मानवता उसका जटिल प्रेम
खुशियाँ फूलों का उपवन है
जिसमे चुभते काटें हजार
बचपन अनमोल खजाना है
खुशियों का ताना-बाना है
है रोज उम्र बढ़ती जाती
खुशियाँ पीछे छूटती जाती
मानवता उसका जटिल प्रेम
जीवन में रोज नई उलझन
कल होगा क्या यह ज्ञात नहीं
उलझन कोई उलझाएगा
या देकर कोई नया लक्ष्य
रुके हुए इस जीवन को
कोई गति नई मिल जायेगी
हर रोज परीक्षा देनी है
हर रोज प्रश्न सुलझाना है
गम के और ख़ुशी के आँसू
दोनों का आनंद उठाना
बढ़ते उम्र की बढ़ती उलझन
बढ़ा दायरा काम का
जीवन के हर मोड़ से परिचय
वक़्त हमें करवाता है
जीवन की हर गुत्थी को
वक़्त ही सुलझाता है.
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