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अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

शनिवार, 31 जुलाई 2021

रिश्वत

गया जमाना बाबू साहब चाय पानी खाने का
बाबू बनकर खाई मलाई अब ताने  से काटो दिन 

कुर्सी पर बैठे बाबू की डरकर सब करते हैं मान 
पर जैसे ही छुटी कुर्सी अपना मोल समझ में आया 

कोई न करता दुआ सलाम मूंह फेर सब आगे बढ़ते 
बाबूजी कुर्सी की ताकत का जो करते सही प्रयोग 

कदम-कदम पर हर आँखों में दुआ की ताकत होती साथ 
जहां भी जाते आप कभी भी ख़ुशी से स्वागत होता उनका 

ह्रदय गर्व से फूला समाता झोली खुशियों से भर जाती 
धन थोड़ा होता तो क्या मन का चैन सुकून तो होता 

रिश्वत लेना रिश्वत देना घोर पाप है दोनों काम 
सारी हो हल्ला के बाद मन को चाहिए चैन सुकून 

मोती  खोकर पैसा पाया पैसे  से बर्बादी लाया 
अब रोने से कुछ नहीं होगा दूर कहीं छुटी वह राह 

हिम्मत रखकर जिसने चुनी सच्चाई की राह 
धीमे-धीमे सही कदम पर आगे बढ़ते हैं वो लोग 

थोड़ा धीरज धरना सिखों वक़्त पे होता है सब काम
जीवन कठिन परीक्षा लेती पर मौका है सबको  देती 

एकबार जो भटक गया वह लौट कभी नहीं पाता है 
चलना सीखो संभल-संभल कर है अनमोल ये जीवन मेरा . 

 

रविवार, 25 जुलाई 2021

जीवन की पटकथा

जीवन तीन अक्षरों से बना है
ये शब्द नहीं पूरी परिभाषा है

जी का मतलब, जी भर जियो
खुशिया भी तेरी गम भी तुम्हारे  

व का मतलब, बढ़ते चलो 
जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है 

न का मतलब, नदी की तरह चालो
अपनी राह खुद बनाओ 

मंजिलें खुद ब खुद सामने आएंगी 
नदी बहकर सागर में मिलती है 

और जैसे पूर्ण हो जाती है 
वैसा ही है मानव जीवन 

अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए 
आत्मा से परमात्मा में मिल जाती है 


गुरुवार, 15 जुलाई 2021

बंधन

बहुत सह लिया नहीं सहेंगे अब कोई बंधन
जीवन है उन्मुक्त हमारा मन स्वछंद पवन

खाते है सौगंध धरा की 
विचलित कभी ना होंगे हम 

जीवन की हर घड़ी संजोकर 
धैर्य और साहस के बलपर 

कदम-कदम पर ठोकर खाकर 
परखा है जीवन को हमने

बहुत सह लिया नहीं सहेंगे अब कोई बंधन
प्यार हमारा देखा था अब देखोगे दम 

बहुत सभ्यता की बाते की 
अब हुंकार भरेंगे हम 

बहुत खा लिया पीठ पर  खंजर 
अब  जवाब की  बारी है 

गिन-गिन कर हर जख्म की कीमत 
लेकर चैन हमें आएगा 

सबकी सुनते रहे आजतक 
अब मेरी  सुननी होगी 

है अखंड यह भारत मेरा 
खंडित कभी न होने देंगे .    


बुधवार, 7 जुलाई 2021

वो रात

जब दिन में ही हर ओर क्रंदन है
तो वो रात कितनी खौफनाक होगी
हर गली सूनी हर घर में अँधेरा छाया 
दिन खाने को दौरता है तो रात काटे नहीं कटती 

हर ओर जख्म के ही दाग बिखरे हैं 
वो रात न जानें कहां गुम हो गई 
जब हम चाँद तारों से बातें करते थे 
हर ओर ख़ुशी और सुकून था 
जीवन की आशा थी प्यार की परिभाषा थी 

आज तो बस काली रात कि छाया है 
दम तोड़ते रिश्तों की रूदन है 
आंखों में आंसू और ह्रदय में चुभन है 
हम खामोश हैं पर सवाल अनगिनत है 

घर-घर में चीख - पुकार है 
हर ओर सन्नाटा पसरा है 
ना तो खुशियों से भरा वो दिन हैं 
ना प्रेम वर्षाती वो रातें 

अपनों के विरह में सब कूछ  बिखरा-बिखरा है 
जीवन के जंग में कोई जीत गया 
तो कोई हारकर बैठा है .