अब वक़्त आ गया है यह सोंचने का कि आखिर मजदुर कबतक अपने आपको बेचारा बनाकर रखेगा और किसी भी बिषम परिस्थिति में मतलब परास्त लोग उसका फायदा उठाते रहेंगे। यह काम किसी सिस्टम का नहीं बल्कि इसके लिए मजदुर को अपनी जमीर खुद ही जगानी पड़ेगी। उन्हें अपने वर्तमान और भविस्य दोनों सवांरने के लिए एक बेहतर प्लानिंग तैयार करनी पड़ेगी। अपनी सोंच को बदलना होगा मजदूर चाहे देश के किसी भी हिस्से में हो। कुछ ही बस्तियों तक अपने आपको सिमित रखते हैं और उससे बाहर की दुनिया में क्या चल रहा है। इस बात से उन्हें कोई मतलब नहीं होता है।
समय - समय पर कुछ समाजसेवी या वित्त से जुड़े लोग उन्हें कुछ समझाने के लिए उनकी बस्ती तक आते भी है तो वो उनका मजाक ही उड़ाते है यहि वजह है कि समय-समय पर चालाक प्रवृति के लोग किसी न किसी प्रकार उन्हें लुटते रहते हैं।
देश को आर्थिक गति देने में बहुत बड़े योगदान के वावजूद उनके होने या न होने का सही डाटा हमारी सरकार के पास भी उपलब्ध नहीं हैं। जब-जब सरकार ने उनका डाटा इकट्ठा कर उन्हें मुख्यधारा में लाने का प्रयास करती है तो उनके बिच बैठे कुछ चालाक लोग उन्हें भड़काकर देश का माहौल ख़राब करने से भी बाज नहीं आते हैं।
आज जब देश में इतनी बड़ी त्रासदी आई है , इस समय भी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यहि है कि आखिर कैसे एक-एक मजदूर तक मदद पंहुचाई जाय।
देश को आजाद हुए ७२ साल बीत चुके है , जो काम आजादी के बाद ही होना चाहिए था , सरकार की अदूरदर्शिता की वजह से ठंढे बास्ते में पड़ी रही।
अब जब नई सरकार उन कमियों को दूरकर नई व्यवस्था लागु करना चाहती है तो कुछ तथाकथित देश सेवको को ये बात पच नहीं रही है और ये तथाकथित लोग इस मुश्किल के वक़्त भी सरकार को सहयोग करने के वावजूद हर काम में उनका टांग खींचने का काम कर रहे है।
अब वक़्त आ गया जब मजदूर अपनी ताकत का एहसास स्वयं करे और अपने-अपने इलाके को जो वर्षों से वीरान पड़ा है और वहां की कृषि योग्य भूमी आज बंजर पड़ी है उसे आबाद करने का वक़्त आ गया है। किसान अपने मेहनत के बल पर देश के हर कोने में हरित क्रांति का आगाज कर सकता है।
मुझे पूरा विस्वास है कि हमसब मिलकर सही दिशा में अपना कदम बढ़ाएं और अपनी मेहनत पर भरोसा रखे तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा देश फिर से सोने की चिड़िया कहलाये। लेकिन लक्ष्य इतना बड़ा नहीं है जितना कि हमारी सोई हुई इच्छा शक्ति को जगाना। क्योंकि वर्षो की उपेक्षा और अपने आलस्य के कारण हमें अपने ताकत की पहचान पर ही शक होने लगा है। हम जितना मंथन मुफ्त में मिलने वाली सुविधाओं पर करते है उसका आधा मेहनत भी अपनी प्रगति के लिए सार्थक प्रयास में लगाएं तो हमें विकास के पथ पर हमारे कदम को कोई रोक नहीं सकता।
आज के माहौल में ये पपंक्तियाँ बड़ी सार्थक लगती है :-
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठा न लीजिये।
तोड़कर बंधन सभी संकोच के चले।
कण -कण में बसते राम के पदचिन्ह पर चले।
है कल्पना नहीं , सच्चाई राम राज की।
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