यह ब्लॉग खोजें

Translate

विशिष्ट पोस्ट

अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

चालाक चूहिया

चूहिया एक झांकती हरदम
आंखें  उसकी गोल- मटोल
मटक - मटक कर हरदम चलती 
कभी रसोई तो कभी शयन कक्ष 
करती रहती भागम - भाग 

कुट- कुट कर वह चीजें काटे 
कभी मजे से सब्जी खाती 
तो कभी पूरा पेपर पढ़ जाती 
दादा जी का चश्मा लेकर 
यहाँ - वहाँ वह करती रहती 

चूहिया प्यारी - प्यारी है वह 
बच्चों के मन को वह भाती 
सब्जी सारी वह चख जाती 
बच्चों को वह खूब हंसाती।   

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

इंसान

मैंने हरदम फल की तरह ही चख - चख कर
इंसान को पहचाना है
जो ऊपर से मीठे रहते हैं 
अंदर से वे हरदम ही सड़े रहते हैं 

जिनमे है नमक जैसा खारापन 
उनका अन्तर्मन बर्फ सा साफ़ होता है 
जो देखकर हमें रोज मुस्कुराते हैं 
मेरे आगे बढ़ते ही मुझसे चिढ जाते हैं 

क्या कहूं इन्सानों का ये तो 
गिरगिटों से भी ज्यादा रंग बदलते हैं 
आपको जब दुखी देखेंगे 
मन ही मन खुश हो जाते हैं 

पर जब देखते हैं पड़ोसी खुश है 
इनके आँखों से आंसू निकल आता है।  



 


गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

गिलहरी

सूट पहनकर चली गिलहरी
रिक्शा लेकर घूमने
तभी सामने हाथी दादा 
सूंड झूलाते आ गए 
बोले मुझको लेकर  चलो 
अगले चौराहे तक 

अपना रिक्शा करूँ कबाड़ा 
अगर तुम्हे बैठाऊँ तो 
जान बूझकर क्यों करते हो 
मेरे साथ ठिठोली 

माफ़ करो गुस्ताखी भईया  
कोई और बुलाओ 
जो तुमको बैठा कर भईया 
अपने संग लेकर जाये 


मैं तो बड़ी पतली - दुबली हूँ 
तेरा भार न ढो पाऊँगी 
मैं और मेरा रिक्शा दोनों 
यहीं बिखर के रह जाएंगे 

हाथी दादा चुप चल दिए 
अपना गुस्सा पीकर। 
 

 

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

नया सवेरा

नया सवेरा आएगा
खुशियों से घर भर जायेगा
गीत नए फिर हम गाएंगे 
जीवन के इस कठिन घड़ी से 
पार उतर हम जाएंगे

नया सवेरा आएगा 
खुशियों से घर भर जायेगा
मायूसी  को दूर भगाकर
नए जोश और नए उमंग के 
साथ सभी मिल
 नए लक्ष्य को पाएंगे 

नया सवेरा आएगा 
खुशियों से घर भर जायेगा
लेकरके हम वेद पुराण 
स्वर्ण गति हम पाएंगे 

नया सवेरा आएगा 
खुशियों से घर भर जायेगा
हर बाधा  को पार करेंगे 
नए - नए हम लक्ष्य गढ़ेंगे.
 
  


 


मंगलवार, 1 दिसंबर 2020

गरीबी

गरीबी एक ऐसी बिडंबना है
जो इंसान को न जीने देती है 
और न मरने देती है 
गरीबी की अंधकार में बचपन को खो दिया 
जवानी में भी जंग लगने लगी 
बुढ़ापा भी कोई का कम कस्टदायी न होगी

गरीबी एक ऐसी बिडंबना है 
जो इंसान को न जीने देती है 
गरीबी की बोझ को हमें उतार फेंकना है 
एक नया मुकाम गढ़ना है 
अपने सुने जीवन में 
नए - नए रंग भरने हैं 

गरीबी एक ऐसी बिडंबना है 
जो इंसान को न जीने देती है 
हरसुबह नए अरमानों के संग 
शाम जब ढले तो 
खुशियां हो अपने संग 
हर सपने को हकीकत में बदलेंगे हम 

गरीबी एक ऐसी बिडंबना है 
जो इंसान को न जीने देती है 
गरीबी पन्नों में ही रह जाए 
तभी रुकेंगे हम 
हौसला पाया है बुलंदियां छूने की 
अँधेरी रात को भी रौशनी से भर देंगे हम।  



शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

अकेलापन

अकेलेपन के एहसास ने
हमें अंदर तक हिला दिया
चिंतन जो अभी शुरू हुई थी 
ब्रेक उसपर लग गया 


तुम्हारी यादों से कबतक 
मन को बहलाऊंगी
रेत  के शहर में 
प[पानी कहाँ से ढूंढ पाऊँगी 

प्यास आँखों की तो बुझ पाती नहीं 
अपने गले को कहाँ से तर कर पाऊँगी 
यह जिंदगी तो बस अकेलेपन से 
एकांत की ओर चलने वाली एक यात्रा है 

यह यात्रा तो निरंतर चलती रहती है 
पथ और पथिक का रिस्ता भी 
अनबरत चलता रहता है 
कभी मौन तुमसे बातें करता है 
तो कभी मौन मुझसे भी कुछ कहता है    

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

किरायेदार

हमसब किरायेदार है उस मालिक के 
जिसने हमें बनाया 
इस धरा पर ला के बसाया
मौसम , पानी , अग्नि और वायु दी 
जीने का हर मर्म हमें समझाया 
जीवन की हर खुशियां हम पैर बरसाई 

पर  हम मानव कितने स्वार्थी है 
कि हर बात को भूलकर 
हमने खुद को ही सर्वश्रेठ बतलाया 
हर अच्छाई को छोड़कर , बुड़ाई को ही अपनाया
जीवन के हर मर्म को समझने के बजाए 
विलासिता की होड़ में ही हरदम भागे 

दुनिया बनाने वाले ने हमें सर्वश्रेष्ठ 
इसलिए नहीं बनाया कि हम 
उसी की सत्ता को चुनौती देने लगे 
जो घर हमें सिर्फ रहने के लिए मिला था 
उसे हम हमेशा के लिए अपना कहने लगे 

ये धरती तो एक रंगमंच  है 
और हम सब इसके कलाकार 
घर अपना हो या किराये का 
हम सब है तो एक किरायेदार ही 
मालिक को जब तक हम मंच पर अच्छे लगेंगे तबतक ठीक है 
वरना पर्दा गिर जाएगा और हम नए रोल के लिए निकल जाएंगे।    

शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

तारे

छोटे - छोटे नन्हे - नन्हे
झिलमिल - झिलमिल करते तारे
आसमान में चमक रहे हैं 
जैसे चंदा के हो प्यारे 

छोटे - छोटे नन्हे - नन्हे 
झिलमिल - झिलमिल करते तारे
रात अँधेरी जब होती है 
राह दिखाते हैं  ये तारे 

छोटे - छोटे नन्हे - नन्हे 
झिलमिल - झिलमिल करते तारे
सूरज दादा जब आते हैं  
ये छूमंतर हो जाते हैं 

छोटे - छोटे नन्हे - नन्हे 
झिलमिल - झिलमिल करते तारे
कभी बादल में छुप जाते हैं तो कभी 
टीम - टीम कर गाते हैं।  

 

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

तन्हाई

हर जगह भीड़ ही भीड़ है
फिर भी लोग तन्हा क्यों है
हर मन में एक डर है 
हर चेहरा सहमा - सहमा सा है 
कल क्या होगा हम लड़कर जीतेंगे या 
कोई हमारी सजी हुई विरासत को 
उजाड़ कर चला जायेगा 
पता नहीं किसकी नजर लग गयी है
 हमारी हंसती खेलती दुनिया को 

पता नहीं हम इतना डरते क्यों है 
हर घडी संभल - संभल कर चलते क्यों है 
तूफान के आने से इतना डरते क्यों है 
सबकुछ उलट - पलट कर जायेगा 
हम ऐसा बहम ही पालते क्यों है 
क्या पता इस तूफान में 
कोई अच्छी बात हो 
जो हमारे सारे गम दूर कर जाए 
और खुशियां अपने दामन में बिखर जाए।  

मंगलवार, 17 नवंबर 2020

वीर जवान

मेरी आन बान शान है तू
मेरे तिरंगे की पहचान है तू
रुके न तू थके न तू 
झुके न तू थमे न तू 
मेरे देश का अरमान है तू 

तेरे क़दमों में निशार सारी दुनिया 
मेरे हर जज्बात की पहचान है तू 
हर घर में जले दिया बनकर तू 
हर दिल में बसे  बनकर शहीद 

मेरी आन बान शान है तू 
मेरे तिरंगे की पहचान है तू
दुनिया सैनिक कहती है तुझे 
पर मेरे दिल में तो तू 
मेरे हर धरकन का एहसास है तू। 

आवश्यक सुचना (UPDATED)

मैं आपको हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि मेरी प्रथम कविता संग्रह "मेरी भावना" के नाम से Google Play Books पर और अन्य दो संग्रह "मेरी अभिव्यक्ति" और "कविता सागर" के नाम से Amazon Kindle पर e-book के रूप में उपलब्ध है। "मेरी भावना" का Paperback संस्करण Flipkart पर भी उपलब्ध है। अतः आपसे अनुरोध है कि आप पढ़े और अपना विचार व्यक्त करे।  















शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

मिट्ठू तोता

दादी माँ ने तोता पाला
करता हरदम गड़बड़ झाला
कभी किसी के नाम बिगाड़े
कभी किसी डांट लगाए
पर हरदम बस एक नाम की
वह माला है जपता 
मिट्ठू राम मिट्ठू राम 

दादी माँ ने तोता पाला 
करता हरदम गड़बड़ झाला 
जो सब बोले वही वो बोले 
करता हरदम राम - राम 
सबके संग मिलकर वह बोले 
आओ बैठो राम - राम जी 

दादी माँ ने तोता पाला 
करता हरदम गड़बड़ झाला 
दादी माँ का है वह प्यारा 
मेरी आँखों का है तारा 
गली मोहल्ले सब को भाए 
कितनी भी वह कमी निकाले।  


सोमवार, 9 नवंबर 2020

कुछ वक़्त देदो

आज मैं थका हूँ, कुछ वक़्त देदो
मैं तुम्हे देखकर रूका हूँ , कुछ वक़्त देदो
जिंदगी आज है उदास 
उसे सँभालने के लिए , कुछ वक़्त देदो 

जब मैं छोटा बच्चा था 
हरदम हँसता रहता था
हरदम अपने धुन में मगन रहता था  
पर आज हंसने के लिए थोड़ा वक़्त देदो 

जब मैं काम की तलाश में 
इधर - उधर भटक रहा था 
कितना सीधा कितना सच्चा था
पर आज सम्भलने के लिए 
कुछ और वक़्त देदो 

सब कुछ है बिखरा - बिखरा 
गम तो हजार है जीवन में
पर उसे गिनने के लिए 
कुछ और वक़्त देदो 

सुबह होने ही वाली है 
पर हमें निखरने के लिए 
कुछ और वक़्त देदो। ..........?

शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

चिड़िया रानी

चिड़िया रानी चिड़िया रानी 
तुम हो सारे जगत की रानी
सुबह सवेरे उठ जाती हो 
ना  जाने क्या - क्या गाती हो 
सबके मन को तुम भाती  हो

चिड़िया रानी चिड़िया रानी 
तुम हो सारे जगत की रानी
हो बच्चा या बूढी अम्मा 
सोंच - सोंच सब चकराते हैं 
क्या तुमको पढ़ना - लिखना है 
या फिर कोई ऑफिस करना है 


चिड़िया रानी चिड़िया रानी 
तुम हो सारे जगत की रानी
क्यों फिर तुम जल्दी उठती हो 
सुबह सवेरे क्या करती हो 
क्या गा कर तुम  नहीं  थकती हो 
जाने क्या - क्या तुम करती हो। 



 

गुरुवार, 5 नवंबर 2020

किसान

किसान बनना आसन नहीं 
पूरे  जगत का पेट भरना
कोई छोटा सा काम नहीं
सबके चेहरे पर हंसी बिखेरना 
सबका हो पेट भरा चिंता न हो कलह की 
ऐसा मुकाम पाना आसन नहीं 

किसान बनना आसन नहीं 
धुप हो या गर्मी हर मौसम में 
घर के बाहर हर मौसम में 
बाहर काम करना 
आसान नहीं है 
मौसम से बार - बार लड़ना 

किसान बनना आसन नहीं 
बाढ़ सुखार हो या ओला वृष्टि 
हर वॉर किसान को है झेलना 
तो कभी टिड्डियों का प्रहार 
धैर्य बनाकर साहस के संग 
हर मौसम को झेलना . .....



बुधवार, 4 नवंबर 2020

कोयल

काली कोयल बोल रही है
मन में मिसरी घोल रही है
उसके सुर में ऐसा जादू 
संग  - संग सब बोल रहे है

काली कोयल बोल रही है 
मन में मिसरी घोल रही है
कोयल ने मौसम को भी 
खुद के पास में बांध लिया है 
कोयल गाये पेड़ झूमते 
सायं - सायं कर हवा चली है 

काली कोयल बोल रही है 
मन में मिसरी घोल रही है
आमों के डाली पर मंजर 
फुट - फूटकर निकल रहे है 
कोयल के सुन्दर गायन पे 
अम्बर - धरती झूम रही है 

काली कोयल बोल रही है 
मन में मिसरी घोल रही है
कोयल के गाने के आगे 
मेघदूत भी दोल गए हैं 
रिमझिम - रिमझिम पड़ी फुहारें 
हर मन में खुशियां भर आई। 

सोमवार, 2 नवंबर 2020

मोटू राम

गोल  मटोल मोटू राम
चलते हैं वो पेट निकाल
चलते - चलते थक जाते हैं 
बैठ छांव में ठंढाते हैं  
घड़ी - घड़ी वो शर्माते हैं 

गोल  मटोल मोटू राम 
हाथ में हरदम थाली खाने की 
थाली में हो ढेर मिठाई 
वो है खाने के शौकीन 
तोंद निकल गई मोटू राम की 

गोल  मटोल मोटू राम 
पहन के चश्मा गोल - मटोल 
चल देते हैं मोटू राम 
बांध घड़ी वो ठुमक के चलते 


गोल  मटोल मोटू राम 
मस्त गली में आते - जाते 
हंसी ठिठोली सब दे करते 
हर घर में है आना - जाना 
है कमल के मोटू राम।  


 


शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

मेरा स्कूल

मुझको भाया मेरा स्कूल
कितना सुन्दर कितना प्यारा
प्यारे - प्यारे  फूलों वाला 
फूल सुहाने सबको भाते 
हम बच्चों को ललचाते हैं 
पर माली हमको धमकाता 
दूर रहो इसको मत छूना 
वरना पड़ेगी खूब पिटाई 
पर हम बच्चे है शैतान 
आते सब टोली में मिलकर 
इधर - उधर की बातों में 
माली काका को बहकाते 
चुपके से कुछ फूल चुराते 
माली काका जब हमें भगाते 
जोड़ -जोड़ से हँसते हम सब 
वो थककर बैठ जब जाते 
हम सब मिलकर पानी लाते 
काका को शौरी कहकर 
फिर से उनको बहलाते।  

बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

भोलू भाई

भोलू भाई भोलू भाई
क्यों रूठे हो भोलू भाई
गाल फूला कर आंख सूजाकर 
क्यों बैठे हो नहोलू भाई 

देखो  मैं क्या  लेकर आई 
गुड्डा - गुड़िया और मिठाई 
लेलो चॉकलेट और मिठाई
 छोड़ो जिद्द अब कुश हो जाओ
रोना धोना भूल भी जाओ 

माँ ने क्या दो चपत लगाई 
या हो गई छोटी से लड़ाई 
चलो घूमकर आते है 
नए खिलौने लाते है 

भोलू भाई तुम हो मेरे 
सबसे प्यारे भाई 
जब राखी की थाली लेकर 
मैं आंगन में आती हूँ 
तुम्हे देख हर्षाति  हूँ।   

सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

मैं खुश हूँ

जिंदगी बड़ी छोटी है फिर भी मैं खुश हूँ
काम में भी खुश हूँ आराम में भी खुश हूँ
मैं दाल-रोटी में भी खुश हूँ 
पुआ-पकवान  में भी खुश हूँ 
जितना मिल जाए मैं उतने में ही खुश हूँ

जिंदगी बड़ी छोटी है फिर भी मैं खुश हूँ 
जो मुझसे खुश है मैं उसी की ख़ुशी में ही खुश हूँ 
पर जो नाराज है उसके अंदाज में ही खुश हूँ 
किसी को पाकर मैं खुश हूँ 
किसी ने मुझे खो दिया 
उसकी सोंचकर मैं खुश हूँ 

जिंदगी बड़ी छोटी है फिर भी मैं खुश हूँ 
जो पल बित  गया 
उसकी यादों में खुश हूँ 
जो आनेवाला  है 
उसके इंतजार में खुश हूँ

जिंदगी बड़ी छोटी है फिर भी मैं खुश हूँ 
हँसता हुआ बिट रहा है अपना हर पल 
मैं  जिंदगी के हर एक पल में खुश हूँ
मैं भीड़ में भी कुश हूँ 
अकेले में भी खुश हूँ 


मैं सुख में भी खुश हूँ 
मैं दुःख में भी खुश हूँ 
जिंदगी बड़ी छोटी है
मैं फिर भी मैं खुश हूँ 


  

 
 


गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

पेड़ लगाओ

पेड़ लगाओ जान बचाओ
प्रकृति का श्रृंगार कराओ
हरियाली को ओढ़ माँ धरती 
ख़ुशी से झूमा करती है

पेड़ लगाओ जान बचाओ
जन - जन  तक संदेश पहुंचाओ 
पर्यावरण बचाना है तो 
पेड़ लगाना होगा हमको 
उनको रोज सींचना भी 
हम सब का है काम

पेड़ लगाओ जान बचाओ
मिट्टी को काटने से बचाओ 
बाढ़ के दर से हमें बचाओ 
हर घर में खुशियां ले आओ 

पेड़ लगाओ जान बचाओ
जीवन कुछ मासूम बचाओ 
खुशियाँ हर चेहरे पर लाओ 
वर्तमान के संग - संग  
भविष्य को भी उज्वल बनाओ।  

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

छोटा बच्चा

जब मैं छोटा बच्चा था
मन से पूरा  सच्चा था
सबके लिए मैं अच्छा था
भोला - भाला  गोल - मटोल 
हँसता मैं हरदम मुँह खोल

जब मैं छोटा बच्चा था 
मन से पूरा  सच्चा था
घड़ी- घड़ी पानी मैं  डालूं 
सर पर मिट्टी डालकर आऊं
लोटपोट होकर सब हँसते

जब मैं छोटा बच्चा था 
मन से पूरा  सच्चा था 
जब कोई स्कूल की कहता 
रो - रोकर मैं गिरता -पड़ता 

जब मैं छोटा बच्चा था 
बड़ा कान का कच्चा था 
मन से पूरा सच्चा था 
कुछ भी था पर अच्छा था। 

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

तितली रानी

तितली रानी बड़ी सयानी 
रंग- बिरंगी पँखों  वाली
फुदक -फुदक कर गाना गाती
रूप मनोहर सबको भाता 
फूलों से खुशबू ले जाती
 बच्चो के मन को है भाती 

कितनी प्यारी तितली रानी 
घूम - घूम फूलों पर आये 
बच्चों के मन वो ललचाये 
रंग- बिरंगे पँख दिखाए 
रहे झुंड में मिलकर गाये 

तितली रानी इतने सुन्दर 
पँख कहाँ से लाती हो 
हमको भी वो जगह बता दो 
रंग- बिरंगे पँख दिला दो
मैं भी उड़कर आउंगी 
दूर -दूर तक संग तेरे 
घूम-घूम कर गाऊँगी।   

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

गीली मिट्टी

तुम कितनी नादान थी
तुम्हारा कोई आकार न था
तुम्हारा कोई रूप न था 
तुम्हारा अपना क्या था 

हमने तो तुम्हे नाम दिया 
एक अच्छा सा तुम्हे आकार दिया 
लोगो के घर तुम चलकर आओ 
ऐसा एक मुकाम दिया 

गीली मिट्टी  बनकर तुम 
बोलो क्या कोई काम किया 
पैरों को गंदा करने से 
बस तुमको उपहास मिला 
 
पर जब मैंने गढ़ा तुम्हे तब 
मटका का तुम्हे नाम मिला 
पानी पीकर तृप्त हो गए 
चलते प्यासे राही 
घर - घर ने अपनाया तुमको 
प्रेम प्यार से लाया तुमको 

पर जब मैंने तुम्हे दीप बनाया 
पूजा की थाली में सजाया 
दीपोत्सव का  हिस्सा बनकर
 तेरा मन कितना मुस्काया  

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

दीपक

मैं दीपक हूँ दीपक बनकर
जगमग जग कर जाऊँ
राह सभी को दिखलाऊँ
सबको मंजिल पर पहुँचाऊँ

मैं दीपक हूँ दीपक बनकर
जगमग जग कर जाऊँ
जुगनू से है प्रेम हमारा 
अन्धकार से बैर हमारा 

मैं दीपक हूँ दीपक बनकर 
जगमग जग कर जाऊँ
पूजा की थाली में सजकर 
दिव्या प्रेम वरषाऊँ

मैं दीपक हूँ दीपक बनकर 
जगमग जग कर जाऊँ
अंधकार की तिमिर घटा में 
भी जग को हरसाउ 

मैं दीप हूँ दीकपक बनकर 
जगमग जग कर जाऊँ
दीपोत्सव से दूर सभी 
अंधीयारा कर जाऊं 

मैं दीप हूँ दीकपक बनकर 
जगमग जग कर जाऊँ 

 


सोमवार, 12 अक्तूबर 2020

बादल

कितना अच्छा होता
मैं बादल बन जाती 
उम्र - घुमर धरती पर आकर 
मैं फिर से प्रलय मचाती 
कहीं पे बाढ़ तो कहीं पे सुखा 
जल -थल -नभ पर छाति 

कितना अच्छा होता 
मैं बादल बन जाती 
धरती माँ कि प्यास बुझाती 
हरियाली फैलाती  
फूल - पत्तियों पर रुक कर मैं 
फिर मोती बन जाती

कितना अच्छा होता 
मैं बादल बन जाती 
गरज - गरज कर सबको डराती 
झम - झम  कर फिर बरस भी  जाती
गर्मी से तपते मौसम में 
मैं फुहार बनकर आती 

कितना अच्छा होता 
मैं बादल बन जाती उमर - घुमर कर 
रोज सवेरे मैं फुहार बरसाती 
हरियाली कि खातिर हरदम 
मैं अमृत बन जाती   

 




शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

जंग

जंग करने मैं चला
जंगी जहाजों में बैठकर 
छोड़कर अपनों का साथ 
धुल में सब मिल गए 
गए वो सब छोड़कर 
रोते -बिलखते अपना आशियाँ 

जंग से हांसिल नहीं 
होती कभी भी शांति 
छोड़ दो हथियार तुम 
मिलकर बैठते है 
कुछ कहो तुम 
कुछ मेरी भी सुन लो 


कोई भी मतभेद ऐसा नहीं 
जिसे हम सुलझा न सके 
क्यों विनाश को निमंत्रण देते हो 
हम साथ है तुम्हारे 
हर दुःख सुख में 

माना  कि तुमने हमें
 हरदम छला ही है 
पर हम परोसी के 
कर्तब्य से चुकूँगा नहीं 
ये वादा है हमारा 

कोई लौटकर आता नहीं 
जो युद्ध में हमसे बिछड़ गए 
जंग कोई साधन नहीं 
जो प्यार हममे घोल दे 
वो तो ऐसा जहर है
 जो दूर सबको कर दे 


बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

आज का दिन

मारो न उन एहसासों को
खुलकर जी लेने दो सबको 
सपने सिर्फ देखना ही नहीं 
जीना भी सीख लो उसको 
सिर्फ सपना देखना ही 
अपना उद्देश्य नहीं 
जब सुख को हमने जिया 
तो दुःख को भी झेलना सीखेंगे 

गम के बादल छंट जाने दो
खुशियाँ खुलकर आएँगी 
हम गीत ख़ुशी के गायेंगे 
आँखों से बहते नीरों को 
मोती में ढलते पाएंगे 

गम काट लिए जिन वीरों ने 
खुशियाँ उनकी अनमोल हुई
उन कर्मविरों  कि भूमि से है 
है भरा परा यह देश हमारा 

फिर क्यों भटके 
तुम युवा आज के 
देखो अपने पुरखो को 
हिम्मत खुद ही बांध जाएगी 

है बलिदानी कथा हमारी 
है पुण्य भूमि यह देश मेरा 
जीवन कठिनाई में जीकर 
निखरी है अच्छाई मेरी 

एहसास सभी अपने है 
वो खास सभी सपने है  
जिन पर गौरव यह देश करे
जिनपर अभिमान मैं स्वयं करूँ . .... 

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

सफर

हो के मायूस ना यूँ शाम ढलते रहिये
ज़िन्दगी एक भोर है 
सूरज की तरह निकलते रहिये 
ठहरेंगे एक पाँव पर तो थक जाओगे 
धीरे-धीरे ही सही 
मगर राह पर चलते रहिये 
ये सफर खट्टे-मीठे अनुभवों का सफर है 
बस इस राह पर 
मुस्कुरा कर आगे बढ़ते रहिये 
ज़िन्दगी भोर का उगता हुआ सूरज है 
बचपन सुखद आश्चर्य का संगम है 
जवानी दोपहरी की तपती हुई रेत तो 
बुढ़ापा शाम की वो छॉव है 
जो दुखता भी है और 
ज़िन्दगी की खट्टी-मीठी यादो में 
रमता भी है। 

सोमवार, 28 सितंबर 2020

मेरी सपनो की मूरत

बड़ी बाबली है , बड़ी खूबसूरत
कैसी सजी है मरे , सपनो की मूरत
कभी झांकती , तो कभी होती ओझल

बड़ी बाबली है , बड़ी खूबसूरत
बिरह में सताती, मिलान में सताती
बचूं कैसे उसकी शैतानियों से

बड़ी बाबली है , बड़ी खूबसूरत
फूलों की पंखुडिओं से भी है कोमल 
कैसे छुऊँ टूट के न बिखड़ जाये 

बड़ी बाबली है , बड़ी खूबसूरत 
डरता हूँ उसको नजर लग न जाए 
मेरे कैदखाने  से वो दर न जाए 

बड़ी बाबली है , बड़ी खूबसूरत 
पलक  जो झपक दे , तो अँधेरी  राते 
नयन खोल दे चाँदनी फिर न जाये 

बड़ी बाबली है , बड़ी खूबसूरत
कैसी सजी है मरे , सपनो की मूरत।  


 


 

शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

शाम ढलने लगी

शाम ढलने लगी , जाम चलने लगी
मन मचलने लगा
 ख्वाब के आसमा में , मन विचरने लगा 
गम तो कोई न था , फिर भुला क्या रहे 
राह छूटी  अगर, तो मिटा क्या रहे 
जाम के ही सहारे, हम भुला क्या रहे
जो पिटे गए, नजरे बोझिल हुई 
याद कुछ न रहा , हम बेफिक्र हो गए 

शाम ढलने लगी , जाम चलने लगी
छटा मनोहर आसमान की 
विचरण मन करने लगा 
ख्वाब हवा में उरने लगा 
बैठे - बैठे पंख लग गए 
हम मस्ती में उरने लग गए
 शाम ढलने लगी , जाम चलने लगी
हम  मचलने लगे।  


 
 


 


बुधवार, 23 सितंबर 2020

राही

है रुकना अपना काम नहीं
तुम चलो अभी विश्राम नही
मंजिल अपनी है दूर सहि 
जीवन अपना पैगाम बना 
चलो हमें चलते रहना है 
थकने का कोई काम नहीं 
जीवन है पग- पग चलने में 
गिरने और सँभलने में 
राहों के कंकर चुनने में 
है खुद की राह बनाने में 
जीवन में  कुछ कर जाने में 
या कुछ करके मिट जाने में 
झुकने में अपनी शान नहीं 
रुकने में अपनी आन   नहीं
आये तूफान तो आने दो 
हमको झकझोड़ के जाने दो 
गिरने का अपना काम नहीं 
रुकने का अब कोई प्राये  नहीं  
गर हार मानकर बैठ गए तो
अपनी कोई पहचान नहीं 
तुम चलो अभी  विश्राम नहीं। 

शनिवार, 19 सितंबर 2020

जुगाड़ की जिंदगी

जुगति भइल जुगति फल पइली
कहाँ - कहाँ हम जुगत लगइली
सबके सुनी-सुनी मन में रखली 
मन ही मन आँसू टपकईली

कहाँ - कहाँ हम जुगत लगइली 
कदम -कदम पर पइली परीक्षा 
नाता -रिस्ता सबहुँ गबईलि 
पर मर्यादा सब हम निबहलि

कहाँ - कहाँ हम जुगत लगइली 
बाल -बच्चा के कर्म सिकईली 
कभी थक के मन थोड़ा ठण्ढईली 
फिर उत्साह से कदम बढ़ईली 

कहाँ - कहाँ हम जुगत लगइली 
धीरे -धीरे कदम बढ़ईली 
हर दिक्क्त से पार उपरली 
अपन घर परिवार बचइली 
कहाँ - कहाँ हम जुगत लगइली।

बुधवार, 16 सितंबर 2020

आत्मीय

अपना सब कुछ तो तुम पर वार दिया
ख़ामोशी को भी साँचें में ढाल दिया 
चलते फिरते इंसान को भी साँचें में ढाल दिया 
तेरे मन को चोट न पंहुचे कभी इसलिए 
हर जहर को अपने मन में ही आत्मसात किया 
मैंने अपने हर सपने को आँसू  के सबनम से सींच दिया 

मैं बिखरी - बिखरी कुछ स्मृतियाँ जोड़ रही हूँ 
चांदनी रात को भी अपनी मुठी में भर रही हूं
ख्वाब से मैं ख्वाब को बुन रही हूँ 
हमारी धड़कनों में जोश बांकी रहे
इसीलिए मैं खुद से ही भाग रही हूँ 

अपना सब कुछ तो तुम पर वार दिया 
ख़ामोशी को भी साँचें में ढाल दिया 
देखते है कितनी ठोकरों के बाद 
हमें मंजिल मिलती है 
गम तो हजार मिले 
देखते है खुशियां
कितने लम्हों  के बाद मिलती हैं। 

शनिवार, 12 सितंबर 2020

ऋतुएँ

एक - एक कर ऋतु  आती है
अपनी छँटा धरा पर बिखेर जाती है
वसंत - पतझड़  गर्मी - सर्दी 
हर चीज का  हमें एहसास कराती है 
रंग बिरंगे फूलों से बाग़ खिल उठता  है
खट्टे - मीठे फल खा कर बच्चे खुश हो जाते है 
जीवन के  इस झांकी में 
खट्टा - मीठा सबका एहसास हो जाता है 

आम के महीने में जब कोयल कूकती है 
लोग खुश होकर घरों से निकल आते है 
यह हमारा ही देश है 
जहाँ साड़ी ऋतुएँ आती है 

खुशिओं की बरसात भी होती है 
और गर्मी से हम सब परेशांन भी होते है 
पर जब ठंढ आती है 
हम सब रजाई में दुबक जाते हैं 
घरों में अंगीठी जलाकर  सब 
मिलजुलकर बैठते हैं 

लोहड़ी का त्योहार अपने आप में अनूठा है 
हर ऋतु  अपने साथ कुछ पर्व ले आते है
हमारे ठहरे जीवन को गति दे जाते है। 

शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

गलतफहमी

कुछ गलतफ़हमी सी मुझे होने लगी थी
सब चाहते है मुझे सबको प्रेम है मुझसे
ऐसा मुझे लगने लगा था 
कदम दर कदम मैं जिंदगी से 
दूर होने लगी थी 
कभी खामोश रहकर 
तो कभी आसूओं में ही रोने लगी थी 
गुमसु म - गुमसु म  रहकर भी 
दिल को मन ही मन संजोने लगी थी 
कई जिंदगिओं की आस बंधी थी मुझसे 
पर  ना जाने क्यों मैं 
अपनी साँसों से ही मैं आस खोने लगी थी 
जिंदगी को जीने की चाहत में 
शायद मैं मदहोश होने लगी थी 
अच्छाई भी यहीं है बुराई भी यहीं है 
नफरत से पनपी तन्हाई भी यहीं है 
चाहे गलफहमी हो या सच्चाई 
जिंदगी की  कड़वी सच्चाई भी यही है।  

गुरुवार, 10 सितंबर 2020

विश्वास



सुबह से शाम तक हमारी
परीक्षा क्यों लेते हो भगवान
हमेशा तुम पर विश्वास रखा 
क्या इसकी सजा देते हो भगवान 
हरदम तुम्हे पूजा तुम्हारी अर्चना की 
पर हरबार मेरे हाथ पर 
प्रसाद के रूप में कोड़े  ही बरसाए
तुम्हारे प्रेम की छाया क्या 
नटवरलालों को ही मिलती है 
तुम्हे पूजनेवाला क्या सिसक - सिसक 
कर ही दम तोड़ देता है 
उसके अरमान में सूनापन और 
आँखों में तुम आँसू ही दे पाते हो 
लोग कहते है पत्थर को भी 
पूजो तो भगवान मिल जाते है  
यहाँ तो पूजते- पूजते 
खुद ही पत्थर बन गए है 
अब न शेष कोई अरमान है 
और न ख्वाहिश ही बांकि  है
हाँ आज भी दिल ये चाहता है कि 
एक बार मैं हार जाऊ पर 
मेरा विश्वास नहीं हारना चाहिए 
अपने आप से ज्यादा तुमपर भरोशा रखा है 
बस आखिरी बिनती है तुमसे 
इस नैया को पार लगाना 
चाहे लाख तूफान आये 
इसे मझधार में न डुबाना।   

बुधवार, 9 सितंबर 2020

अनाम रिस्ता

ये कैसे दिन है , जो तेरे बिन है
सांसों में अपने चाहत की धुन है
तन्हाईओं की खामोश रातें
दिन सूना -सूना  चंचल निगाहें
जीवन पर भारी ये गमगीन राहें 
बेमौत मरने की ये क्या दवा है 
मुझे तुझको खोने की ये क्या सज़ा है 
मेरी आँखें नाम है  दिल मेरा गमगीन 
किसे मैं बताऊ कि जाने से तेरे 
हमें गम भी उतना फिकर जितनी तुमको 
फर्क सिर्फ ये है कि वो संग तेरे 
विरह में तो हम है 
है नाम आपके रिश्ते का 
बदनाम हम है 
हमें नाम देकर जो अपना बनाते 
आज पत्थरों से न हम पिटे जाते 
हमें छोड़कर क्यों यैसी सजा दी 
मै अपनी विरह को क्या नाम दूँ 
सजा और दूँ या फिर प्यार दूँ 

सोमवार, 7 सितंबर 2020

ये दिन कैसे

आज देखो किस तरह
है गगन में छा गई
खामोशियों के धुंध ने
आगोश में सबको लिया

सब मौन हैं सब क्षुब्ध हैं 
आ गई कैसी घड़ी
ना  मिल सके ना जुल सके 
अपनों से अपने दूर है 
सब कैद है घर में अभी 

पर उम्मीद  है शेष अभी 
एक दिन नया फिर आएगा 
हर दिशा मुस्कायेगी 
खामोशियों को चीरकर 
हर ओर गुंजन आएगी 

शंख और घंटी के ध्वनि से 
फिर गगन मुस्कायेगी 
हर ख़ुशी पैर फिर से हम सब 
आ गले मिल जाएंगे 

चूमकर हाथो को तेरे 
प्यार फिर जताएंगे 
ढोल के थापों पर फिर से 
थाप हम लगाएंगे 

बाँहों को बाँहों में भरकर 
फिर ख़ुशी से गाएंगे। 

शनिवार, 5 सितंबर 2020

माँ भारती

भारत माँ के लाल तुझे
सत् कोटि नमन करती हूँ
तू जिए हजारो साल 
तुझे सत् कोटि नमन करती हूँ 
अपनी भी धड़कन तुझको 
मैं आज समर्पित करती हूँ 
आ जाऊं माँ के काम 
ये अर्ज सदा करती हूँ 
भारत माँ के लाल तुझे 
सत् कोटि नमन करती हूँ
तुम आये माँ के काम
तुझे सत् कोटि नमन करती हूँ.

गुरुवार, 27 अगस्त 2020

मेरे मामा

चंदा मामा से प्यारा मेरा मामा 
चाँद तारों से प्यारा मेरा मामा
लाये खुशियां बहारों का मामा 
बच्चों के मुस्कान है मामा 
बच्चों के सरदार है मामा 
घर - घर के मेहमान है मामा 

चंदा मामा से प्यारा मेरा मामा 
चाँद तारों से प्यारा मेरा मामा
आज आये है घर मेरे मामा 
लाये ढेरों सौगात मेरे मामा 
पूरे घर के दुलारे मेरे मामा 

चंदा मामा से प्यारा मेरा मामा 
चाँद तारों से प्यारा मेरा मामा
लाये खुशिओं के सौगात मामा 
मम्मी और मुझको 
दोनों को लगते प्यारे मेरे मामा 
दुःख - सुख में साथ निभाते मेरे मामा 
चंदा मामा से प्यारा मेरा मामा 
चाँद तारों से प्यारा मेरा मामा। 

सोमवार, 24 अगस्त 2020

कुछ रिश्ते

कुछ दर्द निभाना बाकी  है 
कुछ दर्द दिखाना बाकी है 
कुछ रिश्ते बनकर टूट गए 
कुछ जुड़ते-जुड़ते छूट गए 
उन टूटे-फूटे रिश्तों के 
जख्मों को मिटाना बाकी है 

कुछ दर्द दिखाना बाकी है 
कुछ दर्द निभाना बाकी है 
कुछ साये में तब्दील हुए 
कुछ दिल ही दिल में डूब गए 
कुछ आये तो ऐसे आये 
जैसे संसार की खुशियों में 
जीवन का रिश्ता लाये हो 

कुछ दर्द निभाना बाकी है 
कुछ दर्द दिखाना बाकी है 
कुछ ने दीपक की लौ की भाँति 
टीम-टीम करते बुझ गए सदा 
पकडू मैं किसको मुट्ठी में 
जकरू मैं किसको मुट्ठी में 

कुछ दर्द निभाना बाकी है 
कुछ दर्द दिखाना बाकी है 
कुछ अपने हो कर टूट गए 
कुछ सपने बनकर रूठ गए 
कुछ रिश्ते बनकर टूट गए 
कुछ जुड़ते-जुड़ते छूट गए 

गुरुवार, 20 अगस्त 2020

ख्वाब

ख्वाब को तोड़कर नींद से
मैं अब जागने लगी हूँ
लफ्जों की मुझे अब जरूरत नहीं
चेहरों को जब से मैं पढ़ने लगी हूँ 
परवाह नहीं किसी की 
अब तो मैं अकेले ही 
आगे बढ़ने लगी हूँ 
मैं हूँ तेरा ही प्रतिबिम्ब 
तुम हो कठोर चट्टान की भांति 
तो कैसे मैं कह दूँ कि 
मैं मोम बनने लगी हूँ 
तुम हो अपने जिद्द में माहिर 
तो मैं भी अब 
नित् नए संकल्प गढ़ने लगी हूँ 
मैं थी नींद में वर्षों से 
अब तो जग के रोज चलने लगी हूँ 
जीत सच्चाई की ही होती  है 
बादलों के भी उस पार 
अब स्पस्ट दिखने लगा है 
चाहे रास्ते में मुश्किलें कितनी आये 
मैं भी अपना इरादा 
मजबूत करने लगी हूँ
 आज की बदलती तस्वीरों को देखकर 
शायद मैं भी कुछ - कुछ बदलने लगी हूँ। 

मंगलवार, 18 अगस्त 2020

मेरे मीत

जानते है तुम्हे मानते है तुम्हे
हर घड़ी श्याम से मांगते है तुम्हे
तुम मेरे प्रीत हो तुम मेरे मीत हो 
दिल में जादू जगाये वो संगीत हो
तुम मेरे गीत हो तुम मेरे  मीत  हो
मेरी मासूमियत मेरी मुस्कान हो
मेरी नयनों में खुशियों के तुम नीर हो
मेरी गायन हो तुम मेरे संगीत हो
मन के बीना के तारों की झंकार हो
मेरा संगीत हो तुम मेरे गीत हो।

सोमवार, 10 अगस्त 2020

मैं और तुम

मैं हूँ झोंका ठंढी पवन का
तुम बरसात की बुँदे
मैं सावन की हरियाली
तुम नन्ही ओस की बुँदे
मैं जीवन का नया रंग हूँ
तुम रंग बिरंगी तस्वीरें
मैं चंदा की चांदनी
तुम सूरज का तेज
मैं जीवन की राह बनाऊँ
तुम मंजिल बन जाना
तुम पर है सर्वस्व निछावर
तुम हो मेरा गहना
रंग बिरंगी फूलों के संग
हमको मिलकर रहना
जीवन के माला में हर दिन
नए - नए रंग भरना
मैं चँदा तुम सूरज बनकर
है नभ पर छा जाना।

शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

शब्द

मैं निःशब्द हूँ , शब्द बनना चाहती  हूँ
आज दिल में हूँ तुम्हारे , होठों तक आना  चाहती हूँ
शब्द से शब्द जोड़कर
अपने दिल में छुपे एहसास को
तुम तक पहुँचाना  चाहती हूँ
मैं निःशब्द हूँ , शब्द बनना  चाहती हूँ
जिंदगी के हर छण को
शब्दों में गढ़ना चाहती हूँ
तुम्हारे माध्यम से मैं वो सब कहना चाहती हूँ
जो आज भी मेरे सीने में दफन है
जो मेरा सपना था , आज मैं उसे पाना चाहती हूँ

मैं निःशब्द हूँ , शब्द बनना  चाहती हूँ
तुम मेरे हो मैं तेरी बोल बनना चाहती हूँ
मैं हूँ कलम , तुम्हे अपना किताब बनाना चाहती हूँ
जिसे मैं जब चाहूँ पढ़ सकूँ
अपने अन्तर्मन में हर वक़्त तुम्हे जी सकूँ

मैं निःशब्द हूँ , शब्द बनना  चाहती हूँ
अपने पूरे जीवन को पन्नों में दर्ज करना चाहती हूँ
जो मिल गया उसे शब्द
और जो न मिला उसे निःशब्द रखना चाहती हूँ
मैं निःशब्द हूँ , शब्द बनना  चाहती हूँ।

बुधवार, 5 अगस्त 2020

अवध

मथुरा काशी वृन्दा वासी 
राम हमारे अवध के वासी 
चित्रकूट की छँटा मनोहर 
वृन्दावन कृष्णा जी विराजे 
जगत के दाता भाग्य विधाता 
प्रभु मेरे कण -कण में विराजे 

मथुरा काशी वृन्दा वासी 
राम हमारे अवध के वासी
आज प्रभु पावन दिन आया 
अवध पूरी में गूंज राम की 
दीपोत्सव और होली संग - संग 
आज मानते अवध के वासी

मथुरा काशी वृन्दा वासी 
राम हमारे अवध के वासी 
देश हमारा झूम रहा है 
नृत्य के थाप पर घूम रहा  है 
आज राम घर आयो अवध में 
कैसी  ख़ुशी फिर छाई अवध में 


मथुरा काशी वृन्दा वासी 
राम हमारे अवध के वासी 
फिर जीवन लौट आई अवध में 
कैसी ख़ुशी फिर छाई अवध में।  
 

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

धर्म

धर्म शब्द अपने आप में विशालता के लिए प्रसिद्ध है इसकी सीमा अनंत है इसकी परिभाषा भी देश काल और उस समय की परिस्थिति के अनुसार बदल जाती है।  लेकिन बय्क्ति विशेष के लिए कुछ चीजों की सिमा तय करना बहुत आवश्यक होता  है  वर्ना मानव पर उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।  धर्म हमारी उन्ही सीमाओं को तय करता है।  हमारे कर्तव्य को सहि तरीके से पूरा करने के लिए धर्म का होना बहुत जरूरी है क्योंकि जब हम अपने से जुड़े हुए अनेकों रिश्तों पर गहराई से विचार करते है।  तो हमें यह महसुस होता है , की हमारा धर्म ही हमें समय समय पर अपने कर्तब्य का बोध कराता रहता है।  जैसे हर बय्क्ति मानव जीवन में अनेकों रिश्तों से बंधा होता है और सबके लिए उसके कर्तव्य निश्चित होते है।  
परन्तु कई बार लोग अपने अहम् में इतने अंधे हो जाते है  कि उन्हें लगने लगता है वो जो भी करेंगे वही सत्य और धर्म बन जाएगा क्योंकि वो ताकतवर है उनके उनके पास धन की बहुलता है लेकिन शायद वो यह भूल जाते है कि जिस धन के मद  में  चूर होकर  वो इस तरह का आचरण करने लगते है वह धन न तो सदा के लिए उनके पास रहने वाला है और न ही उससे अपने लिए कोई एक रिस्ता भी ऐसा खरीद पाए जो उनके दिल से जुड़ सके।  
धन और अहम् के बल पर खरीदी या बनाया गया हर रिस्ता या वस्तु हमेशा उस इंसान को कस्ट ही पहुंचाती है।  लेकिन फिर भी लोग धन के मद में  उन सच्चाइयों को नहीं देख पाते है।  ये सारी बाते उन्हें तब समझ आती है जब धन और धर्म दोनों उनका लूट चूका होता है।  
पर उसके बाद इंसान लाख पछताए कोई फययेडा नहीं।  अतः हमेशा अपने कर्तव्य को अपना धर्म समझ कर निभानेवाला बय्क्ति हि चैन  सुकून की जिंदगी बिताता है हमारे समाज इसके हजारो उदाहरण है।  
धर्म और कर्तव्य दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू  है।  हाँ सिर्फ इसके महत्व को समझने की जरूरत है।  वास्तव में धर्म न तो किसी बाजार में बिकने की बस्तु है और न ही यह किसी को उधर में दी जा सकती है।  धर्म और कर्तव्य  

बुधवार, 29 जुलाई 2020

गम और सितम

जिंदगी आ बैठ कर थोड़ी देर बाते करले 
ये बता और कितने मेरे इम्तिहान बांकि है 
दूर बस रेत  ही  रेत है निगाहों में 
है कहाँ जमीं कहाँ आसमा बांकि है 
खुदा तेरे आँखों के  भी आंसू हमें देदे 
मेरे दिल में अभी दर्द बांकि है 
खुदा तेरी झोली में ढेर सारी खुशियां भर दे 
मेरी झोली में तो अभी गम के अरमान बांकि है 
मेरा तो जीवन ही ग़मों का सागर है 
कुछ गम तेरे भी समेट लूँ तो क्या गम है 
तुझे चाहा है दिल की गहराइयों से 
अभी अपने  दिल में जज्बात बांकि है 
जिंदगी आ थोड़ी देर बैठकर और बातें करते है 
गम और सितम के अभी कई मकाम बांकि है।   

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

अयोध्या के राम

आज अयोध्या मुस्कुराई 
चार सौ नब्बे वर्षों के बाद 
वह पावन दिन आज है आया 
पावन धरती की गरिमा को 
पूरा वश्व अब देखेगा 
मन में खुशियां है अपार 
राम नाम दिल की धरकन में 
जपता मन है बारम्बार 
राम की महिमा अपरम्पार 
राम की नगरी राम का नाम 
बना सभी का तीरथ धाम 
बोल रहा है पूरा भारत 
राम हमारे राम तुम्हारे 
राम सभी के तारण हार 
कण - कण में बसते है राम 
हर धड़कन में राम ही राम। 

बुधवार, 22 जुलाई 2020

कलम

कलम कभी झुकने पाए न 
कलम कभी रूकने पाए न 
कलम की ताकत जिसने जानि 
कलम पर अपने करदे वो 
जीवन पूरी कुर्बान 

कलम के बिना  शब्द गढ़ना मुश्किल 
कलम शब्द की जाल को बुनता 
कलम जीवन की सच्चाई है 
कलम जीवन की अच्छाई है 
कलम हमारी परछाइ है 

कलम हमारा दिब्य प्रेम है 
कलम हमारा अंतर्मन है
 कलम हमारी सुंदरता है
कलम हमारा शौर्य बढ़ाता 

कलम गीत - संगीत हमारा 
कलम प्रेम का ताना - बाना 
कलम बिरह की अभिब्यक्ति है 
कलम हमारे जीवन में 
ज्ञान का है अनमोल खजाना।   

मंगलवार, 21 जुलाई 2020

बहुरानी

शादी के जोड़े में सजकर 
आई एक दिन बहुरानी 
पांव में मेहंदी  रंग आलता 
सोलह श्रृंगारों  से सजकर 
सर पे घूँघट पाजेब पांव में 
छुई मुई सी बहुरानी 
सबकी नजरे टिकी हुई है 
आई कैसी बहुरानी 

शादी के जोड़े में सजकर 
आई एक दिन बहुरानी 
अपने घर को छोड़छाड़ कर 
इस घर को अपनाना है 
नई नवेली दुल्हन बनकर 
रिश्ते नए बनाना है 

शादी के जोड़े में सजकर 
आई एक दिन बहुरानी 
लोग नए है गावं नया है
 सारे अब जज्बात नए है 
गम और खुशियां दोनों को 
हमको अब संग - संग जीना है 

शादी के जोड़े में सजकर 
आई एक दिन बहुरानी
 बहुरानी के संग - संग अब 
पत्नी भाभी सब बनना है 
सबके दिल को भाये ऐसा 
हर पल कोशिश ये करना है। 


सोमवार, 20 जुलाई 2020

मायका

मायके से मैं चली 
चाँद अरमानों को लेकर 
सपना घर बसाने का 
आँचल में संजोकर 
बचपन की यादों को 
आँखों में प्रेम की छवि 
दिल में ढेरो अरमान लेकर 
हाथो में मेहंदी थी 
पैरो में पाजेब था 
नए जीवन की कल्पना से 
मन में खुशियां अपार थी 
रंग बिरंगे ख्वाबों के संग 
जीवन की सुरुआत हुई 
इस शफर में पता नहीं 
अपना वो मायका 
पता नहीं कब खो गया 
पता ही नहीं चला 
मैं कब मायके से 
ससुराल की हो गई।  

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

प्रहरी

प्रहरी हूँ मैं भारत माँ का 
माँ की रक्षा करते करते 
हँसते हँसते ही जाऊंगा 
अपने शौर्य की गाथा को 
स्वर्णाक्षरों में अंकित करके 
नाम देश का रौशन करना 
अपना एक है लक्ष्य 

प्रहरी हूँ मैं भारत माँ का 
हमसब सीमा पर डटकर माँ 
तेरी ाँ पैर मिट जाऊंगा 
तेरा शीश न झुकने देंगे 
तेरे अंशु की कीमत हम 
कतरा कतरा खून से लेंगे 
प्रहरी हूँ मैं भारत माँ का 
माँ की रक्षा करता रहूँगा 

गुरुवार, 16 जुलाई 2020

शब्द

शब्द हूँ शब्द से शब्द तक मैं चलु 
शब्द को जोड़कर शब्द का कुछ करूँ 
शब्द से मैं डरु  शब्द को मैं गढ़ु 
शब्द ही शब्द में मैं उलझी रहूँ 
शब्द के जाल मैं खुद से बुनती रहूं 
शब्द को जोड़कर मैं खुद से चलूं 
शब्द तपते हुए सूर्य की है किरण 
शब्द में है चाँद सी सीतलता 
शब्द वो बाण है शब्द वो मान है 
शब्द के जाल में पूरा संसार है 
शब्द में प्रेम है शब्द में है दुआ 
सब है उलझे हुए शब्द के खेल में।  

सोमवार, 13 जुलाई 2020

जिंदगी एक किताब

काश जिंदगी एक किताब होती 
हम खोलकर उसे पढ़ पाते 
आने वाले गम की आहट को 
पहले ही भांप जाते 
चाँद खूबसूरत पंक्तियाँ 
हम उसमे जोड़ पाते 

काश जिंदगी एक किताब होती 
अपने सुनहरे भविष्य के लिए 
कुछ तो सलग केर पाते 
कुछ खाली पन्नो में रंग ही भर पाते 
अपने जीवन के कड़वी सच्चाई को 
खुद से पढ़ पाते 
काश जिंदगी एक किताब होती 


रविवार, 12 जुलाई 2020

सर्वोपरी

लम्हा लम्हा बिता जाए 
फिर भी दिल तनहा रह जाये 
भीड़ का आलम ऐसा है 
हर ओर निगाहें ही दिखती 
फिर भी तनहा क्यों है हम सब 

लम्हा लम्हा बिता जाए 
लम्हा लम्हा भारी पड़ता 
 लम्हा लम्हा बिता जाता 
हर वक्त तीक्ष्ण तलवारों से 
मानव मन को काटा जाता 
है प्रेम कही खो सा गया 
हर रक्षक में भक्षक दीखता 

लम्हा लम्हा बिता जाये 
लम्हे लम्हे की कीमत से 
जोड़ दो जन-जन को 
है तन-मन भी देशभक्ति से 
ओत-प्रोत इस जीवन को 
कर उपयोग क्षण-क्षण का 
बन जाओ तुम सर्वोपरी 

लम्हा लम्हा बिता जाए 
तनहा तनहा क्यों रह जाये। 

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

गम

आँखों में  आंसुओं के सैलाब को बुलाएगा कौन 
गम जो सो गया है उसे जगायेगा कौन 
परछाई भी अपनी खौफ में रहती थी 
उसकाले दिन को यादों में जगायेगा कौन 
तुम मौन हो हम भी मौन है
फिर इस चुप्पी को तोड़ेगा कौन 
छोटी सी बात को दिल से लगा लोगे 
तो फिर रिस्ता निभाएगा कौन 
हमने तो मान - सम्मान की खातिर 
मौन में ही वर्षो निकाल दिए 
अब एक दिन का बड़प्पन दिखायेगा कौन 
एक अहम् तुम्हारे भीतर है 
और एक मेरे अंदर भी है 
तो इस अहम् को आखिर हरयेगा कौन 
न मैं राजी न तुम राजी 
फिर माफ़ करने का बड़प्पन दिखायेगा कौन 
गम जो सो गया है उसे जगायेगा कौन।  

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

पर्यावरण

पेड़ जब लगाओगे  पर्यावरण तभी तो बचाओगे 
प्रकृति की सोभा तुम्ही फिर बढ़ाओगे 
हर मौसम का आनंद तुम्ही फिर उठाओगे 
फूलों की महक से प्रकृति को सजाओगे 
जब खेतों में फसल लगाओगे 
जिंदगी में तभी तो खुशियां लौटाओगे 
न फिर कभी बेगानो सा ब्यवहार पाओगे 
न कंही से कोई अपमानित करके भगाएगा 
अपने घर में ही हर साल दिवाली मनाओगे 
जब तुम पर्यावरण को बचाओगे 
अपने जीवन में शांति और खुशियां फैलाओगे 
दूसरो के लिए तुम नजीर बन जाओगे 
जब धरती को माँ की तरह पूजोगे 
तब वह संतान से भी ज्यादा तुम पर प्यार बरसाएगी 
पर्यावरण बचाओगे तभी तो सुकून और चैन पाओ गे। 

शनिवार, 4 जुलाई 2020

प्रेम की मूरत

आपको देखकर देखता रह गया 
क्या कहूं  देखकर सोंचता रह गया 
तुम हो कोई मूरत या कोई सपना हो 
कह लूँ तुमको अपना या या तुम मेरा  सपना हो 
हो भोली -भाली  कितनी 
पूरी सच्चाई की मूरत हो 
हर वक़्त तुम्हे देखा करता हूँ 
कुछ शब्द नए रोज गढ़ता हूँ 
मन में यह प्रण तुमसे करके मिलता हूँ 
पूछूंगा तुम क्या सोंचती हो मेरी खातिर 
पर सामने तुमको जब पाता हूँ 
मैं मौन सदा रह जाता हूँ 
अपने मन मंदिर में तुमको 
बिठाकर स्वयं ही देखता रहता हूँ 
तुम हो मेरे  ह्रदय की मलिका 
सपना हो या संच हो 
तुम प्रेम हमारा हो 
तुम मिलो या न मिलो 
प्रेम सदा ही रहेगा 
तुम्हे देखता हूँ हरछण 
सदा देखता रहूँगा 


शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

बचपन के दिन

था रिक्त ह्रदय 
मन तृप्त मगन 
जीवन आनंद से था भरा 
कोई गम नहीं 
कुछ कम् नहीं 
सारा जहाँ अपना सा था 
मन में न कोई भेद था 
हर कोई अपना सा लगे 
सुबह हो या शाम 
सब कुछ सपना सा लगे 
मन फूलों सा कोमल था 
मुस्कान सुबह सी ठंढी 
हर वक़्त मगन रहते हम सब 
न पढ़ने की चिंता 
न किसी से आगे जाने की कोई होड़ थी 
कितने सुनहरे थे वो दिन 
वो दोस्त वो  बचपन के दिन।  

बुधवार, 1 जुलाई 2020

एक सवाल

कोरोना पर एक सवाल है 
दिल में एक ख्याल है 
क्या अब हमें ऐसे ही 
अपनी जिंदगी काटनी होगी 
मुँह पर बंधी इन पट्टियों से 
सांस घुटती हुई सी प्रतीत होती है 
जब सब कुछ अच्छा था 
लोग मिलने से डरते थे 
आज तो वक़्त ने ही 
पिंजरे में कैद कर दिया है 
दो गज की दुरी 
न बन जाए मजबूरी 
अपने ही अपनों को देखते है 
शक की निगाहों से 
पता नहीं कहाँ से कोरना लेकर आएगा 
खुद फंसेगा और मुझे भी मरवाएगा 
ऐसी रिश्तेदारी  किस काम की
जिसमे हम एक दूसरे के काम न आ सके।   

मंगलवार, 30 जून 2020

बेटियाँ

 
 
उजड़े हुए चमन बसाती है बेटियाँ 
जीवन का हर सार सिखाती है बेटियाँ 
मुरझाये चेहरों पर मुस्कान ले आती है बेटियाँ 
माँ -बाप  के दिलों में बस जाती है बेटियाँ
हर सुने आँखों में ख्वाब दे जाती है बेटियाँ 
बेटियाँ सृजन है श्रृंगार है प्रकृति की 
सरस्वती के बीणा की तार है बेटियाँ 
हर घर में गूंजती हुई संगीत है बेटियाँ 
हर घर में प्रेम की बरसात है बेटियाँ 
माँ - बाप के अरमानों की ताज है बेटियाँ 






सोमवार, 29 जून 2020

आम के मंजर

लगे पेड़ पर आम के मंजर 
पेड़ अभी से झूम रहे है 
आँखों में खुशिओं की आहट 
रहरहकर यों घूम रहे है
 छोटी - छोटी आम्बी को
कैसे चुनकर लाएंगे हम 
खट्टी-मीठी पकवानों से 
अपनी मेज सजायेंगे 

भरकर टोकड़ी आम की 
घर लेकर हम आएंगे 
मीठे - मीठे पके आम को 
चुनचुनकर हम खाएंगे 

कोयल की आवाज  गूंजती 
कानो में मिश्री रस घोले 
सुबह सबेरे सब उठ बैठे 
बच्चे - बूढ़े  और जवान 
आम - आम ये मीठे आम।   

शुक्रवार, 26 जून 2020

अंततः

आरंभ हुआ है तो अंत तय है 
सुबह हुई है तो शाम का आना भी तय है 
फूल खिलने के बाद उसका मुरझाना तय है 
फूल को खिलके डाल से उतर जाना तय है 
जैसे जन्म लिया है तो मरना भी तय है 

आया जो सावन तो पतझड़ भी तय है 
खनकती हुई हंसी के पीछे आंसू का संच हैं 
आज ख़ुशी है तो कल्ह रुदन भी तय है 

की है प्रगति की चाहत तो विनाश भी तय है 
हमने बनाई है खुशिओं से दूरियां 
तो हमारा सिसकना भी तय है 


हमने अपनी  धरोहर को छोड़ा है 
तो हमारा भटकना भी तय है 
अपनी सभय्ता को समझने में हमने भूल की है 
उस भूल का भुगतान तो करना ही होगा। 


गुरुवार, 25 जून 2020

मतलबी इंसान

मतलबी इंसान है ये 
कहते ये सबको है सुना 
मतलबों के जाल को 
बुनते हुए ही सब दिखे 

मतलबी इंसान को 
किसने  बनाया सोंचकर 
बरबस नयन भींगे मेरे 
जीते रहे सबके लिए 
सदा हुए खुश ख़ुशी में सबके 

खुद की मुश्किलों से लड़कर 
सब पैर मुस्कुराहटें बिखेरना 
कितना मुश्किल है 
ये हमने जाना है 
अपने दर्द को सबसे छिपाना 
हमने सीखा है मुश्किलों में भी मुस्कुराना 

सब अपनों से कुछ आशा रखते हैं 
हमने तो हरदम ताने ही पाए है 
हरबार ये सोंचकर कि 
शायद यह गलतफहमी है 
कल्ह का सूरज कुछ तो खुशियाँ लाएगा 

पर हमें ये कहाँ पता था  
हरबार ओला पिछली बार से ज्यादा ही पड़ेगा 
हम छलनी होते है तो हो जाएँ 
है फिक्र कहाँ किसी को
 हम रहे या मिट जाएँ। 

बुधवार, 24 जून 2020

राही

सपने मन बुनता है मन 
सपनों को जीना सिख लो 
राह अपनी खुद ही बनाओ 
राहों के कांटों को 
खुद से चुनना सीख लो
जिंदगी बदस्तूर जारी रहती है 
तुम गम को पीना सिख लो 
गम और ख़ुशी 
कभी अलग नहीं हो सकते 
खुशियां आज आई है तो 
गम की आहात को भी 
सुनना सीख लो 
 जैसे रात के बाद 
दिन का आना तै है 
वैसे ही मुश्किलों के बाद 
सपनों का दौर भी आएगा 
आज बेगानी - बेगानी सी 
लगती है ये  दुनिया 
 कल्ह अपनों का भी 
दौड़ आएगा। 

मंगलवार, 23 जून 2020

तेरी खातिर

जिसकी खातिर
तुमने खुद को खो दिया
क्या यह ख्याल आया कभी 
जिसके लिए तुम रोते  हो 
उसके मन में 
तुम्हारी अहमियत क्या है 

तुम्हारी  जिंदगी सिर्फ तुम्हारी है 
इसे जी भर कर जिओ 
यह तुम्हारे लिए 
उपरवाले का दिया 
अनमोल उपहार है 
हमेशा खुद के लिए जिओ 

जो खुद के लिए जीता है 
वह दुखी कभी नहीं होता 
क्यूंकि वह अपना कर्तब्य 
भली भांति जानता है 

जिसको हमारी क़द्र ही नहीं 
उसके लिए क्या गम 
उसके लिए हम अपना 
आंसू क्यों बर्बाद करे 

जो मेरा है ही नहीं  
उसके लिए रोना कैसा 
जिंदगी लम्बी है 
राह में बहुत से लोग मिलते है 
कुछ अपने तो कुछ 
बेगाने हो जाते हैं 
जिंदगी फिर भी चलती  रहती है

चलना हमारा फर्ज 
कर्म हमारी पूजा 
प्रेम हमारा धर्म है 
खुशियां हमारी शक्ति
और जीवन बहती हुई नदी 

जिसे रोकना हमारा काम नहीं 
हमें तो बस खुशियां  बाँटना है। 

सोमवार, 22 जून 2020

गिरना - संभलना

गिरना भी अच्छा 
गिरकर सम्भलना भी अच्छा 
संभलकर चलना है सीखा 
मुसीबतों के दौर में ही 
अपनों की पहचान होती है 
जब वक़्त आता है बुड़ा 
तभी अपनों और परायों में 
फर्क समझ आता है 
गिरकर ही सीखते है हम 
सम्भलकर -सम्भलकर चलना 
जिंदगी हर कदम 
एक नया सबक दे जाती है
 कब कौन कहाँ किसको 
मंजिल मिल जाती है 
थककर न कभी रूकना 
चलना है निरंतर चलना 
गम और ख़ुशी की 
हर दौर से है गुजरना 
जिंदगी की जंग को 
हर हाल में है जीतना। 

गुरुवार, 18 जून 2020

साथी

 
तू मेरा प्रियतम मैं तेरी प्रेयसि 
तू मेरा जीवन मै तेरी नियति
तुम गंगा की लहरे मै हूँ धारा 
तुम बहना कलकल मैं उसकी शीतलता 
तुम जीवन के वृक्ष मै तेरी छाया 
तुम पत्तों की हरियाली  
मैं फूलो की कोमलता 
तुम हो जलता दीपक 
और मैं हूँ उसकी बाती
है प्रेम हमारा हरदम
हर दिन और रात की भांति 
जीवन भर साथ चलेंगे 
हम दोनों मिलकर साथी।

मैं रो नहीं सकता

मेरी आँखों में आंसू  है, मगर मैं रो नहीं सकता 
गमो के लाख सागर हो , मगर मैं खो नहीं सकता 
है दिल में आरजू जितनी , सभी जीना जरूरी है 
सभी जख्मों को उन , मधुर सपनो से सींचेंगे 

मेरी आँखों में आंसू  है, मगर मैं रो नहीं सकता 
हँसी लोगों को आती है , हमारे मुश्किलों पर 
कहाँ उनको पता हमने , सबक इनसे ही सीखा है 
कभी हम भी अनाड़ी थे , मगर अब तो खिलाड़ी है 

मेरी आँखों में  आंसू  है, मगर मैं रो नहीं सकता 
जुबां खामोश है पर दिल में , तूफानों सी बारिश है 
आंसू और गम है साथ -साथ , राहों में कांटें है हजार 
पर मंजिल को पाने की , है मुझमे हिम्मत अपार 

मेरी आँखों में  आंसू  है, मगर मैं रो नहीं सकता 
जिया तूफ़ान में हरदम , अभी यूँ मर नहीं सकता 
चलना हमारा काम है , मैं रूक नहीं सकता 
मेरी आँखों में  आंसू  है, मगर मैं रो नहीं सकता।  

बुधवार, 17 जून 2020

आत्म निर्भर भारत

है सपना अपना आत्मनिर्भर भारत का 
हमने हमेशा मुश्किलों में जीतना सीखा 
हमने मिलकर जब कोई राह निकली है
मुश्किल भी हमसे हिम्मत हारी है 
एकता ही बल हमारा कृषक ही संबल  हमारा

है सपना अपना आत्मनिर्भर भारत का  
जब सामने नायक खड़ा हो हिम्मत सबमे आता है 
मुश्किलों के दौड़ में हर कोई कुछ है सोंचता है 
थोड़ा - थोड़ा सोंचलो मुश्किलों को लाँघ लेंगे 

है सपना अपना आत्मनिर्भर भारत का 
आत्मनिर्भर भारत का सपना हम साकार करेंगे
 सपने को पूरा करने को हर मुश्किल को पार करेंगे 
छोड़ो मझधार की बाते अब तो खुद को 
इस पार या उस पार करेंगे 

है सपना अपना आत्मनिर्भर भारत का 
हर किल्लत को सह लेंगे आंशुओं को भी पी लेंगे 
आज जो मुसीबत आई है 
इससे भी देश का बेडा पार करेंगे 

है सपना अपना आत्मनिर्भर भारत का 
आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करेंगे 
माँ भारती पर जो भी नजर उठाएगा 
उसका भी संहार करेंगे
 हमने खाई है कसम
 आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करेंगे।  


मंगलवार, 16 जून 2020

कड़वा सच

डर को निकाल दो अपने दिल से 
हो जायेगा सबकुछ मुमकिन 
बांध लो हाथों से हाथ 
जोड़ लो मनके तारो से तार 
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा 
झोंक दो अपनी ताकत 
मरुस्थल से भी जल निकलेगा 
कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की 
जो है आज थमा - थमा सा चल निकलेगा
रास्तों पर जम गई है धूल 
बारिशों से ये बह निकलेगा 
रिश्तों में आज जो आई है दरार 
छंटते ही गम के बादल 
फिर से खुशियों की गाड़ी चल निकलेगी 
गावं से शहर की दूरिओं को 
विकास से पाट दो 
किसानो के इस देश में 
किसानी को सम्मान दो 
फिर तो विकास की धारा 
यहीं से बह निकलेगी  

सोमवार, 15 जून 2020

बदलता दौर

इस बदलते दौर में 
हर कोई खोया - खोया  सा है 
खुशियां कहीं गुम  सि हुई 
है चैन की आहट नहीं 
बेचैन दिल से पूछ लो 
सरसराहट भी हवा की
 खौफ मन में भर रही

इस बदलते दौर में 
जीवन विकटता से भरा 
हर पल गुजरते दिन के संग 
एक नई उलझन आ रही 
हर रोज एक नया सबक 
हमको है ये  सिखला रही 

इस बदलते दौर में 
कुछ कर गुजरने की इच्छा 
है वलवती कुछ हो रही 
है डगर कठिन मगर 
दामन पकड़ उम्मीद का 
हम चल पड़े है  उस  डगर

इस बदलते दौर में 
सब कुछ नया सबकुछ अलग 
रिश्तों ने भी छू लिए 
जैसे नए आयाम है 
आँखों में छाई धुंध भी 
अब साफ होती दिख रही 

इस बदलते दौर में 
जो सो गया वो सो गया 
पर  जग कर जिसने चला 
वो चल दिया उस राह पर 
जिससे न अब है लौटना 
मुश्किल अगर आये भी तो 
उससे है लड़कर जीतना 

इस बदलते दौर में 
सब कुछ नया सबकुछ अलग।  


 

मंगलवार, 9 जून 2020

ये कैसी बेचारगी

 अब वक़्त आ गया है यह सोंचने का कि आखिर मजदुर कबतक अपने आपको बेचारा बनाकर रखेगा और किसी भी बिषम परिस्थिति  में मतलब परास्त लोग उसका फायदा उठाते रहेंगे। यह काम किसी सिस्टम का नहीं बल्कि इसके लिए मजदुर को अपनी जमीर खुद ही जगानी पड़ेगी।  उन्हें अपने वर्तमान और भविस्य दोनों सवांरने के लिए एक बेहतर प्लानिंग तैयार करनी पड़ेगी।  अपनी सोंच को बदलना होगा मजदूर चाहे देश के किसी भी हिस्से में हो।  कुछ ही बस्तियों तक अपने आपको  सिमित रखते हैं और उससे बाहर की  दुनिया में क्या चल  रहा है।  इस बात से उन्हें कोई मतलब नहीं होता है।  
समय - समय पर कुछ समाजसेवी  या वित्त से जुड़े लोग उन्हें कुछ समझाने  के लिए उनकी बस्ती तक आते भी है तो वो उनका मजाक ही उड़ाते है यहि  वजह है कि समय-समय पर चालाक प्रवृति के लोग  किसी न किसी प्रकार उन्हें लुटते रहते हैं। 
 देश को आर्थिक गति देने में बहुत बड़े योगदान के वावजूद उनके होने या न होने का सही डाटा हमारी सरकार के पास  भी उपलब्ध नहीं हैं।  जब-जब सरकार ने उनका डाटा इकट्ठा कर उन्हें  मुख्यधारा में  लाने का प्रयास करती है तो उनके बिच बैठे कुछ चालाक लोग उन्हें भड़काकर देश का माहौल ख़राब करने से भी बाज नहीं आते हैं। 
आज जब देश में इतनी बड़ी त्रासदी आई है , इस समय भी सरकार के सामने  सबसे बड़ी चुनौती यहि है कि आखिर कैसे एक-एक मजदूर तक मदद पंहुचाई जाय।  
देश को आजाद हुए ७२ साल बीत चुके है , जो काम आजादी के बाद ही होना चाहिए था , सरकार की अदूरदर्शिता की वजह से ठंढे बास्ते में पड़ी रही।  
अब जब नई सरकार उन कमियों  को दूरकर नई व्यवस्था लागु करना चाहती  है तो कुछ तथाकथित देश सेवको को ये बात पच  नहीं रही है और ये तथाकथित लोग इस मुश्किल के वक़्त भी सरकार को सहयोग करने के वावजूद हर काम में उनका टांग खींचने का काम कर रहे है। 
अब वक़्त आ गया जब मजदूर अपनी ताकत का एहसास स्वयं करे और अपने-अपने इलाके को जो वर्षों से वीरान पड़ा है और वहां की कृषि योग्य भूमी आज बंजर पड़ी है उसे आबाद करने का वक़्त आ गया है।  किसान अपने मेहनत के बल पर देश के हर कोने में हरित क्रांति का आगाज कर सकता है।  
मुझे पूरा विस्वास है कि हमसब मिलकर सही दिशा में अपना कदम बढ़ाएं और अपनी मेहनत पर भरोसा रखे तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा देश फिर से सोने की चिड़िया कहलाये। लेकिन लक्ष्य इतना बड़ा नहीं है जितना कि हमारी सोई हुई इच्छा शक्ति को जगाना।  क्योंकि वर्षो की उपेक्षा और अपने आलस्य के कारण हमें अपने ताकत की पहचान पर ही शक होने लगा है।  हम जितना मंथन मुफ्त में मिलने वाली सुविधाओं पर करते है उसका आधा मेहनत भी अपनी प्रगति के लिए सार्थक प्रयास में लगाएं तो हमें विकास के पथ पर हमारे कदम को कोई रोक नहीं सकता।  

आज के माहौल में ये पपंक्तियाँ बड़ी सार्थक लगती है :-

मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठा  लीजिये।   

तोड़कर बंधन सभी संकोच के चले। 

कण -कण में बसते राम के पदचिन्ह पर चले।  

है कल्पना नहीं , सच्चाई राम राज की। 

बुधवार, 3 जून 2020

साई कृपा

महिमा अपरमपार है साई
जीवन के आधार है साई
हर दिल की धरकन में बसते
जीवन के कण-कण में बसते
लघू अनन्त और दिगदिगंत में
करूण-क्रन्द और प्रेम-विरह में
धरती-वायु और गगन में।


 महिमा अपरमपार है साई
जीवन के आधार है साई
हर मुस्किल में राह दिखाते
नैया अपनी पार लगातें
जीने का जीवट दे जातें।

महिमा अपरमपार है साई
जीवन के आधार है साई
शब्द नहीं है प्रेम की वाणी
प्रेम नयण से झांक रहे है
प्रेम के तार बंधे साई से
ममतामय संसार हुआ है

महिमा अपरमपार है साई
जीवन के आधार है साई
आप हमारे दिल में बसते
दिल से दिल के तार मिले है
जीवन के आधार मिले है
घोर निराशा की आंधी में
जीवन के संचार मिले हैं।

महिमा अपरमपार है साई
जीवन के आधार है साई
हर दिल की धरकन में बसते
इस जग के आधार तुम्ही हो।।

बुधवार, 20 मई 2020

नियति

करुण क्रंदन में छिपा है
मोह बंधन में छिपा है
जीव जग से यूं बंधा है
छोड़ना बस में नहीं है

जोर नियति पर नहीं है
एक ही तो हक़ मिला है
कर्म करने की सजा है
ज़िन्दगी की हर दवा है

मौत बंधन मुक्त करती
इस जहाँ से पार जाने
का वही एक रास्ता है

करुण क्रंदन में छिपा है
मोह बंधन में छिपा है
काल के हाथों में हम सब 
खेलते है हर घडी 

चाहतो की डोर भी 
अदृश्य बंधन से बंधा है 
मन है विचलित तन है विचलित 
काँपता मन कह रहा है 
किस दिशा ले जाएगी 
ये ज़िन्दगी किसको पता है 

कर्म किसके, कौन इसका भार
कब तक ढो रहा है
बैल कोहलू में जुता है
राह कंकर से पटा है

मानवों के पैर में
ज़ंजीर कुछ ऐसे पड़े
वो चाहकर भी बन्धनों से
मुक्त हो पाता नहीं
सींचता आंसूं ख़ुशी से
रोज़ सपनो को बिखरता देखकर भी
जोड़ने की धुन में अक्सर
भागता ही जा रहा है

हर घडी हर पल मुकद्दर
हाथ में अपने लिए
जूझना ही ज़िन्दगी का
मकसद अपना बन गया है। 

मंगलवार, 5 मई 2020

विपदा

ये प्रांत वीरो से सज़ा है
सब शांत है मन क्रांत है
ये भ्रान्ति है अज्ञान है
जीवन का कैसा अंत है
न कोई इसका प्रान्त है

हर ओर मन आक्रांत है
चारों दिशाएं रो रही
छाई निशा में मौन है
है कहर हर ओर ढा रही
जीवन को है झुलसा रही
कैसी तूफानी रात है

हर ओर भय ही व्याप्त है
जाने जुबां क्यों शांत है
सब दिग दिगंत आक्रांत है

मुरझाई फूलों की कलि
है शांत झुरमुट पेड़ भी
गाय विचरती मौन है
है हक्का-बक्का स्वान भी

है कैसी विपदा आई ये
हर ओर छाई मायूसी
शंका से हम सब देखते
किनसे करे व्यव्हार
किनसे छुपाए मुंह फिरे

कैसा ये दिन दिखलाएगी
हम को कहाँ ये ले जाएगी
ये वक्त ही बतलायेगा
क्या-क्या सबक सिखलाएगी।

शनिवार, 2 मई 2020

सच हारता नहीं

एक बुजुर्ग व्यक्ति दफ्तर  में आया और बाबु को सलाम करते हुए बोला बाबूजी आप ठीक हैं, इसपर बाबु मुस्कुराकर बोला आपकी दुआ से सब ठीक हैं. अब तो हमारी कस्ती आपके ही हाथ हैं. बेचारा बुजुर्ग यह सब सुनकर चौंक गया उसने सोंचा मैं कबसे इनके लिए खाश हो गया. पर उसकी यह ख़ुशी पलभर की थी. वह आगे बढ़ते हुए बाबु से बोला बाबूजी मेरा काम कितना आगे बढ़ा है.  बाबु तपाक से बोला बाबा अभी लक्ष्मी को तो आने दो और अपनी फाइल को साहब तक पंहुचने  तो दो फिर काम आगे बढेगा. इसपर बूढ़े आदमी ने बड़ी मासूमियत से पूछा. साहब लक्ष्मी छुट्टी पर है क्या. अरे बाबा मैं आपके जेब में पड़ी लक्ष्मी की बात कर रहा हूँ. आप भी कितने भोले हो. यह सुनकर बुजुर्ग व्यक्ति बड़ा निराश हो गया पर थोड़ी हिम्मत करके बोला साहब जेब में तो फूटी कौड़ी भी नहीं है. बड़ी मुस्किल से यहाँ तक पैदल ही चलकर आया हूँ. लेकिन साहब आपसे वादा करता हूँ कि अगर मेरा काम हो गया तो जो भी बन पड़ेगा आपकी सेवा जरूर करूँगा. इसपर बाबु जोर से चिल्लाया बाबा आपके वादे का मैं क्या करूँगा. मुझे तो बस लक्ष्मी चाहिए वरना अपनी फाइल वापस ले जाइये. मैं अगर एक बार फाइल आगे बढ़ा भी दूँ तो भी आपकी फाइल वापस ही आयेगी क्यूंकि साहब बगैर लक्ष्मी के फाइल पर साइन करेंगे नहीं मैं तो ठहड़ा बाबु मैं और कर भी क्या सकता हूँ. मैं तो आपके भले की ही बात कर रहा हूँ. आगे आपकी मर्जी. इतना बोल कर बाबु चुप हो गया.

बुजुर्ग व्यक्ति निराश होकर अपनी फाइल लेके बाहर की ओर निकल आया. बुजुर्ग व्यक्ति को इतना आघात पंहुचा कि वह ऑफिस के बाहर पार्क में बेंच पर बैठकर फूट फूट कर रोने लगा और  अपनी इस्ट देवी माँ से विनती करने लगा माँ अब मैं कहाँ जाऊं माँ तुम तो कहती हो कि तुम सबकी माँ हो फिर क्या मैं तुम्हारा कोई नहीं हूँ तुम मुझसे रूठी क्यों हो. वह रोता रहा ओर अपनी विनती माँ तक पंहुचता  रहा.

दिन पूरा निकल गया पर उसकी सुध लेने कोई नहीं आया. शाम में अधिकारी साहब जब दफ्तर से निकले तो देखा कि एक बुढा व्यक्ति पार्क में बेंच पर बैठा है. उस वक्त तक पूरी बिल्डिंग खाली हो चूकी थी  पर ये आदमी अकेला यहाँ क्यों बैठा है. इसी उथल पुथल में अधकारी साहब खुद चलकर पास पहुँच गए लेकिन बुजुर्ग व्यक्ति अपने ध्यान में इतना मगन था कि उसे इसकी कोई सुध नहीं लगी और वह जस के तस बैठा रहा. अधकारी साहब ने खुद उसके हाथ से फाइल लेकर खोलकर देखने लगे उस फाइल को थोड़ी देर पलटने के बाद अधकारी साहब ने सहायक से कहा मैं अभी थोड़ी देर और काम करूँगा मेरा ऑफिस खोलो और इस महाशय को ले जा कर कुछ खिलाओ इस बिच किसी ने उस व्यक्ति को झकझोर दिया जिससे उसकी तन्द्रा भंग हो गयी और अपने सामने किसी डिलडौल वाले व्यक्ति को देख कर  घबरा गया. वह समझ गया यह कोई बड़े साहब हैं जो हमें यहाँ देखकर नाराज हो गए हैं. वह झट उनके पैर पर गिर  गया और  फिर से रोने लगा अधिकारी ने उसे उठाया और समझाया बाबा आप परेशान न हो आपकी फाइल मैंने देख ली है मैं अभी आपका काम किये देता हूँ. आप तबतक इनके साथ जाकर चाय नास्ता कीजिये. नहीं साहब आपकी बड़ी मेहरबानी होगी बस आप मेरा काम कर दीजिये मेरी पत्नी घर पर राह देख रही होगी लगता है बहूत रात हो गई है, बाबा आप इनके साथ अन्दर आजाइये मैं तबतक आपकी फाइल देख रहा हूँ. इतना बोलकर अधिकारी साहब अपने केबिन की ओर चले गए

यह सब देखर उस बुजुर्ग व्यक्ति को न अपने कानो पर बिस्वास हो रहा था और न अपने आँखों पर लेकिन जो घट रहा था वह उसके लिए सपने से कम नहीं था वह चुपचाप आंसु  पोछता हुआ आगे बढ़ गया अन्दर जाने के बाद उसे बड़े सम्मान के साथ पहले कुछ खिलाया गया और फिर रामदीन जो साहब का चपरासी था वह उन्हें साहब के कमरे तक ले गया

इस बिच बुढा व्यक्ति सोंचता रहा सुबह भी तो मैं इसी दफ्तर में आया था पर उस वक्त मेरे साथ गलत बय्व्हार क्यों किया गया खैर जो भी हो अब देखता हूँ मेरा काम होता हैं कि नहीं

तभी दरवाजा खुला और वह जिस कमरे में प्रवेश किया वहां साहब बैठे थे साहब फाइल में कुछ लिख रहे थे साहब ने बुजुर्ज व्यक्ति को बैठने को कहा इसपर बूढ़े व्यक्ति ने कहा साहब मैं यहाँ नहीं बैठ सकता ये तो साहब लोगो की बैठने की जगह हैं इतना बोलते बोलते बुजुर्ग व्यक्ति के आँखों से फिर आंसु  के दो बूंद टपक गए यह सब देखकर  अधिकारी अपनी कुर्सी से उठ खरे हुए और बोले बाबा हमें इस कुर्सी पर आपलोगों के काम के लिए ही बिठाया गया है आप बैठिये मैं पहले आपका काम पूरा कर दूँ फिर आपकी बात सुनूंगा

बुढा व्यक्ति बैठकर एकटक अधकारी को देखता रहा और सोंचता रहा क्या वाकई में इस ऑफिस में ऐसे लोग काम करते है जो हम जैसे लोगों का काम और सम्मान दोनों कर सकें  बाबु तो सुबह कह रहा था कि साहब को मैं फाइल दे भी दूँ तो वो आपकी फाइल को सीधे वापस कर देंगे.

 इसी बीच अधिकारी ने बूढ़े व्यक्ति से पूछा बाबा आप घर कैसे जायेंगे? इसपर बूढ़े व्यक्ति ने सकपका  कर कहा साहब मैं तो सुबह पैदल ही आया था. अब इतनी रात को कैसे घर जा पाउँगा यहीं पार्क में सो कर रात गुजर लूँगा फिर कल्ह सुबह घर चला जाऊंगा.

अधिकारी साहब ने कहा कोई बात नहीं ये लीजिये आपकी चिठ्ठी आपका काम हो गया एक दो दिन बाद आकर अपना चेक लेजाइएगा.

चलिए आपको मैं जाते हुए छोड़ता जाऊंगा. साहब आप क्यों परेशान होते हैं मैं कल्ह सुबह चला जाऊंगा. इसमें परेशानी कैसे मेरा घर भी उधर ही है. साथ चलेंगे तो  आपसे बात करने का भी मौका मिल जायेगा. 

बुढा व्यक्ति चुपचाप अधिकारी के साथ चल दिया. गाड़ी में बैठने के बाद अधिकारी ने बूढ़े व्यक्ति से पूछा? बाबा आप इतनी उम्र में घर बनाने के लिए दफ्तरों के चक्कर क्यों काट रहे हैं? क्या आपका कोई बच्चा नहीं हैं? आप अकेले ही है?

बुढा आदमी कुछ देर खामोश रहने के बाद बोला नहीं बेटा ऐसी बात नहीं है मेरा बेटा भी बहूत बड़ा आदमी है वह विदेश में रहता है. फिर आप घर बनाने के लिए दफ्तरों के चक्कर क्यों काट रहे है वह तो बड़ी आसानी से घर बैठे आपका लोन करवा सकता हैं. पर शायद उसे तो लोन की भी जरूरत नहीं पड़े?

बेटा मैंने अपनी सारी जिंदगी की कमाई बेटे को पढ़ाने में खर्च कर दी. हमेशा किराये के मकान में रहा. जैसे तैसे एक छोटी सी जमीन खरीद ली थी.सारी कमाई उनकी पढाई पर ही खर्च कर डी अपने लिए कुछ नहीं इकट्टा किया. अब कमाने की उम्र तो रही नहीं. और जमा पूंजी भी खर्च हो गयी तो अब अपना और अपनी पत्नी का खर्च चलाने के लिए लोन लेकर छोटा सा मकान बना लूँ और फिर वहीँ पर एक छोटी सी दुकान डाल लूँ . दोनों मिलकर दो वक़्त की रोटी भी जुटा लेंगे. और अपना टाइम भी आराम से कट जायेगा.

बाबा आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया. जब आपका बेटा काम रहा है तो आपको यह सब करने की क्या जरूरत है?

इसपर थोड़ी देर खामोश रहने के बाद बूढ़े व्यक्ति ने कहा बेटा ये बड़ी लम्बी कहानी है. बाबा आपको कोई दिक्कत न हो तो प्लीज आप मुझे विस्तार से बताएँगे. बेटा मुझे तो कोई दिक्कत नहीं लेकिन आपको घर भी तो जाना है. कोई बात नहीं आप बताइए. बूढ़े व्यक्ति ने बोलना शुरू किया. बेटा मैं हमेशा से सिधान्तवादी व्यक्ति था. अतः मुझे कभी भी गलत या कहो शोर्टकट तरीके से पैसा कमाना पसंद नहीं था. लेकिन मेरा बेटा जब पढाई के बाद नौकरी शुरू किया तो हमेशा उसका ध्यान जल्दी से जल्दी कैसे अपनी कंपनी शुरू कर बड़ा आदमी बना जाये इसी में लगा रहता था. मैंने उसे  कई बार समझाया बेटा पहले इन्सान को अपने काम में महारत हांसिल करनी चाहिए फिर कोई अपना काम शुरू करो पर उसके सिर पर तो बड़ा आदमी बनने का भूत सवार था. उसने अपने कंपनी से सॉफ्टवेयर किसी और को दे दिया और उस एवज में जो पैसा मिला उससे अपना कारोबार शुरू कर विदेश में जा बसा. जब मुझे उसके इस बात की भनक लगी तो मैंने उसे बहूत समझाया पर वह नहीं माना और तबसे हम दोनों का रिश्ता सदा के लिए टूट गया. हम दोनों के विचार कभी नहीं मिले

तभी गाड़ी झटके से रुकी तो बुजुर्ग व्यक्ति की तन्द्रा भंग हुई देखा उनका घर आ गया है. अधिकारी साहब ने कहा बाबा आपका घर आ गया. बेटा लेकिन तुम्हे मेरे घर का पता कैसे मालूम था. बाबा आपके फाइल में दर्ज था. बुढा आदमी उतरते हुए बोला बेटा जब इतनी दूर आये हो तो आओ अपनी पत्नी से मिलवाता हूँ. बाबा अगर अन्दर आऊंगा तो आपको अपने हिस्से से मुझे खाना भी खिलाना पड़ेगा. आपने तो मेरे मन की बात कह दी. बेटा दस मिनट लगेंगे खाना खाते ही जाओ तुम्हारी काकी बहुत अच्छा खाना बनाती है. दोनों गाड़ी से उतरकर दरवाजे तक जैसे ही पहुंचे. अन्दर से दरवाजा खुल गया. दरवाजा खुलते ही एक बुजुर्ग महिला सामने से बोली आप इतनी देर कहाँ रह गए थे. मैं कितनी चिंतित थी आपका फ़ोन भी स्विच ऑफ आ रहा है. भाग्यवान सवाल ही पूछती रहोगी खाना नहीं खिलाओगी देखो मै किसको लेकर आया हूँ. यह सुनकर बूढी महिला सकपकाकर साईड हो गई. और दोनों लोग घर के अन्दर चले गए. घर साधारण ही था लेकिन करीने से हर सामान अपनी जगह राखी गयी थी. जिससे पता चलता था कि घर का व्यक्ति कितना सुलझा हुआ होगा.

इतने में काकी खाना लेकर बैठक में आ गई और बोली जल्दी आ जाओ खाना आ गया. जब दोनों खाने की मेज पर बैठ गए तो काकी ने बड़ी आत्मीयता से बोला बेटा आप क्या पंकज के दोस्त हो. मीनाक्षी की बात को काटते हुए बूढ़े व्यक्ति ने कहा. नहीं ये वही साहब है जिनके पास मैं गया था अच्छा कहकर मीनाक्षी चुप हो गयी. कुछ देर तक दोनों भोजन करते रहे. फिर सहसा अधिकारी साहब ने बोला काकी खाना बहूत स्वादिस्ट बना है. आज आपके हाथों का बना खाना खाते हुए ऐसे लग रहा है जैसे अपनी माँ के हाथों का बना खाना खा रहा हूँ.

जबतक बूढ़े व्यक्ति कुछ सवाल पूछने की सोंच ही रहे थे. इसी बिच अधिकारी साहब खुद ही बोल पड़े काका ये दुनिया भी कितनी अजीब है जो अपने माँ-बाप के पास रहना चाहते है उन्हें वो दूर कर देते हैं. और जो माँ–बाप अपने बच्चों के साथ रहना चाहते उन्हें बच्चे दूर कर देते हैं. बड़ी अजीब सी बिडम्बना है.

बूढ़े व्यक्ति से रहा नहीं गया उन्होंने पूछ ही लिया बेटा आपके माता–पिता कहीं दूर रहते हैं क्या? नहीं काका ऐसी बात नहीं है वह हमें पसंद नहीं करते. मेरी और आपकी कहानी में कोई ज्यादा अंतर नहीं है. शायद इसी वजह से मैं यहाँ तक खिचां चला आया.

बेटा आप तो इतने नेक इन्सान हो फिर आपके माता–पिता आपसे नाराज क्यों हैं? काका मैं अपने घर में तिन भाई-बहनों में सबसे बड़ा हूँ. यही कारण हैं कि सबको मेरे से बहुत ज्यादा उम्मीदे थी. पर मैं अपनी नेकी या यूं कहें कि अपने सीधेपन की वजह से उनके उम्मीदों पर खड़ा नहीं उतर सका. और हमारे बिच धीरे–धीरे  अविश्वास की एक गहरी खाई बनती गई. धीरे धीरे मैं भी अपने रिश्ते के प्रति उदासीन होता गया और आज लगभग हमारा रिश्ता टूट ही गया हुआ है. पिछले दो वर्षो में एक ही शहर में रहने के वावजूद हम एक बार भी मिले नहीं. यह सब कहते कहते अधिकारी साहब की ऑंखें भर आई. थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोले काका मैं आपको चेक अभी दे सकता था लेकिन मैंने सिर्फ उसे इसलिए रोका ताकि मैं आपको चेक उसी व्यक्ति के हाथो दिलवाऊ जिसने आपको वापस भेजा था ताकि उसे सबक मिले और आगे वह ऐसी हरकत किसी और के साथ न करे.

यह सब सुनकर बूढ़े व्यक्ति की उत्सुकता बढ़ गयी और जो बात उनके मन में घंटों से घूम रही थी वह जुबान पर आ गई और उन्होंने अधिकारी साहब से पूछ ही लिया बेटा आप जब इतने ईमानदार हो फिर वह बाबू आपका नाम क्यों ख़राब करने की कोशिस करता है. बाबा आप अपनी जिम्मेदारी तो ले सकते हैं पर सार्वजनिक स्थानों पर आप किसी पर दबाब नहीं बना सकते वहां पर आपको अपने कार्य के माध्यम से ही सामने वाले को सबक देना होता हैं. मैं भी समय-समय वही करने की कोशिश कर रहा हूँ. सुधर गए तो ठीक नहीं तो वो अपने रास्ते और हम अपने रास्ते.

बेटा तुम्हे कामयाबी जरूर मिलेगीऐसा मेरा मानना है. ईमानदार इन्सान कभी हरता नहीं हाँ नेक इन्सान को अपनी ईमानदारी साबित करने वक़्त जरूर लगता है क्योंकि आज के माहौल में ईमानदार कम झूठ और फरेब करने वाले ज्यादा लोग हैं. यही वजह है कि कई बार ईमानदार आदमी कि भावना भी आहत होती है फिर भी शास्त्रों में भी कहा गया है कि चाहे मार्ग में कठिनाई कितनी भी आए सत्य का रास्ता कभी नहीं छोरना चाहिए.