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पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली  ए पहाड़ के आँचल  हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल  कभी दूर तो कभी पास ए  करते रहे ठिठोली  भोर - सांझ ये आते जाते  होठों...

सोमवार, 7 सितंबर 2020

ये दिन कैसे

आज देखो किस तरह
है गगन में छा गई
खामोशियों के धुंध ने
आगोश में सबको लिया

सब मौन हैं सब क्षुब्ध हैं 
आ गई कैसी घड़ी
ना  मिल सके ना जुल सके 
अपनों से अपने दूर है 
सब कैद है घर में अभी 

पर उम्मीद  है शेष अभी 
एक दिन नया फिर आएगा 
हर दिशा मुस्कायेगी 
खामोशियों को चीरकर 
हर ओर गुंजन आएगी 

शंख और घंटी के ध्वनि से 
फिर गगन मुस्कायेगी 
हर ख़ुशी पैर फिर से हम सब 
आ गले मिल जाएंगे 

चूमकर हाथो को तेरे 
प्यार फिर जताएंगे 
ढोल के थापों पर फिर से 
थाप हम लगाएंगे 

बाँहों को बाँहों में भरकर 
फिर ख़ुशी से गाएंगे। 

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