मैं तो पथिक अकेला हूँ
राग-द्धेष से दूर कहिं
मैं चंचल हवा सलोना हूँ
रूक-रूक कर जीवन जीना
है आता नहीं मुझे
गिर-गिर कर ठोकर खाकर
जख्मों को दोस्त बनाकरके
गिरना भी है उठना भी है
पर करना सदा नया कुछ है
जीवन को मोड़ नया देकर
गढ़ना संकल्प नया मुझको
कुछ अलग करें कुछ खास करें
है वक़्त हमें अनमोल मिला
है धूप-छाँव गर्मी-सर्दी
जैसे मौसम के साइन में
रोना-गाना खोना-पाना
सब है जीवन के हिस्से में
है आज वक़्त मुश्किल फिर भी
जीवन को रोक नहीं सकते
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें