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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

मानवता

खुद के शहर में हम
खो से कही गए है
कभी चैन की थी चाहत
अब है बेचैनी हर दम

हर ओर है सन्नाटा
खामोश ज़िन्दगी है
सबपे लगा है पहरा
ये कैसी ज़िन्दगी है

तूफ़ान की आहट से
हर दिल में डर है बैठा
ख़ामोशी ने हम सब को
इतना डरा दिया है

माहौल ने हम सबको
सोते से जगा दिया है
अब वक्त आ गया है
लौट चलो अपनी संस्कृति की ओर
वही पुरानी आदते
सुबह-श्याम का ध्यान
राम नाम कहना सीखो सब

बहुत हो गया भागना
पश्चिमी सभ्यता की ओर
है महानतम संस्कृति
खुद अपने ही पास

पलटो अपने वेड पुराण
सब वर्णित है उसमे
हर मर्ज की दावा लिखी है
हर विपदा की काट वहाँ है

इस पावन धरती पर मिलती
औषधियाँ है सैकड़ो
खोल वेद को पढना सीखो
मर्म प्रकृति का तब जानोगे

जीवन अनमोल मिला हम सबको
पर हम मोल समझ न पाए
चूक हुई कहाँ हम सबसे
यह विचार का प्रश्न आज है

मानवता के इस खतरे से
पार अगर हम पा जाएँगे
कौन जानता दुसरे पल ही
नया बखेरा आ जायेगा

अतः आज से प्रण यह ठाणे
हर मुश्किल में साथ खड़ा हो
हाथों से यूं हाथ मिलाकर
इसको एक अभियान बनाना
इस मुश्किल को सबक बनाकर
आगे लेकर हम जायेंगे
इस मानव जीवन को अपने
फिर से स्वर्ग बनायेंगे। 

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