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अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

मानवता

खुद के शहर में हम
खो से कही गए है
कभी चैन की थी चाहत
अब है बेचैनी हर दम

हर ओर है सन्नाटा
खामोश ज़िन्दगी है
सबपे लगा है पहरा
ये कैसी ज़िन्दगी है

तूफ़ान की आहट से
हर दिल में डर है बैठा
ख़ामोशी ने हम सब को
इतना डरा दिया है

माहौल ने हम सबको
सोते से जगा दिया है
अब वक्त आ गया है
लौट चलो अपनी संस्कृति की ओर
वही पुरानी आदते
सुबह-श्याम का ध्यान
राम नाम कहना सीखो सब

बहुत हो गया भागना
पश्चिमी सभ्यता की ओर
है महानतम संस्कृति
खुद अपने ही पास

पलटो अपने वेड पुराण
सब वर्णित है उसमे
हर मर्ज की दावा लिखी है
हर विपदा की काट वहाँ है

इस पावन धरती पर मिलती
औषधियाँ है सैकड़ो
खोल वेद को पढना सीखो
मर्म प्रकृति का तब जानोगे

जीवन अनमोल मिला हम सबको
पर हम मोल समझ न पाए
चूक हुई कहाँ हम सबसे
यह विचार का प्रश्न आज है

मानवता के इस खतरे से
पार अगर हम पा जाएँगे
कौन जानता दुसरे पल ही
नया बखेरा आ जायेगा

अतः आज से प्रण यह ठाणे
हर मुश्किल में साथ खड़ा हो
हाथों से यूं हाथ मिलाकर
इसको एक अभियान बनाना
इस मुश्किल को सबक बनाकर
आगे लेकर हम जायेंगे
इस मानव जीवन को अपने
फिर से स्वर्ग बनायेंगे। 

सोमवार, 6 अप्रैल 2020

लौटकर आ जाओ

ना चिट्ठिया ना संदेश
तुम चले गए किस देश
लौटकर आ जाओ
ये अपनों का है देश
यहाँ रहते है विष्णु-महेश

ना चिट्ठिया ना संदेश
तुम चले गए किस देश
सुना-सुना घर है मेरा 
सुना मेरा आँगन 
सुनी-सुनी अँखियां मेरी 
बन गयी है एक दर्पण 

ना चिट्ठिया ना संदेश
तुम चले गए किस देश 
मैं खुशियों का संदेश 
तुम्हे पहुँचाऊ कैसे विशेष 
यह खुशियों का है देश 
जहाँ पत्थर में भी देव 
हर पौधा अनमोल यहाँ है 
कण-कण में जीवन ज्योति है 

ना चिट्ठिया ना संदेश
तुम चले गए किस देश 
प्रेम मिलन और प्रेम विरह में 
दोनों में है ख़ास 
अपनों से अपनत्व जताना 
गैरो पर भी प्रेम बरसाना 
है अपना ये धर्म 

ना चिट्ठिया ना संदेश
तुम चले गए किस देश
तेरी मिलने की जो  आंस
वही करता मेरा परिहास
मुझे इतना ना सताओ तुम
लौटकर आ जाओ
मुझे अब और न तडपाओ
चलो अब मान भी जाओ तुम

ना चिट्ठिया ना संदेश
तुम चले गए किस देश 
लौटकर आ जाओ 
मुझे कहना तुमसे कुछ सेष 
लौटकर आ जाओ 
मुझे देना है एक संदेश 
लौटकर आ जाओ। 

रविवार, 5 अप्रैल 2020

आओ मिलकर दिया जलाए

आओ मिलकर दिया जलाए
गीत ख़ुशी के हम सब गाये
अंधकार को दूर भगाए
बैर को प्रेम से आज हराए
हर दिल में एक आस जगाये

आओ मिलकर दिया जलाए
हर दिल में विश्वास जगाये
स्याह रात की काली छाया
समझो अब मिटने वाला है
करुणा की इस कठिन घडी का
आज अंत आने वाला है

आओ मिलकर दिया जलाए
अंधकार की तिमिर घटा को
अपने दिल से दूर भागो
डर के जीना डर कर मरना
कब तक ऐसे जी पाओगे

आओ मिलकर दिया जलाए
द्वार खोलकर तुम देखो तो
बाहर बड़ी भली दुनिया है
देखो तुम इतिहास उठाकर
रक्तपात और नफरत से
कोई जीत न पाया है

आओ मिलकर दिया जलाए
सब मिलकर के खुशियाँ बाटें
अपने घर भी खुशियाँ लाए
जब मिलकर रहना सीखोगे
मर्म ख़ुशी का तब समझोगे

आओ मिलकर दिया जलाए....

गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

खामोशी

ये कैसी खामोशी है
ये कैसा भोर हुआ है
हर ओर उदासी छाई
सन्नाटा हर ओर है फैला
है विश्व युद्ध की आहट
है छद्दम युद्ध यह फैला
है बीच खड़े हम सब
जीवन और मृत्यु के
मानव जीवन पर कैसा
ये संकट घोर है आया

ये कैसी खामोशी है
ये कैसा भोर हुआ है
सूर्य तुम्हारे प्रथम किरण को 
संजो कर रख लेंगे 
ये उद्देश्य हमारा है 
हम नहीं डीगेंगे इससे 
जल्दी इस घोर घडी से 
पार भी हम उतरेंगे 
देवों की इस धरती को 
फिर से पावन कर लेंगे 

ये कैसी खामोशी है
ये कैसा भोर हुआ है 
कुछ छुट रहा है पीछे 
कुछ आगे को आना है 
कर्तव्य हमारा हर दम 
हो अपने देश के खातिर 
इस विकट घडी में सबको 
मिलकर आगे बढ़ना है।