अपने धुन में रमा हुआ
कभी घूरता अपने घर को
कभी सामने सड़कों को
आते जाते लोग मगन थे
अपने घर की यादों में
पप्पू बैठा सोंच रहा था
अपना भी एक घर होगा
जहाँ न कोई खिट -खिट पिट-पिट
ना कोई अनबन होगी
अपनी मर्जी अपने नियम
सब अपना-अपना सा होगा
पता बदलने की उलझन से
हमें निजात फिर मिल जायेगा
तुम हो बाहर वाले ऐसा
कोई नहीं फिर कह पायेगा
अपना घर अपनी पहचान
पप्पू को भी मिल जायेगा
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