आंखें उसकी गोल- मटोल
मटक - मटक कर हरदम चलती
कभी रसोई तो कभी शयन कक्ष
करती रहती भागम - भाग
कुट- कुट कर वह चीजें काटे
कभी मजे से सब्जी खाती
तो कभी पूरा पेपर पढ़ जाती
दादा जी का चश्मा लेकर
यहाँ - वहाँ वह करती रहती
चूहिया प्यारी - प्यारी है वह
बच्चों के मन को वह भाती
सब्जी सारी वह चख जाती
बच्चों को वह खूब हंसाती।
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