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शनिवार, 4 जुलाई 2020

प्रेम की मूरत

आपको देखकर देखता रह गया 
क्या कहूं  देखकर सोंचता रह गया 
तुम हो कोई मूरत या कोई सपना हो 
कह लूँ तुमको अपना या या तुम मेरा  सपना हो 
हो भोली -भाली  कितनी 
पूरी सच्चाई की मूरत हो 
हर वक़्त तुम्हे देखा करता हूँ 
कुछ शब्द नए रोज गढ़ता हूँ 
मन में यह प्रण तुमसे करके मिलता हूँ 
पूछूंगा तुम क्या सोंचती हो मेरी खातिर 
पर सामने तुमको जब पाता हूँ 
मैं मौन सदा रह जाता हूँ 
अपने मन मंदिर में तुमको 
बिठाकर स्वयं ही देखता रहता हूँ 
तुम हो मेरे  ह्रदय की मलिका 
सपना हो या संच हो 
तुम प्रेम हमारा हो 
तुम मिलो या न मिलो 
प्रेम सदा ही रहेगा 
तुम्हे देखता हूँ हरछण 
सदा देखता रहूँगा 


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