चाँद अरमानों को लेकर
सपना घर बसाने का
आँचल में संजोकर
बचपन की यादों को
आँखों में प्रेम की छवि
दिल में ढेरो अरमान लेकर
हाथो में मेहंदी थी
पैरो में पाजेब था
नए जीवन की कल्पना से
मन में खुशियां अपार थी
रंग बिरंगे ख्वाबों के संग
जीवन की सुरुआत हुई
इस शफर में पता नहीं
अपना वो मायका
पता नहीं कब खो गया
पता ही नहीं चला
मैं कब मायके से
ससुराल की हो गई।
Nice poem
जवाब देंहटाएंthanks mam
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