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प्रियतम

हे प्रियतम तुम रूठी क्यों  है कठिन बहुत पीड़ा सहना  इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा  निःशब्द अश्रु धारा बनकर  मन की पीड़ा बह निकली तब  है शब्द कहाँ कु...

मंगलवार, 16 जून 2020

कड़वा सच

डर को निकाल दो अपने दिल से 
हो जायेगा सबकुछ मुमकिन 
बांध लो हाथों से हाथ 
जोड़ लो मनके तारो से तार 
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा 
झोंक दो अपनी ताकत 
मरुस्थल से भी जल निकलेगा 
कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की 
जो है आज थमा - थमा सा चल निकलेगा
रास्तों पर जम गई है धूल 
बारिशों से ये बह निकलेगा 
रिश्तों में आज जो आई है दरार 
छंटते ही गम के बादल 
फिर से खुशियों की गाड़ी चल निकलेगी 
गावं से शहर की दूरिओं को 
विकास से पाट दो 
किसानो के इस देश में 
किसानी को सम्मान दो 
फिर तो विकास की धारा 
यहीं से बह निकलेगी  

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