गिरकर सम्भलना भी अच्छा
संभलकर चलना है सीखा
मुसीबतों के दौर में ही
अपनों की पहचान होती है
जब वक़्त आता है बुड़ा
तभी अपनों और परायों में
फर्क समझ आता है
गिरकर ही सीखते है हम
सम्भलकर -सम्भलकर चलना
जिंदगी हर कदम
एक नया सबक दे जाती है
कब कौन कहाँ किसको
मंजिल मिल जाती है
थककर न कभी रूकना
चलना है निरंतर चलना
गम और ख़ुशी की
हर दौर से है गुजरना
जिंदगी की जंग को
हर हाल में है जीतना।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें