यह ब्लॉग खोजें

Translate

विशिष्ट पोस्ट

पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली  ए पहाड़ के आँचल  हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल  कभी दूर तो कभी पास ए  करते रहे ठिठोली  भोर - सांझ ये आते जाते  होठों...

बुधवार, 24 जून 2020

राही

सपने मन बुनता है मन 
सपनों को जीना सिख लो 
राह अपनी खुद ही बनाओ 
राहों के कांटों को 
खुद से चुनना सीख लो
जिंदगी बदस्तूर जारी रहती है 
तुम गम को पीना सिख लो 
गम और ख़ुशी 
कभी अलग नहीं हो सकते 
खुशियां आज आई है तो 
गम की आहात को भी 
सुनना सीख लो 
 जैसे रात के बाद 
दिन का आना तै है 
वैसे ही मुश्किलों के बाद 
सपनों का दौर भी आएगा 
आज बेगानी - बेगानी सी 
लगती है ये  दुनिया 
 कल्ह अपनों का भी 
दौड़ आएगा। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें