विष का भागी कौन बने
विष पिकर अमृत का अनुभव
साझा करने की ठानी
कड़वी यादें परछाई है
हमें मुकाम तक ले जाने की
कई ब्यक्त-अब्यक्त कथा को
मंजिल तक पहुँचाने की
जब होती तारीफ़ हमारी
अहम् साथ भी लाता है
पर जब कोई ढूंढ-ढूंढ कर
नए नुक्श बतलाता है
फिर पानी की भांति निर्मल
करके हमें वह जाता है
दुआ नहीं गर हमें मिला तो
नफ़रत को ही बना के ताकत
हर मंजिल को पाना है
कड़वी यादें दुःख देती है
पर जीवन में कामयाबी की
कुँजी यहीं से मिलती है
आग में तपता है जब सोना
तब वह कुंदन बनता है
कौन है हिरा कौन है पत्थर
बिना तराशे कोई न जाने
बिना गिरे ठोकर की कीमत
नहीं किसी ने जानी है
गिर-गिर कर ही हमने सीखा
अपने पैरों पर चलना
कड़वी यादें सदा साथ में
हिम्मत बनकर चलती है
कड़वी यादों को संजोकर
समर जीतने की ठानी।