आओ चले
मिलकर हम सब
चलो हँसने की
हम वजह ढूंढते है
अपनी - अपनी सी लगे
वो जगह ढूंढते है
जहाँ सबकुछ हो हमारा
वो सतह ढूंढते है
जो खुल जाये हमसे
वो गिरह ढूंढते है
ज़िन्दगी में नई
एक सुबह ढूंढते है
प्यार से हो बनी
गर्मजोशी हो जिसमे
अपनों का ऐसा
शहर ढूंढते हो
जहाँ न हो कोई भेदभाव
छल - कपट से दूर चलो
हम मिलकर अमन ढूंढते है।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 06 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ! !
हटाएंनव वर्ष शुभ हो |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ! ! और आपका भी नव वर्ष शुभ हो :)
हटाएं