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अयोध्या धाम

राम आएंगे अयोध्या धाम आएंगे  राम आएंगे तो खुशियां मनाएंगे  फूल माला से मैं घर को सजाऊंगी  रंगोली बना के मैं देहरी सजाऊंगी  दीपमाला बनके खुद ...

शनिवार, 27 मार्च 2021

मानव जीवन

मानव का जीवन है रहस्य
मानवता उसका जटिल प्रेम
खुशियाँ फूलों का उपवन है
जिसमे चुभते काटें हजार

बचपन अनमोल खजाना है 
खुशियों का ताना-बाना है 
है रोज उम्र बढ़ती जाती 
खुशियाँ पीछे छूटती जाती 

मानव का जीवन है रहस्य
मानवता उसका जटिल प्रेम
जीवन में रोज नई उलझन 
कल होगा क्या यह ज्ञात नहीं 

उलझन कोई उलझाएगा 
या देकर कोई नया लक्ष्य 
रुके हुए इस जीवन को 
कोई गति नई मिल जायेगी 

हर रोज परीक्षा देनी है 
हर रोज प्रश्न सुलझाना है 
गम के और ख़ुशी के आँसू 
दोनों का आनंद उठाना 

बढ़ते उम्र की बढ़ती उलझन 
बढ़ा दायरा काम का 
जीवन के हर मोड़ से परिचय 
वक़्त हमें करवाता है 

जीवन की हर गुत्थी  को
 वक़्त ही सुलझाता है.   

मंगलवार, 16 मार्च 2021

अब्यक्त

बनना नहीं भीड़ का हिस्सा
मैं तो पथिक अकेला हूँ

राग-द्धेष  से दूर कहिं 
मैं चंचल हवा सलोना हूँ 

रूक-रूक कर जीवन जीना 
है आता नहीं मुझे 

गिर-गिर कर ठोकर खाकर 
जख्मों को दोस्त बनाकरके 

गिरना भी है उठना भी है 
पर करना सदा नया कुछ है 

जीवन को मोड़ नया देकर 
गढ़ना संकल्प नया मुझको 

कुछ अलग करें कुछ खास करें 
है वक़्त हमें अनमोल मिला 

है धूप-छाँव गर्मी-सर्दी 
जैसे मौसम के साइन में 

रोना-गाना  खोना-पाना 
सब है जीवन के हिस्से में 

है आज वक़्त मुश्किल फिर भी 
जीवन को रोक नहीं सकते 

बुधवार, 10 मार्च 2021

अधूरा सपना

कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं
दूर क्षितिज में बस जाते हैं
जब हम जाते पार चाँद के 
तभी हमें फिर याद आते हैं

कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं
जीवन से कुछ कह जाते हैं 
सोते-सोते तड़पाते हैं 
जगने पर फिर याद आते हैं 

कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं
बरबस नयन भिगो जाते हैं 
चाँद पलों में सफ़र मील का 
यादों में हम तय कर जाते 

कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं
कुछ  बिछड़े कुछ मिल जाते हैं 
नए- नये सपने गढ़ते हैं 
कुछ पाते कुछ खो जाते हैं 

चलों आज यह भेद मिटा दें 
कोई है अपना कोई पराया 
मन से ऐसा वहम  हटा दें 

जो सपने हमने पाले थे 
क्यों नहीं उनको आज मिटा दें 
जो मिला हमें वह अपना था 
जो टूट गया वह सपना था।  



 


गुरुवार, 4 मार्च 2021

अपना घर

दरवाजे पर बैठा पप्पू
अपने धुन में रमा हुआ

कभी घूरता अपने घर को 
कभी सामने सड़कों को 

आते जाते लोग मगन थे 
अपने घर की यादों में 

पप्पू बैठा सोंच रहा था 
अपना भी एक घर होगा 

जहाँ न कोई खिट -खिट  पिट-पिट
ना कोई अनबन होगी 

अपनी मर्जी अपने नियम 
सब अपना-अपना सा होगा 

पता बदलने की उलझन से 
हमें निजात फिर मिल जायेगा 

तुम हो बाहर वाले ऐसा 
कोई नहीं फिर कह पायेगा

अपना घर अपनी पहचान 
पप्पू को भी मिल जायेगा