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अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

बुधवार, 20 मई 2020

नियति

करुण क्रंदन में छिपा है
मोह बंधन में छिपा है
जीव जग से यूं बंधा है
छोड़ना बस में नहीं है

जोर नियति पर नहीं है
एक ही तो हक़ मिला है
कर्म करने की सजा है
ज़िन्दगी की हर दवा है

मौत बंधन मुक्त करती
इस जहाँ से पार जाने
का वही एक रास्ता है

करुण क्रंदन में छिपा है
मोह बंधन में छिपा है
काल के हाथों में हम सब 
खेलते है हर घडी 

चाहतो की डोर भी 
अदृश्य बंधन से बंधा है 
मन है विचलित तन है विचलित 
काँपता मन कह रहा है 
किस दिशा ले जाएगी 
ये ज़िन्दगी किसको पता है 

कर्म किसके, कौन इसका भार
कब तक ढो रहा है
बैल कोहलू में जुता है
राह कंकर से पटा है

मानवों के पैर में
ज़ंजीर कुछ ऐसे पड़े
वो चाहकर भी बन्धनों से
मुक्त हो पाता नहीं
सींचता आंसूं ख़ुशी से
रोज़ सपनो को बिखरता देखकर भी
जोड़ने की धुन में अक्सर
भागता ही जा रहा है

हर घडी हर पल मुकद्दर
हाथ में अपने लिए
जूझना ही ज़िन्दगी का
मकसद अपना बन गया है। 

मंगलवार, 5 मई 2020

विपदा

ये प्रांत वीरो से सज़ा है
सब शांत है मन क्रांत है
ये भ्रान्ति है अज्ञान है
जीवन का कैसा अंत है
न कोई इसका प्रान्त है

हर ओर मन आक्रांत है
चारों दिशाएं रो रही
छाई निशा में मौन है
है कहर हर ओर ढा रही
जीवन को है झुलसा रही
कैसी तूफानी रात है

हर ओर भय ही व्याप्त है
जाने जुबां क्यों शांत है
सब दिग दिगंत आक्रांत है

मुरझाई फूलों की कलि
है शांत झुरमुट पेड़ भी
गाय विचरती मौन है
है हक्का-बक्का स्वान भी

है कैसी विपदा आई ये
हर ओर छाई मायूसी
शंका से हम सब देखते
किनसे करे व्यव्हार
किनसे छुपाए मुंह फिरे

कैसा ये दिन दिखलाएगी
हम को कहाँ ये ले जाएगी
ये वक्त ही बतलायेगा
क्या-क्या सबक सिखलाएगी।

शनिवार, 2 मई 2020

सच हारता नहीं

एक बुजुर्ग व्यक्ति दफ्तर  में आया और बाबु को सलाम करते हुए बोला बाबूजी आप ठीक हैं, इसपर बाबु मुस्कुराकर बोला आपकी दुआ से सब ठीक हैं. अब तो हमारी कस्ती आपके ही हाथ हैं. बेचारा बुजुर्ग यह सब सुनकर चौंक गया उसने सोंचा मैं कबसे इनके लिए खाश हो गया. पर उसकी यह ख़ुशी पलभर की थी. वह आगे बढ़ते हुए बाबु से बोला बाबूजी मेरा काम कितना आगे बढ़ा है.  बाबु तपाक से बोला बाबा अभी लक्ष्मी को तो आने दो और अपनी फाइल को साहब तक पंहुचने  तो दो फिर काम आगे बढेगा. इसपर बूढ़े आदमी ने बड़ी मासूमियत से पूछा. साहब लक्ष्मी छुट्टी पर है क्या. अरे बाबा मैं आपके जेब में पड़ी लक्ष्मी की बात कर रहा हूँ. आप भी कितने भोले हो. यह सुनकर बुजुर्ग व्यक्ति बड़ा निराश हो गया पर थोड़ी हिम्मत करके बोला साहब जेब में तो फूटी कौड़ी भी नहीं है. बड़ी मुस्किल से यहाँ तक पैदल ही चलकर आया हूँ. लेकिन साहब आपसे वादा करता हूँ कि अगर मेरा काम हो गया तो जो भी बन पड़ेगा आपकी सेवा जरूर करूँगा. इसपर बाबु जोर से चिल्लाया बाबा आपके वादे का मैं क्या करूँगा. मुझे तो बस लक्ष्मी चाहिए वरना अपनी फाइल वापस ले जाइये. मैं अगर एक बार फाइल आगे बढ़ा भी दूँ तो भी आपकी फाइल वापस ही आयेगी क्यूंकि साहब बगैर लक्ष्मी के फाइल पर साइन करेंगे नहीं मैं तो ठहड़ा बाबु मैं और कर भी क्या सकता हूँ. मैं तो आपके भले की ही बात कर रहा हूँ. आगे आपकी मर्जी. इतना बोल कर बाबु चुप हो गया.

बुजुर्ग व्यक्ति निराश होकर अपनी फाइल लेके बाहर की ओर निकल आया. बुजुर्ग व्यक्ति को इतना आघात पंहुचा कि वह ऑफिस के बाहर पार्क में बेंच पर बैठकर फूट फूट कर रोने लगा और  अपनी इस्ट देवी माँ से विनती करने लगा माँ अब मैं कहाँ जाऊं माँ तुम तो कहती हो कि तुम सबकी माँ हो फिर क्या मैं तुम्हारा कोई नहीं हूँ तुम मुझसे रूठी क्यों हो. वह रोता रहा ओर अपनी विनती माँ तक पंहुचता  रहा.

दिन पूरा निकल गया पर उसकी सुध लेने कोई नहीं आया. शाम में अधिकारी साहब जब दफ्तर से निकले तो देखा कि एक बुढा व्यक्ति पार्क में बेंच पर बैठा है. उस वक्त तक पूरी बिल्डिंग खाली हो चूकी थी  पर ये आदमी अकेला यहाँ क्यों बैठा है. इसी उथल पुथल में अधकारी साहब खुद चलकर पास पहुँच गए लेकिन बुजुर्ग व्यक्ति अपने ध्यान में इतना मगन था कि उसे इसकी कोई सुध नहीं लगी और वह जस के तस बैठा रहा. अधकारी साहब ने खुद उसके हाथ से फाइल लेकर खोलकर देखने लगे उस फाइल को थोड़ी देर पलटने के बाद अधकारी साहब ने सहायक से कहा मैं अभी थोड़ी देर और काम करूँगा मेरा ऑफिस खोलो और इस महाशय को ले जा कर कुछ खिलाओ इस बिच किसी ने उस व्यक्ति को झकझोर दिया जिससे उसकी तन्द्रा भंग हो गयी और अपने सामने किसी डिलडौल वाले व्यक्ति को देख कर  घबरा गया. वह समझ गया यह कोई बड़े साहब हैं जो हमें यहाँ देखकर नाराज हो गए हैं. वह झट उनके पैर पर गिर  गया और  फिर से रोने लगा अधिकारी ने उसे उठाया और समझाया बाबा आप परेशान न हो आपकी फाइल मैंने देख ली है मैं अभी आपका काम किये देता हूँ. आप तबतक इनके साथ जाकर चाय नास्ता कीजिये. नहीं साहब आपकी बड़ी मेहरबानी होगी बस आप मेरा काम कर दीजिये मेरी पत्नी घर पर राह देख रही होगी लगता है बहूत रात हो गई है, बाबा आप इनके साथ अन्दर आजाइये मैं तबतक आपकी फाइल देख रहा हूँ. इतना बोलकर अधिकारी साहब अपने केबिन की ओर चले गए

यह सब देखर उस बुजुर्ग व्यक्ति को न अपने कानो पर बिस्वास हो रहा था और न अपने आँखों पर लेकिन जो घट रहा था वह उसके लिए सपने से कम नहीं था वह चुपचाप आंसु  पोछता हुआ आगे बढ़ गया अन्दर जाने के बाद उसे बड़े सम्मान के साथ पहले कुछ खिलाया गया और फिर रामदीन जो साहब का चपरासी था वह उन्हें साहब के कमरे तक ले गया

इस बिच बुढा व्यक्ति सोंचता रहा सुबह भी तो मैं इसी दफ्तर में आया था पर उस वक्त मेरे साथ गलत बय्व्हार क्यों किया गया खैर जो भी हो अब देखता हूँ मेरा काम होता हैं कि नहीं

तभी दरवाजा खुला और वह जिस कमरे में प्रवेश किया वहां साहब बैठे थे साहब फाइल में कुछ लिख रहे थे साहब ने बुजुर्ज व्यक्ति को बैठने को कहा इसपर बूढ़े व्यक्ति ने कहा साहब मैं यहाँ नहीं बैठ सकता ये तो साहब लोगो की बैठने की जगह हैं इतना बोलते बोलते बुजुर्ग व्यक्ति के आँखों से फिर आंसु  के दो बूंद टपक गए यह सब देखकर  अधिकारी अपनी कुर्सी से उठ खरे हुए और बोले बाबा हमें इस कुर्सी पर आपलोगों के काम के लिए ही बिठाया गया है आप बैठिये मैं पहले आपका काम पूरा कर दूँ फिर आपकी बात सुनूंगा

बुढा व्यक्ति बैठकर एकटक अधकारी को देखता रहा और सोंचता रहा क्या वाकई में इस ऑफिस में ऐसे लोग काम करते है जो हम जैसे लोगों का काम और सम्मान दोनों कर सकें  बाबु तो सुबह कह रहा था कि साहब को मैं फाइल दे भी दूँ तो वो आपकी फाइल को सीधे वापस कर देंगे.

 इसी बीच अधिकारी ने बूढ़े व्यक्ति से पूछा बाबा आप घर कैसे जायेंगे? इसपर बूढ़े व्यक्ति ने सकपका  कर कहा साहब मैं तो सुबह पैदल ही आया था. अब इतनी रात को कैसे घर जा पाउँगा यहीं पार्क में सो कर रात गुजर लूँगा फिर कल्ह सुबह घर चला जाऊंगा.

अधिकारी साहब ने कहा कोई बात नहीं ये लीजिये आपकी चिठ्ठी आपका काम हो गया एक दो दिन बाद आकर अपना चेक लेजाइएगा.

चलिए आपको मैं जाते हुए छोड़ता जाऊंगा. साहब आप क्यों परेशान होते हैं मैं कल्ह सुबह चला जाऊंगा. इसमें परेशानी कैसे मेरा घर भी उधर ही है. साथ चलेंगे तो  आपसे बात करने का भी मौका मिल जायेगा. 

बुढा व्यक्ति चुपचाप अधिकारी के साथ चल दिया. गाड़ी में बैठने के बाद अधिकारी ने बूढ़े व्यक्ति से पूछा? बाबा आप इतनी उम्र में घर बनाने के लिए दफ्तरों के चक्कर क्यों काट रहे हैं? क्या आपका कोई बच्चा नहीं हैं? आप अकेले ही है?

बुढा आदमी कुछ देर खामोश रहने के बाद बोला नहीं बेटा ऐसी बात नहीं है मेरा बेटा भी बहूत बड़ा आदमी है वह विदेश में रहता है. फिर आप घर बनाने के लिए दफ्तरों के चक्कर क्यों काट रहे है वह तो बड़ी आसानी से घर बैठे आपका लोन करवा सकता हैं. पर शायद उसे तो लोन की भी जरूरत नहीं पड़े?

बेटा मैंने अपनी सारी जिंदगी की कमाई बेटे को पढ़ाने में खर्च कर दी. हमेशा किराये के मकान में रहा. जैसे तैसे एक छोटी सी जमीन खरीद ली थी.सारी कमाई उनकी पढाई पर ही खर्च कर डी अपने लिए कुछ नहीं इकट्टा किया. अब कमाने की उम्र तो रही नहीं. और जमा पूंजी भी खर्च हो गयी तो अब अपना और अपनी पत्नी का खर्च चलाने के लिए लोन लेकर छोटा सा मकान बना लूँ और फिर वहीँ पर एक छोटी सी दुकान डाल लूँ . दोनों मिलकर दो वक़्त की रोटी भी जुटा लेंगे. और अपना टाइम भी आराम से कट जायेगा.

बाबा आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया. जब आपका बेटा काम रहा है तो आपको यह सब करने की क्या जरूरत है?

इसपर थोड़ी देर खामोश रहने के बाद बूढ़े व्यक्ति ने कहा बेटा ये बड़ी लम्बी कहानी है. बाबा आपको कोई दिक्कत न हो तो प्लीज आप मुझे विस्तार से बताएँगे. बेटा मुझे तो कोई दिक्कत नहीं लेकिन आपको घर भी तो जाना है. कोई बात नहीं आप बताइए. बूढ़े व्यक्ति ने बोलना शुरू किया. बेटा मैं हमेशा से सिधान्तवादी व्यक्ति था. अतः मुझे कभी भी गलत या कहो शोर्टकट तरीके से पैसा कमाना पसंद नहीं था. लेकिन मेरा बेटा जब पढाई के बाद नौकरी शुरू किया तो हमेशा उसका ध्यान जल्दी से जल्दी कैसे अपनी कंपनी शुरू कर बड़ा आदमी बना जाये इसी में लगा रहता था. मैंने उसे  कई बार समझाया बेटा पहले इन्सान को अपने काम में महारत हांसिल करनी चाहिए फिर कोई अपना काम शुरू करो पर उसके सिर पर तो बड़ा आदमी बनने का भूत सवार था. उसने अपने कंपनी से सॉफ्टवेयर किसी और को दे दिया और उस एवज में जो पैसा मिला उससे अपना कारोबार शुरू कर विदेश में जा बसा. जब मुझे उसके इस बात की भनक लगी तो मैंने उसे बहूत समझाया पर वह नहीं माना और तबसे हम दोनों का रिश्ता सदा के लिए टूट गया. हम दोनों के विचार कभी नहीं मिले

तभी गाड़ी झटके से रुकी तो बुजुर्ग व्यक्ति की तन्द्रा भंग हुई देखा उनका घर आ गया है. अधिकारी साहब ने कहा बाबा आपका घर आ गया. बेटा लेकिन तुम्हे मेरे घर का पता कैसे मालूम था. बाबा आपके फाइल में दर्ज था. बुढा आदमी उतरते हुए बोला बेटा जब इतनी दूर आये हो तो आओ अपनी पत्नी से मिलवाता हूँ. बाबा अगर अन्दर आऊंगा तो आपको अपने हिस्से से मुझे खाना भी खिलाना पड़ेगा. आपने तो मेरे मन की बात कह दी. बेटा दस मिनट लगेंगे खाना खाते ही जाओ तुम्हारी काकी बहुत अच्छा खाना बनाती है. दोनों गाड़ी से उतरकर दरवाजे तक जैसे ही पहुंचे. अन्दर से दरवाजा खुल गया. दरवाजा खुलते ही एक बुजुर्ग महिला सामने से बोली आप इतनी देर कहाँ रह गए थे. मैं कितनी चिंतित थी आपका फ़ोन भी स्विच ऑफ आ रहा है. भाग्यवान सवाल ही पूछती रहोगी खाना नहीं खिलाओगी देखो मै किसको लेकर आया हूँ. यह सुनकर बूढी महिला सकपकाकर साईड हो गई. और दोनों लोग घर के अन्दर चले गए. घर साधारण ही था लेकिन करीने से हर सामान अपनी जगह राखी गयी थी. जिससे पता चलता था कि घर का व्यक्ति कितना सुलझा हुआ होगा.

इतने में काकी खाना लेकर बैठक में आ गई और बोली जल्दी आ जाओ खाना आ गया. जब दोनों खाने की मेज पर बैठ गए तो काकी ने बड़ी आत्मीयता से बोला बेटा आप क्या पंकज के दोस्त हो. मीनाक्षी की बात को काटते हुए बूढ़े व्यक्ति ने कहा. नहीं ये वही साहब है जिनके पास मैं गया था अच्छा कहकर मीनाक्षी चुप हो गयी. कुछ देर तक दोनों भोजन करते रहे. फिर सहसा अधिकारी साहब ने बोला काकी खाना बहूत स्वादिस्ट बना है. आज आपके हाथों का बना खाना खाते हुए ऐसे लग रहा है जैसे अपनी माँ के हाथों का बना खाना खा रहा हूँ.

जबतक बूढ़े व्यक्ति कुछ सवाल पूछने की सोंच ही रहे थे. इसी बिच अधिकारी साहब खुद ही बोल पड़े काका ये दुनिया भी कितनी अजीब है जो अपने माँ-बाप के पास रहना चाहते है उन्हें वो दूर कर देते हैं. और जो माँ–बाप अपने बच्चों के साथ रहना चाहते उन्हें बच्चे दूर कर देते हैं. बड़ी अजीब सी बिडम्बना है.

बूढ़े व्यक्ति से रहा नहीं गया उन्होंने पूछ ही लिया बेटा आपके माता–पिता कहीं दूर रहते हैं क्या? नहीं काका ऐसी बात नहीं है वह हमें पसंद नहीं करते. मेरी और आपकी कहानी में कोई ज्यादा अंतर नहीं है. शायद इसी वजह से मैं यहाँ तक खिचां चला आया.

बेटा आप तो इतने नेक इन्सान हो फिर आपके माता–पिता आपसे नाराज क्यों हैं? काका मैं अपने घर में तिन भाई-बहनों में सबसे बड़ा हूँ. यही कारण हैं कि सबको मेरे से बहुत ज्यादा उम्मीदे थी. पर मैं अपनी नेकी या यूं कहें कि अपने सीधेपन की वजह से उनके उम्मीदों पर खड़ा नहीं उतर सका. और हमारे बिच धीरे–धीरे  अविश्वास की एक गहरी खाई बनती गई. धीरे धीरे मैं भी अपने रिश्ते के प्रति उदासीन होता गया और आज लगभग हमारा रिश्ता टूट ही गया हुआ है. पिछले दो वर्षो में एक ही शहर में रहने के वावजूद हम एक बार भी मिले नहीं. यह सब कहते कहते अधिकारी साहब की ऑंखें भर आई. थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोले काका मैं आपको चेक अभी दे सकता था लेकिन मैंने सिर्फ उसे इसलिए रोका ताकि मैं आपको चेक उसी व्यक्ति के हाथो दिलवाऊ जिसने आपको वापस भेजा था ताकि उसे सबक मिले और आगे वह ऐसी हरकत किसी और के साथ न करे.

यह सब सुनकर बूढ़े व्यक्ति की उत्सुकता बढ़ गयी और जो बात उनके मन में घंटों से घूम रही थी वह जुबान पर आ गई और उन्होंने अधिकारी साहब से पूछ ही लिया बेटा आप जब इतने ईमानदार हो फिर वह बाबू आपका नाम क्यों ख़राब करने की कोशिस करता है. बाबा आप अपनी जिम्मेदारी तो ले सकते हैं पर सार्वजनिक स्थानों पर आप किसी पर दबाब नहीं बना सकते वहां पर आपको अपने कार्य के माध्यम से ही सामने वाले को सबक देना होता हैं. मैं भी समय-समय वही करने की कोशिश कर रहा हूँ. सुधर गए तो ठीक नहीं तो वो अपने रास्ते और हम अपने रास्ते.

बेटा तुम्हे कामयाबी जरूर मिलेगीऐसा मेरा मानना है. ईमानदार इन्सान कभी हरता नहीं हाँ नेक इन्सान को अपनी ईमानदारी साबित करने वक़्त जरूर लगता है क्योंकि आज के माहौल में ईमानदार कम झूठ और फरेब करने वाले ज्यादा लोग हैं. यही वजह है कि कई बार ईमानदार आदमी कि भावना भी आहत होती है फिर भी शास्त्रों में भी कहा गया है कि चाहे मार्ग में कठिनाई कितनी भी आए सत्य का रास्ता कभी नहीं छोरना चाहिए.