है गगन में छा गई
खामोशियों के धुंध ने
आगोश में सबको लिया
सब मौन हैं सब क्षुब्ध हैं
आ गई कैसी घड़ी
आ गई कैसी घड़ी
ना मिल सके ना जुल सके
अपनों से अपने दूर है
सब कैद है घर में अभी
पर उम्मीद है शेष अभी
एक दिन नया फिर आएगा
हर दिशा मुस्कायेगी
खामोशियों को चीरकर
हर ओर गुंजन आएगी
शंख और घंटी के ध्वनि से
फिर गगन मुस्कायेगी
हर ख़ुशी पैर फिर से हम सब
आ गले मिल जाएंगे
चूमकर हाथो को तेरे
प्यार फिर जताएंगे
ढोल के थापों पर फिर से
थाप हम लगाएंगे
बाँहों को बाँहों में भरकर
फिर ख़ुशी से गाएंगे।
आमीन
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार
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