मन से पूरा सच्चा था
सबके लिए मैं अच्छा था
भोला - भाला गोल - मटोल
हँसता मैं हरदम मुँह खोल
मन से पूरा सच्चा था
घड़ी- घड़ी पानी मैं डालूं
सर पर मिट्टी डालकर आऊं
लोटपोट होकर सब हँसते
मन से पूरा सच्चा था
जब कोई स्कूल की कहता
रो - रोकर मैं गिरता -पड़ता
जब मैं छोटा बच्चा था
बड़ा कान का कच्चा था
बड़ा कान का कच्चा था
मन से पूरा सच्चा था
कुछ भी था पर अच्छा था।
बच्चे मन के सच्चे होते हैं लेकिन बड़े होते ही मोह-माया सब खेल बिगाड़ देता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बाल रचना
thanks ma'am
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks Sir
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