हमको बुलाये ए हरियाली
ए पहाड़ के आँचल
हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल
कभी दूर तो कभी पास ए
करते रहे ठिठोली
भोर - सांझ ये आते जाते
होठों पर खुशियाँ दे जाते
दिन ढलते ही झम - झम करके
खूब बरसते है ये बादल
गड़ - गड़ करके झड़ - झड़ करके
धाराएँ बहती जाती है
देख - देख हम खुश होते है
यहां का मौसम कितना प्यारा
पर पहाड़ के वासिंदों को
होती बहुत कठिनाई इससे।
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