कहते ये सबको है सुना
मतलबों के जाल को
बुनते हुए ही सब दिखे
मतलबी इंसान को
किसने बनाया सोंचकर
बरबस नयन भींगे मेरे
जीते रहे सबके लिए
सदा हुए खुश ख़ुशी में सबके
खुद की मुश्किलों से लड़कर
सब पैर मुस्कुराहटें बिखेरना
कितना मुश्किल है
ये हमने जाना है
अपने दर्द को सबसे छिपाना
हमने सीखा है मुश्किलों में भी मुस्कुराना
सब अपनों से कुछ आशा रखते हैं
हमने तो हरदम ताने ही पाए है
हरबार ये सोंचकर कि
शायद यह गलतफहमी है
कल्ह का सूरज कुछ तो खुशियाँ लाएगा
पर हमें ये कहाँ पता था
हरबार ओला पिछली बार से ज्यादा ही पड़ेगा
हम छलनी होते है तो हो जाएँ
है फिक्र कहाँ किसी को
हम रहे या मिट जाएँ।
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