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पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली  ए पहाड़ के आँचल  हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल  कभी दूर तो कभी पास ए  करते रहे ठिठोली  भोर - सांझ ये आते जाते  होठों...

मंगलवार, 1 दिसंबर 2020

गरीबी

गरीबी एक ऐसी बिडंबना है
जो इंसान को न जीने देती है 
और न मरने देती है 
गरीबी की अंधकार में बचपन को खो दिया 
जवानी में भी जंग लगने लगी 
बुढ़ापा भी कोई का कम कस्टदायी न होगी

गरीबी एक ऐसी बिडंबना है 
जो इंसान को न जीने देती है 
गरीबी की बोझ को हमें उतार फेंकना है 
एक नया मुकाम गढ़ना है 
अपने सुने जीवन में 
नए - नए रंग भरने हैं 

गरीबी एक ऐसी बिडंबना है 
जो इंसान को न जीने देती है 
हरसुबह नए अरमानों के संग 
शाम जब ढले तो 
खुशियां हो अपने संग 
हर सपने को हकीकत में बदलेंगे हम 

गरीबी एक ऐसी बिडंबना है 
जो इंसान को न जीने देती है 
गरीबी पन्नों में ही रह जाए 
तभी रुकेंगे हम 
हौसला पाया है बुलंदियां छूने की 
अँधेरी रात को भी रौशनी से भर देंगे हम।  



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