एक दिन बैठे - बैठे यूँ ही सोचती रही
क्या पाया क्या खोया हमने
कुछ मिले नए कुछ बिछड़े हमसे
कुछ शोहरत कुछ गुमनामी में
जीवन दिया ए काट
ना नींद पूरी हुई
और ना ही ख्वाब
वक्त ने हरदम कहा
सब्र थोड़ा रख
वक्त से हमको शिकायत
कुछ शिकायत वक्त को भी
धीरे - धीरे चलता रहा
मंज़िल ज़रूर मिलेगी
रस्ते कठिन भी है तो
खुशियां मिलेगी एक दिन
वो दिन भी आएगा जब
खुद के ख्यालो में ही
खुद को याद कर के
आ जाएगी हँसी, जीवन को याद करके।
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