यह ब्लॉग खोजें

Translate

विशिष्ट पोस्ट

अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

मेरा स्कूल

मुझको भाया मेरा स्कूल
कितना सुन्दर कितना प्यारा
प्यारे - प्यारे  फूलों वाला 
फूल सुहाने सबको भाते 
हम बच्चों को ललचाते हैं 
पर माली हमको धमकाता 
दूर रहो इसको मत छूना 
वरना पड़ेगी खूब पिटाई 
पर हम बच्चे है शैतान 
आते सब टोली में मिलकर 
इधर - उधर की बातों में 
माली काका को बहकाते 
चुपके से कुछ फूल चुराते 
माली काका जब हमें भगाते 
जोड़ -जोड़ से हँसते हम सब 
वो थककर बैठ जब जाते 
हम सब मिलकर पानी लाते 
काका को शौरी कहकर 
फिर से उनको बहलाते।  

बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

भोलू भाई

भोलू भाई भोलू भाई
क्यों रूठे हो भोलू भाई
गाल फूला कर आंख सूजाकर 
क्यों बैठे हो नहोलू भाई 

देखो  मैं क्या  लेकर आई 
गुड्डा - गुड़िया और मिठाई 
लेलो चॉकलेट और मिठाई
 छोड़ो जिद्द अब कुश हो जाओ
रोना धोना भूल भी जाओ 

माँ ने क्या दो चपत लगाई 
या हो गई छोटी से लड़ाई 
चलो घूमकर आते है 
नए खिलौने लाते है 

भोलू भाई तुम हो मेरे 
सबसे प्यारे भाई 
जब राखी की थाली लेकर 
मैं आंगन में आती हूँ 
तुम्हे देख हर्षाति  हूँ।   

सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

मैं खुश हूँ

जिंदगी बड़ी छोटी है फिर भी मैं खुश हूँ
काम में भी खुश हूँ आराम में भी खुश हूँ
मैं दाल-रोटी में भी खुश हूँ 
पुआ-पकवान  में भी खुश हूँ 
जितना मिल जाए मैं उतने में ही खुश हूँ

जिंदगी बड़ी छोटी है फिर भी मैं खुश हूँ 
जो मुझसे खुश है मैं उसी की ख़ुशी में ही खुश हूँ 
पर जो नाराज है उसके अंदाज में ही खुश हूँ 
किसी को पाकर मैं खुश हूँ 
किसी ने मुझे खो दिया 
उसकी सोंचकर मैं खुश हूँ 

जिंदगी बड़ी छोटी है फिर भी मैं खुश हूँ 
जो पल बित  गया 
उसकी यादों में खुश हूँ 
जो आनेवाला  है 
उसके इंतजार में खुश हूँ

जिंदगी बड़ी छोटी है फिर भी मैं खुश हूँ 
हँसता हुआ बिट रहा है अपना हर पल 
मैं  जिंदगी के हर एक पल में खुश हूँ
मैं भीड़ में भी कुश हूँ 
अकेले में भी खुश हूँ 


मैं सुख में भी खुश हूँ 
मैं दुःख में भी खुश हूँ 
जिंदगी बड़ी छोटी है
मैं फिर भी मैं खुश हूँ 


  

 
 


गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

पेड़ लगाओ

पेड़ लगाओ जान बचाओ
प्रकृति का श्रृंगार कराओ
हरियाली को ओढ़ माँ धरती 
ख़ुशी से झूमा करती है

पेड़ लगाओ जान बचाओ
जन - जन  तक संदेश पहुंचाओ 
पर्यावरण बचाना है तो 
पेड़ लगाना होगा हमको 
उनको रोज सींचना भी 
हम सब का है काम

पेड़ लगाओ जान बचाओ
मिट्टी को काटने से बचाओ 
बाढ़ के दर से हमें बचाओ 
हर घर में खुशियां ले आओ 

पेड़ लगाओ जान बचाओ
जीवन कुछ मासूम बचाओ 
खुशियाँ हर चेहरे पर लाओ 
वर्तमान के संग - संग  
भविष्य को भी उज्वल बनाओ।  

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

छोटा बच्चा

जब मैं छोटा बच्चा था
मन से पूरा  सच्चा था
सबके लिए मैं अच्छा था
भोला - भाला  गोल - मटोल 
हँसता मैं हरदम मुँह खोल

जब मैं छोटा बच्चा था 
मन से पूरा  सच्चा था
घड़ी- घड़ी पानी मैं  डालूं 
सर पर मिट्टी डालकर आऊं
लोटपोट होकर सब हँसते

जब मैं छोटा बच्चा था 
मन से पूरा  सच्चा था 
जब कोई स्कूल की कहता 
रो - रोकर मैं गिरता -पड़ता 

जब मैं छोटा बच्चा था 
बड़ा कान का कच्चा था 
मन से पूरा सच्चा था 
कुछ भी था पर अच्छा था। 

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

तितली रानी

तितली रानी बड़ी सयानी 
रंग- बिरंगी पँखों  वाली
फुदक -फुदक कर गाना गाती
रूप मनोहर सबको भाता 
फूलों से खुशबू ले जाती
 बच्चो के मन को है भाती 

कितनी प्यारी तितली रानी 
घूम - घूम फूलों पर आये 
बच्चों के मन वो ललचाये 
रंग- बिरंगे पँख दिखाए 
रहे झुंड में मिलकर गाये 

तितली रानी इतने सुन्दर 
पँख कहाँ से लाती हो 
हमको भी वो जगह बता दो 
रंग- बिरंगे पँख दिला दो
मैं भी उड़कर आउंगी 
दूर -दूर तक संग तेरे 
घूम-घूम कर गाऊँगी।   

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

गीली मिट्टी

तुम कितनी नादान थी
तुम्हारा कोई आकार न था
तुम्हारा कोई रूप न था 
तुम्हारा अपना क्या था 

हमने तो तुम्हे नाम दिया 
एक अच्छा सा तुम्हे आकार दिया 
लोगो के घर तुम चलकर आओ 
ऐसा एक मुकाम दिया 

गीली मिट्टी  बनकर तुम 
बोलो क्या कोई काम किया 
पैरों को गंदा करने से 
बस तुमको उपहास मिला 
 
पर जब मैंने गढ़ा तुम्हे तब 
मटका का तुम्हे नाम मिला 
पानी पीकर तृप्त हो गए 
चलते प्यासे राही 
घर - घर ने अपनाया तुमको 
प्रेम प्यार से लाया तुमको 

पर जब मैंने तुम्हे दीप बनाया 
पूजा की थाली में सजाया 
दीपोत्सव का  हिस्सा बनकर
 तेरा मन कितना मुस्काया  

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

दीपक

मैं दीपक हूँ दीपक बनकर
जगमग जग कर जाऊँ
राह सभी को दिखलाऊँ
सबको मंजिल पर पहुँचाऊँ

मैं दीपक हूँ दीपक बनकर
जगमग जग कर जाऊँ
जुगनू से है प्रेम हमारा 
अन्धकार से बैर हमारा 

मैं दीपक हूँ दीपक बनकर 
जगमग जग कर जाऊँ
पूजा की थाली में सजकर 
दिव्या प्रेम वरषाऊँ

मैं दीपक हूँ दीपक बनकर 
जगमग जग कर जाऊँ
अंधकार की तिमिर घटा में 
भी जग को हरसाउ 

मैं दीप हूँ दीकपक बनकर 
जगमग जग कर जाऊँ
दीपोत्सव से दूर सभी 
अंधीयारा कर जाऊं 

मैं दीप हूँ दीकपक बनकर 
जगमग जग कर जाऊँ 

 


सोमवार, 12 अक्तूबर 2020

बादल

कितना अच्छा होता
मैं बादल बन जाती 
उम्र - घुमर धरती पर आकर 
मैं फिर से प्रलय मचाती 
कहीं पे बाढ़ तो कहीं पे सुखा 
जल -थल -नभ पर छाति 

कितना अच्छा होता 
मैं बादल बन जाती 
धरती माँ कि प्यास बुझाती 
हरियाली फैलाती  
फूल - पत्तियों पर रुक कर मैं 
फिर मोती बन जाती

कितना अच्छा होता 
मैं बादल बन जाती 
गरज - गरज कर सबको डराती 
झम - झम  कर फिर बरस भी  जाती
गर्मी से तपते मौसम में 
मैं फुहार बनकर आती 

कितना अच्छा होता 
मैं बादल बन जाती उमर - घुमर कर 
रोज सवेरे मैं फुहार बरसाती 
हरियाली कि खातिर हरदम 
मैं अमृत बन जाती   

 




शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

जंग

जंग करने मैं चला
जंगी जहाजों में बैठकर 
छोड़कर अपनों का साथ 
धुल में सब मिल गए 
गए वो सब छोड़कर 
रोते -बिलखते अपना आशियाँ 

जंग से हांसिल नहीं 
होती कभी भी शांति 
छोड़ दो हथियार तुम 
मिलकर बैठते है 
कुछ कहो तुम 
कुछ मेरी भी सुन लो 


कोई भी मतभेद ऐसा नहीं 
जिसे हम सुलझा न सके 
क्यों विनाश को निमंत्रण देते हो 
हम साथ है तुम्हारे 
हर दुःख सुख में 

माना  कि तुमने हमें
 हरदम छला ही है 
पर हम परोसी के 
कर्तब्य से चुकूँगा नहीं 
ये वादा है हमारा 

कोई लौटकर आता नहीं 
जो युद्ध में हमसे बिछड़ गए 
जंग कोई साधन नहीं 
जो प्यार हममे घोल दे 
वो तो ऐसा जहर है
 जो दूर सबको कर दे 


बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

आज का दिन

मारो न उन एहसासों को
खुलकर जी लेने दो सबको 
सपने सिर्फ देखना ही नहीं 
जीना भी सीख लो उसको 
सिर्फ सपना देखना ही 
अपना उद्देश्य नहीं 
जब सुख को हमने जिया 
तो दुःख को भी झेलना सीखेंगे 

गम के बादल छंट जाने दो
खुशियाँ खुलकर आएँगी 
हम गीत ख़ुशी के गायेंगे 
आँखों से बहते नीरों को 
मोती में ढलते पाएंगे 

गम काट लिए जिन वीरों ने 
खुशियाँ उनकी अनमोल हुई
उन कर्मविरों  कि भूमि से है 
है भरा परा यह देश हमारा 

फिर क्यों भटके 
तुम युवा आज के 
देखो अपने पुरखो को 
हिम्मत खुद ही बांध जाएगी 

है बलिदानी कथा हमारी 
है पुण्य भूमि यह देश मेरा 
जीवन कठिनाई में जीकर 
निखरी है अच्छाई मेरी 

एहसास सभी अपने है 
वो खास सभी सपने है  
जिन पर गौरव यह देश करे
जिनपर अभिमान मैं स्वयं करूँ . .... 

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

सफर

हो के मायूस ना यूँ शाम ढलते रहिये
ज़िन्दगी एक भोर है 
सूरज की तरह निकलते रहिये 
ठहरेंगे एक पाँव पर तो थक जाओगे 
धीरे-धीरे ही सही 
मगर राह पर चलते रहिये 
ये सफर खट्टे-मीठे अनुभवों का सफर है 
बस इस राह पर 
मुस्कुरा कर आगे बढ़ते रहिये 
ज़िन्दगी भोर का उगता हुआ सूरज है 
बचपन सुखद आश्चर्य का संगम है 
जवानी दोपहरी की तपती हुई रेत तो 
बुढ़ापा शाम की वो छॉव है 
जो दुखता भी है और 
ज़िन्दगी की खट्टी-मीठी यादो में 
रमता भी है।