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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

चालाक चूहिया

चूहिया एक झांकती हरदम
आंखें  उसकी गोल- मटोल
मटक - मटक कर हरदम चलती 
कभी रसोई तो कभी शयन कक्ष 
करती रहती भागम - भाग 

कुट- कुट कर वह चीजें काटे 
कभी मजे से सब्जी खाती 
तो कभी पूरा पेपर पढ़ जाती 
दादा जी का चश्मा लेकर 
यहाँ - वहाँ वह करती रहती 

चूहिया प्यारी - प्यारी है वह 
बच्चों के मन को वह भाती 
सब्जी सारी वह चख जाती 
बच्चों को वह खूब हंसाती।   

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