ना चिट्ठिया ना संदेश
तुम चले गए किस देश
लौटकर आ जाओ
ये अपनों का है देश
यहाँ रहते है विष्णु-महेश
ना चिट्ठिया ना संदेश
तुम चले गए किस देश
तुम चले गए किस देश
लौटकर आ जाओ
ये अपनों का है देश
यहाँ रहते है विष्णु-महेश
ना चिट्ठिया ना संदेश
तुम चले गए किस देश
सुना-सुना घर है मेरा
सुना मेरा आँगन
सुनी-सुनी अँखियां मेरी
बन गयी है एक दर्पण
ना चिट्ठिया ना संदेश
तुम चले गए किस देश
तुम चले गए किस देश
मैं खुशियों का संदेश
तुम्हे पहुँचाऊ कैसे विशेष
यह खुशियों का है देश
जहाँ पत्थर में भी देव
हर पौधा अनमोल यहाँ है
कण-कण में जीवन ज्योति है
ना चिट्ठिया ना संदेश
तुम चले गए किस देश
तुम चले गए किस देश
प्रेम मिलन और प्रेम विरह में
दोनों में है ख़ास
अपनों से अपनत्व जताना
गैरो पर भी प्रेम बरसाना
है अपना ये धर्म
ना चिट्ठिया ना संदेश
तुम चले गए किस देश
तेरी मिलने की जो आंस
वही करता मेरा परिहास
मुझे इतना ना सताओ तुम
लौटकर आ जाओ
मुझे अब और न तडपाओ
चलो अब मान भी जाओ तुम
तुम चले गए किस देश
तेरी मिलने की जो आंस
वही करता मेरा परिहास
मुझे इतना ना सताओ तुम
लौटकर आ जाओ
मुझे अब और न तडपाओ
चलो अब मान भी जाओ तुम
ना चिट्ठिया ना संदेश
तुम चले गए किस देश
तुम चले गए किस देश
लौटकर आ जाओ
मुझे कहना तुमसे कुछ सेष
लौटकर आ जाओ
मुझे देना है एक संदेश
लौटकर आ जाओ।
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