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अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

चालाक चूहिया

चूहिया एक झांकती हरदम
आंखें  उसकी गोल- मटोल
मटक - मटक कर हरदम चलती 
कभी रसोई तो कभी शयन कक्ष 
करती रहती भागम - भाग 

कुट- कुट कर वह चीजें काटे 
कभी मजे से सब्जी खाती 
तो कभी पूरा पेपर पढ़ जाती 
दादा जी का चश्मा लेकर 
यहाँ - वहाँ वह करती रहती 

चूहिया प्यारी - प्यारी है वह 
बच्चों के मन को वह भाती 
सब्जी सारी वह चख जाती 
बच्चों को वह खूब हंसाती।   

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

इंसान

मैंने हरदम फल की तरह ही चख - चख कर
इंसान को पहचाना है
जो ऊपर से मीठे रहते हैं 
अंदर से वे हरदम ही सड़े रहते हैं 

जिनमे है नमक जैसा खारापन 
उनका अन्तर्मन बर्फ सा साफ़ होता है 
जो देखकर हमें रोज मुस्कुराते हैं 
मेरे आगे बढ़ते ही मुझसे चिढ जाते हैं 

क्या कहूं इन्सानों का ये तो 
गिरगिटों से भी ज्यादा रंग बदलते हैं 
आपको जब दुखी देखेंगे 
मन ही मन खुश हो जाते हैं 

पर जब देखते हैं पड़ोसी खुश है 
इनके आँखों से आंसू निकल आता है।  



 


गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

गिलहरी

सूट पहनकर चली गिलहरी
रिक्शा लेकर घूमने
तभी सामने हाथी दादा 
सूंड झूलाते आ गए 
बोले मुझको लेकर  चलो 
अगले चौराहे तक 

अपना रिक्शा करूँ कबाड़ा 
अगर तुम्हे बैठाऊँ तो 
जान बूझकर क्यों करते हो 
मेरे साथ ठिठोली 

माफ़ करो गुस्ताखी भईया  
कोई और बुलाओ 
जो तुमको बैठा कर भईया 
अपने संग लेकर जाये 


मैं तो बड़ी पतली - दुबली हूँ 
तेरा भार न ढो पाऊँगी 
मैं और मेरा रिक्शा दोनों 
यहीं बिखर के रह जाएंगे 

हाथी दादा चुप चल दिए 
अपना गुस्सा पीकर। 
 

 

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

नया सवेरा

नया सवेरा आएगा
खुशियों से घर भर जायेगा
गीत नए फिर हम गाएंगे 
जीवन के इस कठिन घड़ी से 
पार उतर हम जाएंगे

नया सवेरा आएगा 
खुशियों से घर भर जायेगा
मायूसी  को दूर भगाकर
नए जोश और नए उमंग के 
साथ सभी मिल
 नए लक्ष्य को पाएंगे 

नया सवेरा आएगा 
खुशियों से घर भर जायेगा
लेकरके हम वेद पुराण 
स्वर्ण गति हम पाएंगे 

नया सवेरा आएगा 
खुशियों से घर भर जायेगा
हर बाधा  को पार करेंगे 
नए - नए हम लक्ष्य गढ़ेंगे.
 
  


 


मंगलवार, 1 दिसंबर 2020

गरीबी

गरीबी एक ऐसी बिडंबना है
जो इंसान को न जीने देती है 
और न मरने देती है 
गरीबी की अंधकार में बचपन को खो दिया 
जवानी में भी जंग लगने लगी 
बुढ़ापा भी कोई का कम कस्टदायी न होगी

गरीबी एक ऐसी बिडंबना है 
जो इंसान को न जीने देती है 
गरीबी की बोझ को हमें उतार फेंकना है 
एक नया मुकाम गढ़ना है 
अपने सुने जीवन में 
नए - नए रंग भरने हैं 

गरीबी एक ऐसी बिडंबना है 
जो इंसान को न जीने देती है 
हरसुबह नए अरमानों के संग 
शाम जब ढले तो 
खुशियां हो अपने संग 
हर सपने को हकीकत में बदलेंगे हम 

गरीबी एक ऐसी बिडंबना है 
जो इंसान को न जीने देती है 
गरीबी पन्नों में ही रह जाए 
तभी रुकेंगे हम 
हौसला पाया है बुलंदियां छूने की 
अँधेरी रात को भी रौशनी से भर देंगे हम।