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बैठे - बैठे

एक दिन बैठे - बैठे यूँ ही सोचती रही  क्या पाया क्या खोया हमने  कुछ मिले नए कुछ बिछड़े हमसे  कुछ शोहरत कुछ गुमनामी में  जीवन दिया ए काट  ना नी...

शुक्रवार, 8 अगस्त 2025

बैठे - बैठे

एक दिन बैठे - बैठे यूँ ही सोचती रही 

क्या पाया क्या खोया हमने 

कुछ मिले नए कुछ बिछड़े हमसे 

कुछ शोहरत कुछ गुमनामी में 

जीवन दिया ए काट 

ना नींद पूरी हुई 

और ना ही ख्वाब 

वक्त ने हरदम कहा 

सब्र थोड़ा रख 

वक्त से हमको शिकायत 

कुछ शिकायत वक्त को भी 

धीरे - धीरे चलता रहा 

मंज़िल ज़रूर मिलेगी 

रस्ते कठिन भी है तो

खुशियां मिलेगी एक दिन 

वो दिन भी आएगा जब 

खुद के ख्यालो में ही 

खुद को याद कर के 

आ जाएगी हँसी, जीवन को याद करके। 

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