हमसब किरायेदार है उस मालिक के
जिसने हमें बनाया
इस धरा पर ला के बसाया
मौसम , पानी , अग्नि और वायु दी
जीने का हर मर्म हमें समझाया
जीवन की हर खुशियां हम पैर बरसाई
पर हम मानव कितने स्वार्थी है
कि हर बात को भूलकर
हमने खुद को ही सर्वश्रेठ बतलाया
हर अच्छाई को छोड़कर , बुड़ाई को ही अपनाया
जीवन के हर मर्म को समझने के बजाए
विलासिता की होड़ में ही हरदम भागे
दुनिया बनाने वाले ने हमें सर्वश्रेष्ठ
इसलिए नहीं बनाया कि हम
उसी की सत्ता को चुनौती देने लगे
जो घर हमें सिर्फ रहने के लिए मिला था
उसे हम हमेशा के लिए अपना कहने लगे
ये धरती तो एक रंगमंच है
और हम सब इसके कलाकार
घर अपना हो या किराये का
हम सब है तो एक किरायेदार ही
मालिक को जब तक हम मंच पर अच्छे लगेंगे तबतक ठीक है
वरना पर्दा गिर जाएगा और हम नए रोल के लिए निकल जाएंगे।
वाह बिल्कुल सही कहा आपने। बाकी रंगमंच का जब पर्दा गिरे तो तलियो की गूंज या गड़गड़ाहट से पूरे हॉल में शोर मच जाए ...! इसके सिवा और क्या चाहिए...
जवाब देंहटाएंthanks sir
हटाएंसत्य कहा है । अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंThank you very much
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