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शुक्रवार, 26 जून 2020

अंततः

आरंभ हुआ है तो अंत तय है 
सुबह हुई है तो शाम का आना भी तय है 
फूल खिलने के बाद उसका मुरझाना तय है 
फूल को खिलके डाल से उतर जाना तय है 
जैसे जन्म लिया है तो मरना भी तय है 

आया जो सावन तो पतझड़ भी तय है 
खनकती हुई हंसी के पीछे आंसू का संच हैं 
आज ख़ुशी है तो कल्ह रुदन भी तय है 

की है प्रगति की चाहत तो विनाश भी तय है 
हमने बनाई है खुशिओं से दूरियां 
तो हमारा सिसकना भी तय है 


हमने अपनी  धरोहर को छोड़ा है 
तो हमारा भटकना भी तय है 
अपनी सभय्ता को समझने में हमने भूल की है 
उस भूल का भुगतान तो करना ही होगा। 


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