बचपन के नादानी का
नानी के घर जाने का
जमकर मौज मनाने का
नानी के संग मेला जाना
खील बताशे जमकर खाना
नानी से जमकर बतियाना
मामा के संग गांव घूमना
नानी सुनाती रोज कहानी
मामी जमकर कान खींचती
नए - नए जुमलों से चिढ़ाती
रोज नए पकवान खिलाती
मौसी घर-घर हमें घुमाती
दिनभर घूमकर बात बनाती
घर-घर का किस्सा सुनकर
मैं दिनभर में बोर हो जाती
लौट के घर पर जब मैं आती
करती माँ से चिल्लम - चिल्ला
फिर क्या माँ दो चपत लगाती
कहती फिर चुप बैठो अंदर
पढ़ो लिखो कुछ काम करो
मेरा सिर खाने से अच्छा
ध्यान पढाई में तुम दो
मिलने यहाँ सबसे आये हैं
कुछ अपनी कुछ उनकी सुनकर
वापस हमें चले जाना है
सारी यादें लेकर उनकी
हमें लौटकर फिर जाना है
सफर सुहाने यादों का
बचपन की नादानी का
याद हमें जब आती है
मंद-मंद मुस्कान से हमको
भाव - विभोर कर जाती है।
बहुत ही सुन्दर और सार्थक कविता , शब्दों में अपनापन सा लगता है ,
जवाब देंहटाएंआपका बहूत - बहूत आभार सर
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