हमको बुलाये ए हरियाली
ए पहाड़ के आँचल
हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल
कभी दूर तो कभी पास ए
करते रहे ठिठोली
भोर - सांझ ये आते जाते
होठों पर खुशियाँ दे जाते
दिन ढलते ही झम - झम करके
खूब बरसते है ये बादल
गड़ - गड़ करके झड़ - झड़ करके
धाराएँ बहती जाती है
देख - देख हम खुश होते है
यहां का मौसम कितना प्यारा
पर पहाड़ के वासिंदों को
होती बहुत कठिनाई इससे।
पहाड़ जितने सुंदर है वहाँ रहने वालों का जीवन पहाडझ जितना कठिन।
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्रण।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ सितंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंएक ओर कविता की संदर लय और शब्द, और दूसरी ओर समाचारपत्रों की भयावह तस्वीरें, दोनों जीवन के विपरीत पहलुओं की सच्चाई हैं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना,,,
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