दूर क्षितिज में बस जाते हैं
जब हम जाते पार चाँद के
तभी हमें फिर याद आते हैं
कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं
जीवन से कुछ कह जाते हैं
सोते-सोते तड़पाते हैं
जगने पर फिर याद आते हैं
कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं
बरबस नयन भिगो
जाते हैं
चाँद पलों में सफ़र
मील का
यादों में हम तय
कर जाते
कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं
कुछ बिछड़े कुछ मिल जाते हैं
नए- नये सपने गढ़ते हैं
कुछ पाते कुछ खो जाते हैं
चलों आज यह भेद मिटा दें
कोई है अपना कोई पराया
मन से ऐसा वहम हटा दें
जो सपने हमने पाले थे
क्यों नहीं उनको आज मिटा दें
जो मिला हमें वह अपना था
जो टूट गया वह सपना था।
अच्छा सृजन।
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