में सबको लिया

सब मौन हैं सब क्षुब्ध हैं 
आ गई कैसी घड़ी
ना  मिल सके ना जुल सके 
अपनों से अपने दूर है 
सब कैद है घर में अभी 

पर उम्मीद  है शेष अभी 
एक दिन नया फिर आएगा 
हर दिशा मुस्कायेगी 
खामोशियों को चीरकर 
हर ओर गुंजन आएगी 

शंख और घंटी के ध्वनि से 
फिर गगन मुस्कायेगी 
हर ख़ुशी पैर फिर से हम सब 
आ गले मिल जाएंगे 

चूमकर हाथो को तेरे 
प्यार फिर जताएंगे 
ढोल के थापों पर फिर से 
थाप हम लगाएंगे 

बाँहों को बाँहों में भरकर 
फिर ख़ुशी से गाएंगे। 

शनिवार, 5 सितंबर 2020

माँ भारती

भारत माँ के लाल तुझे
सत् कोटि नमन करती हूँ
तू जिए हजारो साल 
तुझे सत् कोटि नमन करती हूँ 
अपनी भी धड़कन तुझको 
मैं आज समर्पित करती हूँ 
आ जाऊं माँ के काम 
ये अर्ज सदा करती हूँ 
भारत माँ के लाल तुझे 
सत् कोटि नमन करती हूँ
तुम आये माँ के काम
तुझे सत् कोटि नमन करती हूँ.