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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

शनिवार, 4 जनवरी 2025

आओ चले

आओ चले 

मिलकर हम सब 

चलो हँसने की 

हम वजह ढूंढते है 

अपनी - अपनी सी लगे 

वो जगह ढूंढते है 

जहाँ सबकुछ हो हमारा 

वो सतह ढूंढते है 

जो खुल जाये हमसे 

वो गिरह ढूंढते है 

ज़िन्दगी में नई 

एक सुबह ढूंढते है 

प्यार से हो बनी 

गर्मजोशी हो जिसमे 

अपनों का ऐसा 

शहर ढूंढते हो 

जहाँ न हो कोई भेदभाव 

छल - कपट से दूर चलो 

हम मिलकर अमन ढूंढते है। 

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