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अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

धर्म

धर्म शब्द अपने आप में विशालता के लिए प्रसिद्ध है इसकी सीमा अनंत है इसकी परिभाषा भी देश काल और उस समय की परिस्थिति के अनुसार बदल जाती है।  लेकिन बय्क्ति विशेष के लिए कुछ चीजों की सिमा तय करना बहुत आवश्यक होता  है  वर्ना मानव पर उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।  धर्म हमारी उन्ही सीमाओं को तय करता है।  हमारे कर्तव्य को सहि तरीके से पूरा करने के लिए धर्म का होना बहुत जरूरी है क्योंकि जब हम अपने से जुड़े हुए अनेकों रिश्तों पर गहराई से विचार करते है।  तो हमें यह महसुस होता है , की हमारा धर्म ही हमें समय समय पर अपने कर्तब्य का बोध कराता रहता है।  जैसे हर बय्क्ति मानव जीवन में अनेकों रिश्तों से बंधा होता है और सबके लिए उसके कर्तव्य निश्चित होते है।  
परन्तु कई बार लोग अपने अहम् में इतने अंधे हो जाते है  कि उन्हें लगने लगता है वो जो भी करेंगे वही सत्य और धर्म बन जाएगा क्योंकि वो ताकतवर है उनके उनके पास धन की बहुलता है लेकिन शायद वो यह भूल जाते है कि जिस धन के मद  में  चूर होकर  वो इस तरह का आचरण करने लगते है वह धन न तो सदा के लिए उनके पास रहने वाला है और न ही उससे अपने लिए कोई एक रिस्ता भी ऐसा खरीद पाए जो उनके दिल से जुड़ सके।  
धन और अहम् के बल पर खरीदी या बनाया गया हर रिस्ता या वस्तु हमेशा उस इंसान को कस्ट ही पहुंचाती है।  लेकिन फिर भी लोग धन के मद में  उन सच्चाइयों को नहीं देख पाते है।  ये सारी बाते उन्हें तब समझ आती है जब धन और धर्म दोनों उनका लूट चूका होता है।  
पर उसके बाद इंसान लाख पछताए कोई फययेडा नहीं।  अतः हमेशा अपने कर्तव्य को अपना धर्म समझ कर निभानेवाला बय्क्ति हि चैन  सुकून की जिंदगी बिताता है हमारे समाज इसके हजारो उदाहरण है।  
धर्म और कर्तव्य दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू  है।  हाँ सिर्फ इसके महत्व को समझने की जरूरत है।  वास्तव में धर्म न तो किसी बाजार में बिकने की बस्तु है और न ही यह किसी को उधर में दी जा सकती है।  धर्म और कर्तव्य  

बुधवार, 29 जुलाई 2020

गम और सितम

जिंदगी आ बैठ कर थोड़ी देर बाते करले 
ये बता और कितने मेरे इम्तिहान बांकि है 
दूर बस रेत  ही  रेत है निगाहों में 
है कहाँ जमीं कहाँ आसमा बांकि है 
खुदा तेरे आँखों के  भी आंसू हमें देदे 
मेरे दिल में अभी दर्द बांकि है 
खुदा तेरी झोली में ढेर सारी खुशियां भर दे 
मेरी झोली में तो अभी गम के अरमान बांकि है 
मेरा तो जीवन ही ग़मों का सागर है 
कुछ गम तेरे भी समेट लूँ तो क्या गम है 
तुझे चाहा है दिल की गहराइयों से 
अभी अपने  दिल में जज्बात बांकि है 
जिंदगी आ थोड़ी देर बैठकर और बातें करते है 
गम और सितम के अभी कई मकाम बांकि है।   

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

अयोध्या के राम

आज अयोध्या मुस्कुराई 
चार सौ नब्बे वर्षों के बाद 
वह पावन दिन आज है आया 
पावन धरती की गरिमा को 
पूरा वश्व अब देखेगा 
मन में खुशियां है अपार 
राम नाम दिल की धरकन में 
जपता मन है बारम्बार 
राम की महिमा अपरम्पार 
राम की नगरी राम का नाम 
बना सभी का तीरथ धाम 
बोल रहा है पूरा भारत 
राम हमारे राम तुम्हारे 
राम सभी के तारण हार 
कण - कण में बसते है राम 
हर धड़कन में राम ही राम। 

बुधवार, 22 जुलाई 2020

कलम

कलम कभी झुकने पाए न 
कलम कभी रूकने पाए न 
कलम की ताकत जिसने जानि 
कलम पर अपने करदे वो 
जीवन पूरी कुर्बान 

कलम के बिना  शब्द गढ़ना मुश्किल 
कलम शब्द की जाल को बुनता 
कलम जीवन की सच्चाई है 
कलम जीवन की अच्छाई है 
कलम हमारी परछाइ है 

कलम हमारा दिब्य प्रेम है 
कलम हमारा अंतर्मन है
 कलम हमारी सुंदरता है
कलम हमारा शौर्य बढ़ाता 

कलम गीत - संगीत हमारा 
कलम प्रेम का ताना - बाना 
कलम बिरह की अभिब्यक्ति है 
कलम हमारे जीवन में 
ज्ञान का है अनमोल खजाना।   

मंगलवार, 21 जुलाई 2020

बहुरानी

शादी के जोड़े में सजकर 
आई एक दिन बहुरानी 
पांव में मेहंदी  रंग आलता 
सोलह श्रृंगारों  से सजकर 
सर पे घूँघट पाजेब पांव में 
छुई मुई सी बहुरानी 
सबकी नजरे टिकी हुई है 
आई कैसी बहुरानी 

शादी के जोड़े में सजकर 
आई एक दिन बहुरानी 
अपने घर को छोड़छाड़ कर 
इस घर को अपनाना है 
नई नवेली दुल्हन बनकर 
रिश्ते नए बनाना है 

शादी के जोड़े में सजकर 
आई एक दिन बहुरानी 
लोग नए है गावं नया है
 सारे अब जज्बात नए है 
गम और खुशियां दोनों को 
हमको अब संग - संग जीना है 

शादी के जोड़े में सजकर 
आई एक दिन बहुरानी
 बहुरानी के संग - संग अब 
पत्नी भाभी सब बनना है 
सबके दिल को भाये ऐसा 
हर पल कोशिश ये करना है। 


सोमवार, 20 जुलाई 2020

मायका

मायके से मैं चली 
चाँद अरमानों को लेकर 
सपना घर बसाने का 
आँचल में संजोकर 
बचपन की यादों को 
आँखों में प्रेम की छवि 
दिल में ढेरो अरमान लेकर 
हाथो में मेहंदी थी 
पैरो में पाजेब था 
नए जीवन की कल्पना से 
मन में खुशियां अपार थी 
रंग बिरंगे ख्वाबों के संग 
जीवन की सुरुआत हुई 
इस शफर में पता नहीं 
अपना वो मायका 
पता नहीं कब खो गया 
पता ही नहीं चला 
मैं कब मायके से 
ससुराल की हो गई।  

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

प्रहरी

प्रहरी हूँ मैं भारत माँ का 
माँ की रक्षा करते करते 
हँसते हँसते ही जाऊंगा 
अपने शौर्य की गाथा को 
स्वर्णाक्षरों में अंकित करके 
नाम देश का रौशन करना 
अपना एक है लक्ष्य 

प्रहरी हूँ मैं भारत माँ का 
हमसब सीमा पर डटकर माँ 
तेरी ाँ पैर मिट जाऊंगा 
तेरा शीश न झुकने देंगे 
तेरे अंशु की कीमत हम 
कतरा कतरा खून से लेंगे 
प्रहरी हूँ मैं भारत माँ का 
माँ की रक्षा करता रहूँगा 

गुरुवार, 16 जुलाई 2020

शब्द

शब्द हूँ शब्द से शब्द तक मैं चलु 
शब्द को जोड़कर शब्द का कुछ करूँ 
शब्द से मैं डरु  शब्द को मैं गढ़ु 
शब्द ही शब्द में मैं उलझी रहूँ 
शब्द के जाल मैं खुद से बुनती रहूं 
शब्द को जोड़कर मैं खुद से चलूं 
शब्द तपते हुए सूर्य की है किरण 
शब्द में है चाँद सी सीतलता 
शब्द वो बाण है शब्द वो मान है 
शब्द के जाल में पूरा संसार है 
शब्द में प्रेम है शब्द में है दुआ 
सब है उलझे हुए शब्द के खेल में।  

सोमवार, 13 जुलाई 2020

जिंदगी एक किताब

काश जिंदगी एक किताब होती 
हम खोलकर उसे पढ़ पाते 
आने वाले गम की आहट को 
पहले ही भांप जाते 
चाँद खूबसूरत पंक्तियाँ 
हम उसमे जोड़ पाते 

काश जिंदगी एक किताब होती 
अपने सुनहरे भविष्य के लिए 
कुछ तो सलग केर पाते 
कुछ खाली पन्नो में रंग ही भर पाते 
अपने जीवन के कड़वी सच्चाई को 
खुद से पढ़ पाते 
काश जिंदगी एक किताब होती 


रविवार, 12 जुलाई 2020

सर्वोपरी

लम्हा लम्हा बिता जाए 
फिर भी दिल तनहा रह जाये 
भीड़ का आलम ऐसा है 
हर ओर निगाहें ही दिखती 
फिर भी तनहा क्यों है हम सब 

लम्हा लम्हा बिता जाए 
लम्हा लम्हा भारी पड़ता 
 लम्हा लम्हा बिता जाता 
हर वक्त तीक्ष्ण तलवारों से 
मानव मन को काटा जाता 
है प्रेम कही खो सा गया 
हर रक्षक में भक्षक दीखता 

लम्हा लम्हा बिता जाये 
लम्हे लम्हे की कीमत से 
जोड़ दो जन-जन को 
है तन-मन भी देशभक्ति से 
ओत-प्रोत इस जीवन को 
कर उपयोग क्षण-क्षण का 
बन जाओ तुम सर्वोपरी 

लम्हा लम्हा बिता जाए 
तनहा तनहा क्यों रह जाये। 

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

गम

आँखों में  आंसुओं के सैलाब को बुलाएगा कौन 
गम जो सो गया है उसे जगायेगा कौन 
परछाई भी अपनी खौफ में रहती थी 
उसकाले दिन को यादों में जगायेगा कौन 
तुम मौन हो हम भी मौन है
फिर इस चुप्पी को तोड़ेगा कौन 
छोटी सी बात को दिल से लगा लोगे 
तो फिर रिस्ता निभाएगा कौन 
हमने तो मान - सम्मान की खातिर 
मौन में ही वर्षो निकाल दिए 
अब एक दिन का बड़प्पन दिखायेगा कौन 
एक अहम् तुम्हारे भीतर है 
और एक मेरे अंदर भी है 
तो इस अहम् को आखिर हरयेगा कौन 
न मैं राजी न तुम राजी 
फिर माफ़ करने का बड़प्पन दिखायेगा कौन 
गम जो सो गया है उसे जगायेगा कौन।  

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

पर्यावरण

पेड़ जब लगाओगे  पर्यावरण तभी तो बचाओगे 
प्रकृति की सोभा तुम्ही फिर बढ़ाओगे 
हर मौसम का आनंद तुम्ही फिर उठाओगे 
फूलों की महक से प्रकृति को सजाओगे 
जब खेतों में फसल लगाओगे 
जिंदगी में तभी तो खुशियां लौटाओगे 
न फिर कभी बेगानो सा ब्यवहार पाओगे 
न कंही से कोई अपमानित करके भगाएगा 
अपने घर में ही हर साल दिवाली मनाओगे 
जब तुम पर्यावरण को बचाओगे 
अपने जीवन में शांति और खुशियां फैलाओगे 
दूसरो के लिए तुम नजीर बन जाओगे 
जब धरती को माँ की तरह पूजोगे 
तब वह संतान से भी ज्यादा तुम पर प्यार बरसाएगी 
पर्यावरण बचाओगे तभी तो सुकून और चैन पाओ गे। 

शनिवार, 4 जुलाई 2020

प्रेम की मूरत

आपको देखकर देखता रह गया 
क्या कहूं  देखकर सोंचता रह गया 
तुम हो कोई मूरत या कोई सपना हो 
कह लूँ तुमको अपना या या तुम मेरा  सपना हो 
हो भोली -भाली  कितनी 
पूरी सच्चाई की मूरत हो 
हर वक़्त तुम्हे देखा करता हूँ 
कुछ शब्द नए रोज गढ़ता हूँ 
मन में यह प्रण तुमसे करके मिलता हूँ 
पूछूंगा तुम क्या सोंचती हो मेरी खातिर 
पर सामने तुमको जब पाता हूँ 
मैं मौन सदा रह जाता हूँ 
अपने मन मंदिर में तुमको 
बिठाकर स्वयं ही देखता रहता हूँ 
तुम हो मेरे  ह्रदय की मलिका 
सपना हो या संच हो 
तुम प्रेम हमारा हो 
तुम मिलो या न मिलो 
प्रेम सदा ही रहेगा 
तुम्हे देखता हूँ हरछण 
सदा देखता रहूँगा 


शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

बचपन के दिन

था रिक्त ह्रदय 
मन तृप्त मगन 
जीवन आनंद से था भरा 
कोई गम नहीं 
कुछ कम् नहीं 
सारा जहाँ अपना सा था 
मन में न कोई भेद था 
हर कोई अपना सा लगे 
सुबह हो या शाम 
सब कुछ सपना सा लगे 
मन फूलों सा कोमल था 
मुस्कान सुबह सी ठंढी 
हर वक़्त मगन रहते हम सब 
न पढ़ने की चिंता 
न किसी से आगे जाने की कोई होड़ थी 
कितने सुनहरे थे वो दिन 
वो दोस्त वो  बचपन के दिन।  

बुधवार, 1 जुलाई 2020

एक सवाल

कोरोना पर एक सवाल है 
दिल में एक ख्याल है 
क्या अब हमें ऐसे ही 
अपनी जिंदगी काटनी होगी 
मुँह पर बंधी इन पट्टियों से 
सांस घुटती हुई सी प्रतीत होती है 
जब सब कुछ अच्छा था 
लोग मिलने से डरते थे 
आज तो वक़्त ने ही 
पिंजरे में कैद कर दिया है 
दो गज की दुरी 
न बन जाए मजबूरी 
अपने ही अपनों को देखते है 
शक की निगाहों से 
पता नहीं कहाँ से कोरना लेकर आएगा 
खुद फंसेगा और मुझे भी मरवाएगा 
ऐसी रिश्तेदारी  किस काम की
जिसमे हम एक दूसरे के काम न आ सके।