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बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

गीली मिट्टी

तुम कितनी नादान थी
तुम्हारा कोई आकार न था
तुम्हारा कोई रूप न था 
तुम्हारा अपना क्या था 

हमने तो तुम्हे नाम दिया 
एक अच्छा सा तुम्हे आकार दिया 
लोगो के घर तुम चलकर आओ 
ऐसा एक मुकाम दिया 

गीली मिट्टी  बनकर तुम 
बोलो क्या कोई काम किया 
पैरों को गंदा करने से 
बस तुमको उपहास मिला 
 
पर जब मैंने गढ़ा तुम्हे तब 
मटका का तुम्हे नाम मिला 
पानी पीकर तृप्त हो गए 
चलते प्यासे राही 
घर - घर ने अपनाया तुमको 
प्रेम प्यार से लाया तुमको 

पर जब मैंने तुम्हे दीप बनाया 
पूजा की थाली में सजाया 
दीपोत्सव का  हिस्सा बनकर
 तेरा मन कितना मुस्काया  

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 15 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह क्या बात है, मिट्टी का सम्मान, आत्मविभोर रचना।

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