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प्रियतम

हे प्रियतम तुम रूठी क्यों  है कठिन बहुत पीड़ा सहना  इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा  निःशब्द अश्रु धारा बनकर  मन की पीड़ा बह निकली तब  है शब्द कहाँ कु...

गुरुवार, 16 जुलाई 2020

शब्द

शब्द हूँ शब्द से शब्द तक मैं चलु 
शब्द को जोड़कर शब्द का कुछ करूँ 
शब्द से मैं डरु  शब्द को मैं गढ़ु 
शब्द ही शब्द में मैं उलझी रहूँ 
शब्द के जाल मैं खुद से बुनती रहूं 
शब्द को जोड़कर मैं खुद से चलूं 
शब्द तपते हुए सूर्य की है किरण 
शब्द में है चाँद सी सीतलता 
शब्द वो बाण है शब्द वो मान है 
शब्द के जाल में पूरा संसार है 
शब्द में प्रेम है शब्द में है दुआ 
सब है उलझे हुए शब्द के खेल में।  

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