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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

शुक्रवार, 8 अगस्त 2025

बैठे - बैठे

एक दिन बैठे - बैठे यूँ ही सोचती रही 

क्या पाया क्या खोया हमने 

कुछ मिले नए कुछ बिछड़े हमसे 

कुछ शोहरत कुछ गुमनामी में 

जीवन दिया ए काट 

ना नींद पूरी हुई 

और ना ही ख्वाब 

वक्त ने हरदम कहा 

सब्र थोड़ा रख 

वक्त से हमको शिकायत 

कुछ शिकायत वक्त को भी 

धीरे - धीरे चलता रहा 

मंज़िल ज़रूर मिलेगी 

रस्ते कठिन भी है तो

खुशियां मिलेगी एक दिन 

वो दिन भी आएगा जब 

खुद के ख्यालो में ही 

खुद को याद कर के 

आ जाएगी हँसी, जीवन को याद करके। 

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 09 अगस्त 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  2. बहुत खूब ... ज़रूरी होता है ये लेखा झोखा ...

    जवाब देंहटाएं