जो इंसान को न जीने देती है
और न मरने देती है
गरीबी की अंधकार में बचपन को खो दिया
जवानी में भी जंग लगने लगी
बुढ़ापा भी कोई का कम कस्टदायी न होगी
जो इंसान को न जीने देती है
गरीबी की बोझ को हमें उतार फेंकना है
एक नया मुकाम गढ़ना है
अपने सुने जीवन में
नए - नए रंग भरने हैं
जो इंसान को न जीने देती है
हरसुबह नए अरमानों के संग
शाम जब ढले तो
खुशियां हो अपने संग
हर सपने को हकीकत में बदलेंगे हम
जो इंसान को न जीने देती है
गरीबी पन्नों में ही रह जाए
तभी रुकेंगे हम
हौसला पाया है बुलंदियां छूने की
अँधेरी रात को भी रौशनी से भर देंगे हम।
मर्मस्पर्शी ।
जवाब देंहटाएंइसी तरह हमारा हौसला बढाते रहिये
जवाब देंहटाएंआपका बहुत - बहुत आभार