हमें अंदर तक हिला दिया
चिंतन जो अभी शुरू हुई थी
ब्रेक उसपर लग गया
तुम्हारी यादों से कबतक
मन को बहलाऊंगी
रेत के शहर में
प[पानी कहाँ से ढूंढ पाऊँगी
प्यास आँखों की तो बुझ पाती नहीं
अपने गले को कहाँ से तर कर पाऊँगी
यह जिंदगी तो बस अकेलेपन से
एकांत की ओर चलने वाली एक यात्रा है
यह यात्रा तो निरंतर चलती रहती है
पथ और पथिक का रिस्ता भी
अनबरत चलता रहता है
कभी मौन तुमसे बातें करता है
तो कभी मौन मुझसे भी कुछ कहता है
वाह।
जवाब देंहटाएंthanks sir
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंthanks mam
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